डॉ.रामकिशोर उपाध्याय
हिंडनबर्ग कुछ समय से भारत के पीछे पड़ी हुई है. वह भारत में आर्थिक अस्थिरता उत्पन्न कर लाभ कमाने की जुगाड़ में है. पिछले वर्ष जनवरी में अमेरिका की इसी शॉर्ट सेलिंग कंपनी ने अडाणी समूह के शेयरों में हेराफेरी की आशंका वाली रिपोर्ट जारी कर भारतीय बाजार में तूफान खड़ा कर दिया. इस एक रिपोर्ट ने अडाणी समूह को संसार के अमीरों की सूची में चौथे पायदान से खिसकाकर सातवें नंबर पर पहुंचा दिया था. भारतीय निवेशकों का कई करोड़ रुपया एक झटके में डूब गया. तब विपक्ष ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के आधार पर अडाणी और सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उस समय हिंडनबर्ग रिपोर्ट को विपक्ष का पूरा समर्थन मिला और भारत के जनमानस में इस अमेरिकी कंपनी के बारे में यह छवि बनाई गई कि यह निस्वार्थ भाव से निवेशकों के हित में रिपोर्ट जारी करने वाली शोध संस्था है. इसके बाद सरकार, सेबी और सुप्रीम कोर्ट तीनों ने रिपोर्ट को गंभीरता से लेते हुए जांच का आश्वासन दिया. सुप्रीम कोर्ट ने विशेष कमेटी बनाकर जांच करवाई तो सेबी ने अपने स्तर पर कार्रवाई आरंभ कर दी. जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ी हिंडनबर्ग का एक नया रूप सबके सामने आने लगा. जिस रिपोर्ट के कारण निवेशकों का करोड़ों रुपया डूबा था उन आरोपों में कोई सच्चाई नहीं निकली. अपितु जांच में यह पाया गया कि इस झूठी रिपोर्ट से हिंडनबर्ग ने करोड़ों रुपये का लाभ कमाया और अडाणी व उनके निवेशकों को भारी क्षति हुई. जांच से देशवासियों को यह भी समझ आ गया कि भारत की अर्थव्यवस्था बहुत ही मजबूत है तथा सेबी और सरकार अपना काम भी ठीक से कर रही हैं.
इस बार अगस्त में भारतीय शेयर बाजार नई ऊंचाइयों को छू रहा था तभी विश्व बाजार में कुछ घटनाएं एक साथ घटित हुईं. जापान में ब्याज दरों में अचानक वृद्धि हुई. अमेरिका में कथित मंदी की आशंका और जिओ पोलिटिकल टेंशन. इससे विश्व के बाजारों में तेज बिकवाली देखने को मिली. जापान के शेयर बाजार में एक दिन में बारह प्रतिशत से अधिक गिरावट दर्ज हुई. इस घटनाक्रम से भारतीय बाजार प्रभावित तो अवश्य हुआ किन्तु बुरी तरह नहीं टूटा. भारी दबाव के बीच भारतीय बाजार ने अपनी आत्मनिर्भरता का परिचय दिया. किन्तु इसी समय हिंडनबर्ग ने पिछले शनिवार को एक्स पर संदेश डाल कर सनसनी फैला दी. संदेश था- “समथिंग बिग सून इंडिया ”. यह संदेश पूरे संसार में आग की भांति फैल गया. निवेशकों की रात की नींद उड़ गई, क्योंकि भारत में बड़ी संख्या में नए निवेशक भी जुड़ रहे हैं. एक बुरी खबर पूरे बाजार पर कितनी भारी पड़ सकती है इस बात को निवेशक भली-भांति जानते हैं. निवेशकों को मानसिक रूप से डराने और विचलित करने के बाद हिंडनबर्ग ने अपनी कथित रिपोर्ट जारी की. विपक्ष ने तत्काल इस रिपोर्ट पर कार्रवाई की मांग शुरू कर दी. इस बार उसने अडाणी के साथ-साथ भारतीय प्रतिभूत और विनिमय बोर्ड (सेबी) प्रमुख माधवी पुरी बुच और उनके पति को टार्गेट किया. उसने आरोप लगाया कि माधवी और उनके पति धवल बुच अडाणी की कंपनियों में निवेशक रहे हैं इसलिए अडाणी के विरुद्ध सही जांच नहीं हुई. इस रिपोर्ट के आते ही देश विरोधी पूरा इको सिस्टम सक्रिय हो गया. SEBI प्रमुख का इस्तीफा मांगा जाने लगा. भारतीय शेयर बाजार गहरे संकट में डूबने वाला है। यहां घोटाले हो रहे हैं आदि-आदि ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की गई. कहावत है कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती. इसलिए सजग पत्रकारों, भारत के आर्थिक विश्लेषकों और निवेशकों ने पूरे मामले को ध्यान से समझा और आत्मचिंतन किया. लोगों को समझ आ गया कि हिंडनबर्ग जिसे सनसनीखेज समाचार कह रहा है, उसमें कोई दम नहीं है.
जिन लोगों को उम्मीद थी कि सोमवार को भारत का शेयर बाजार लाल हो जाएगा, उनके इन इरादों पर निवेशकों ने पानी फेर दिया. लोगों को यह समझ आ गया कि ये झूठे आरोप सेबी की पारदर्शिता एवं निवेशकों के विश्वास को क्षति पहुंचाने का कुत्सित षड्यंत्र हैं. इस रिपोर्ट को भारतीय बाजार के अधिकांश विश्लेषकों ने कूटरचित और फर्जी माना. शेयर बाजार के जानकार और विश्लेषक सुशील केडिया ने तो इसे धूर्तता से बनाया गया डॉक्यूमेंट तक कह दिया. इन सब बातों का परिणाम यह हुआ कि भारत का निवेशक भी इस कंपनी की जालसाजी को समझ गया. इसलिए सोमवार के दिन शेयर मार्केट में कोई बड़ा भूचाल नहीं आया. किन्तु विडम्बना की बात यह है कि जिस रिपोर्ट को बाजार के जानकार फर्जी,कूटरचित और साजिश बता रहे हैं कांग्रेस उसी कथित रिपोर्ट के आधार पर सेबी चेयरमैन का इस्तीफा मांग रही है. सेबी प्रमुख और हिंडनबर्ग के मध्य इन दिनों जो सवाल-जबाव चल रहे हैं उनसे यह स्पष्ट है कि हिंडनबर्ग का उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचा कर लाभ कमाना है. कांग्रेस अपने देश के निवेशकों का मटियामेट करने में संकोच नहीं कर रही, यह चिंता का विषय है.
शेयर मार्केट से जुड़े हुए लोग जानते हैं कि हिंडनबर्ग अमेरिका की एक शॉर्ट सेलिंग कंपनी है जो अपनी कथित रिपोर्ट से लक्षित शेयरों की कीमत गिराकर तथा गिरते हुए शेयरों पर दांव लगाकर बड़ा लाभ कमाने (शॉर्ट सेलिंग) के लिए बदनाम है. अपनी पिछली रिपोर्ट से उसने निवेशकों को कंगाल बना कर खूब पैसा कमाया किन्तु इस बार वह अपने षड्यंत्र में सफल नहीं हो सकी. प्रश्न यह भी है कि जिस कंपनी पर उसके अपने देश अमेरिका में जांच चल रही हो, जिस कंपनी की स्वयं की गतिविधियां संदिग्ध हों उसे भारत के विपक्ष के नेताओं का समर्थन क्यों मिल रहा है ? भारत की संवैधानिक संस्थाओं एवं सरकार पर नजर रखना व समीक्षा करना विपक्ष का परम कर्तव्य है किन्तु किसी विदेशी बदनाम व्यापारिक संस्था की रिपोर्ट के आधार पर अपने देश को आर्थिक रूप से अस्थिर करने के लिए अग्रसर हो जाना ठीक नहीं है. अब देखना यह है कि विपक्ष इस मुद्दे को कहां तक ले जाता है.
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं.)
हिन्दुस्थान समाचार