Harela Festival 2024: हरेला पर्व देवभूमि उत्तराखंड के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसे हर साल बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है. हरियाली का प्रतीक यह त्योहार पेड़ लगाने के साथ पर्यावरण सरंक्षण का भी संदेश देता है. इस बार इसे आज (6 जुलाई) मनाया जा रहा है. यह पर्व सावन के आगमन का शुभ संदेश भी दता है जहां पर अच्छी फसल की कामना की जाती है. साथ ही बीजों के संरक्षण व बड़े-बुजुर्गों के आशिर्वाद के महत्व को भी उजागर करता है.
पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है हरेला

उत्तराखंड की संस्कृति में हरेला पर्व का सांस्कृतिक और पर्यावरणीय महत्व काफी ज्यादा है. साथ ही यह हरियाली और समृद्धि का भी संदेश देता है. दरअसल नामक पौधे के तिनकों को देश-विदेश में बसे लोग चिट्ठियों की मदद से उत्तराखंड के गांवों में भेजते हैं. इन तिनकों को कान के पीछे सजाया जाता है और लोकगीत गाकर पहाड़ों पर पौधे लगाए जाते हैं.
कैसे मनाया जाता है हरेला

हरेला का सीधा संबंध हरियाली से है, वैसे तो इसे पूरे उत्तराखंड में बड़े ही आनंद और उमंग के साथ मनाया जाता है मगर कुमांऊ क्षेत्र में इसका खास महत्व है. इस दिन आमतौर पर लोग हरेला के तिनके को कान के पीछे सजा घूमते हैं और लोकगीत गाते हैं. प्रदेश में पर्यटन और खेती ही व्यवसाय के प्रमुख आधार है, बीजों के महत्व को समझकर उनका संरक्षण करना और पर्यावरण के साथ संतुलन बनाना ही इस त्योहार का मुख्य उद्देश्य है.
हरेला पर्व का धार्मिक महत्व

उत्तराखंड की संस्कृति में हरेला पर्व का धार्मिक महत्व भी है, इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है. हरेला पर्व से 9 दिन पहले मिट्टी या बांस की टोकरी में जौं, गेहूं, सरसों, मसूर, मक्का आदि में से किसी एक के दानों को बोया जाता है. इनकी परतों को बिछाकर इसमें पानी और खाद दी जाती है और नौ दिनों में अनाज की बाली आना शुरू हो जाती है. हरेला के दिन इन बालियों की पूजा की जाती है और अच्छी फसल की कामना की जाती है. ऐसी मान्यता है कि जितनी अच्छी बाली होती है आने वाली फसल भी उतनी अच्छी होती है.
इस दिन घरों में खास प्रकार के व्यंजन भी बनाए जाते हैं इसमें सिंगल (मीठे पकवान), उड़द की दाल के बड़े, खीर, उड़द दाल भरके पूरी, जैसे पकवान बनाए जाते हैं. इस खास अंदाज में हरेला को साल में 3 बार सेलिब्रेट किया जाता है.