नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 1976 में देश के संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्दों को हटाने की मांग पर सुनवाई टाल दी है. जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने अक्टूबर के चौथे सप्ताह में अगली सुनवाई का आदेश दिया.
कोर्ट ने इस बात पर विचार की जरूरत बताई है कि क्या 26 नवंबर 1949 को स्वीकार की गई प्रस्तावना को बाद में संशोधित कर देना क्या सही था.
उल्लेखनीय है कि 9 फरवरी को सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपांकर दत्ता ने कहा था कि ऐसा नहीं है कि प्रस्तावना में संशोधन नहीं किया जा सकता है. लेकिन सवाल ये है कि क्या तारीख को बरकरार रखते हुए प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है. जस्टिस दत्ता ने वकीलों से अकादमिक दृष्टिकोण से इस पर विचार करने को कहा. याचिका भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने दायर की है.
याचिका में 42वें संविधान संशोधन के जरिये धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्दों को जोड़ने की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है. याचिका में कहा गया है कि 42वें संविधान संशोधन के जरिये इन शब्दों को जोड़ना गैरकानूनी है. याचिका में कहा गया है कि संविधान बनाने वालों ने कभी भी संविधान में समाजवादी या धर्मनिरपेक्ष विचार को लाना नहीं चाहा. यहां तक कि डॉ. बीआर अंबेडकर ने भी इन शब्दों को जोड़ने से इनकार कर दिया.
हिन्दुस्थान समाचार