रमेश सर्राफ धमोरा
RakshaBandhan2024: भारत में रक्षाबंधन के पवित्र पर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. इसे रिश्तों में मिठास, विश्वास और प्रेम बढ़ाने वाला पर्व माना गया है. इस दिन बहनें, भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और उसकी लंबी उम्र की कामना करती हैं. इस दौरान भाई भी अपनी बहन को रक्षा का वचन देता है और क्षमता के अनुसार उपहार देता है. रक्षाबन्धन का पर्व भाई-बहिन के स्नेह का प्रतीक देश का एक प्रमुख त्योहार है. रक्षाबन्धन पर्व में रक्षासूत्र यानी राखी का सबसे अधिक महत्व है. श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी पर्व भी कहते हैं. इस दिन ब्राह्मण गुरु द्वारा भी राखी बांधी जाती है.
हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बांधते समय पण्डित संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण करते हैं. जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है. यह श्लोक रक्षाबन्धन का अभीष्ट मन्त्र है.
येन बद्धो बलि राजा दानवेन्द्रो महाबलः
तेन त्वाम प्रतिबद्धनामी रक्षे माचल माचलः
इस श्लोक का अर्थ है जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बांधता हूं. तुम अपने संकल्प से कभी भी विचलित मत होना.
रक्षाबंधन का त्योहार कब शुरू हुआ यह कोई नहीं जानता. लेकिन भविष्य पुराण में इस पर्व का वर्णन मिलता है. जब देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हुआ. तब देवताओं पर दानव हावी होने लगे। देवराज इन्द्र ने घबरा कर देवताओं के गुरू बृहस्पति से मदद की गुहार की. वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इन्द्राणी सब सुन रही थी. उन्होंने रेशम का धागा मन्त्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बांध दिया. संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इन्द्र इस लड़ाई में इसी धागे की मन्त्र शक्ति से ही विजयी हुए थे. उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है. यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है.
विष्णु पुराण के एक प्रसंग में कहा गया है कि श्रावण की पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के लिये फिर से प्राप्त किया था. हयग्रीव को विद्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है. महाभारत में ही रक्षाबन्धन से सम्बन्धित कृष्ण और द्रौपदी का एक और वृत्तान्त भी मिलता है। जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई. द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाडकर उनकी उंगली पर पट्टी बांध दी. यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था. कृष्ण ने इस उपकार का बदला बाद में चीरहरण के समय उनकी साड़ी को बढ़ाकर चुकाया. कहते हैं परस्पर एक दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना रक्षाबन्धन के पर्व में यहीं से प्रारम्भ हुई.
महाभारत में भी इस बात का उल्लेख है कि जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं. तब भगवान कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिये राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी. उनका कहना था कि राखी के इस रेशमी धागे में वह शक्ति है जिससे आप हर विपत्ति से मुक्ति पा सकते हैं. इस समय द्रौपदी द्वारा कृष्ण को तथा कुन्ती द्वारा अभिमन्यु को राखी बांधने के कई उल्लेख मिलते हैं.
स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबन्धन का प्रसंग मिलता है. दानवेन्द्र राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की. तब भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे. गुरु के मना करने पर भी राजा बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। भगवान ने तीन पग में सारा आकाश, पाताल और धरती नापकर राजा बलि को पाताल लोक में भेज दिया. कहते कि पाताल लोक में राजा बलि ने भक्ति के बल पर भगवान विष्णु से रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया. भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया. उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षासूत्र बांधकर अपना भाई बनाया और अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ ले आयीं. उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी.
महाराष्ट्र राज्य में यह त्योहार नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से विख्यात है. इस दिन लोग नदी या समुद्र के तट पर जाकर अपने जनेऊ बदलते हैं और समुद्र की पूजा करते हैं. इस अवसर पर समुद्र के स्वामी वरुण देवता को प्रसन्न करने के लिये नारियल अर्पित करने की परम्परा भी है. राजस्थान में रामराखी और चूड़ाराखी या लूंबा बांधने का रिवाज है. रामराखी सामान्य राखी से भिन्न होती है. इसमें लाल डोरे पर एक पीले छींटों वाला फुंदना लगा होता है. यह केवल भगवान को ही बाँधी जाती है. चूड़ा राखी भाभियों की चूडियों में बांधी जाती है. राजपूत योद्धा जब शत्रु से युद्ध करने जाते थे तब महिलाएं उनको माथे पर कुमकुम का तिलक लगाने के साथ हाथ में रेशमी धागा भी बांधती थी. इस विश्वास के साथ कि यह धागा उन्हे विजयश्री के साथ वापस ले आयेगा.
उत्तरांचल में इसे श्रावणी कहते हैं. ब्राह्मण अपने यजमानों को यज्ञोपवीत तथा राखी देकर दक्षिणा लेते हैं. अमरनाथ की अतिविख्यात धार्मिक यात्रा गुरु पूर्णिमा से प्रारम्भ होकर रक्षाबन्धन के दिन सम्पूर्ण होती है. कहते हैं इसी दिन यहां का हिमानी शिवलिंग भी अपने पूर्ण आकार को प्राप्त होता है. इस उपलक्ष्य में इस दिन अमरनाथ गुफा में प्रत्येक वर्ष मेले का आयोजन भी होता है. नेपाल के पहाडी इलाकों में ब्राह्मण एवं क्षत्रीय समुदाय में रक्षा बन्धन गुरू के हाथ से बांधा जाता है. लेकिन दक्षिण सीमा में रहने वाले भारतीय मूल के नेपाली भारतीयों की तरह बहन से राखी बंधवाते हैं.
नोबेल पुरस्कार विजेता कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने 1905 में बंगाल विभाजन का विरोध करने के लिए इस त्योहार को मनाने को प्रोत्साहित किया था. वह इस त्योहार के माध्यम से विभिन्न समुदायों के बीच एक मजबूत संबंध बनाना चाहते थे. उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों को एक-दूसरे के हाथों पर राखी बांधने के लिए प्रोत्साहित किया, जो भाईचारे और अपने समुदाय के लिए प्यार का प्रतीक है. इस त्योहार का जश्न ब्रिटिश शासकों और बंगाल के विभाजन और हिंदुओं और मुसलमानों के बीच मतभेदों के खिलाफ एक शक्तिशाली प्रयास था.
रक्षाबन्धन पर्व सामाजिक और पारिवारिक एकबद्धता का सांस्कृतिक उपाय रहा है. विवाह के बाद बहन पराये घर में चली जाती है. इस बहाने प्रतिवर्ष अपने सगे ही नहीं अपितु दूरदराज के रिश्तों के भाइयों तक को उनके घर जाकर राखी बांध कर अपने रिश्तों का नवीनीकरण करती रहती है. समाज के विभिन्न वर्गों के बीच भी एक सूत्रता के रूप में इस पर्व का उपयोग किया जाता है. इस प्रकार जो कड़ी टूट गयी है उसे फिर से जागृत किया जा सकता है.
रक्षा बंधन भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है. भारतीय संस्कृति इतनी लचीली है कि इस में हर संस्कृति समाहित होती चली जाती है. कश्मीर से कन्याकुमारी तक, सौराष्ट्र से असम तक देखें तो यहां के लोग प्रतिदिन कोई न कोई त्योहार मनाते मिलेंगे. इन त्योहारों के मूल में आपसी रिश्तों के बीच मधुरता घोलने एवं सरसता लाने की भावना रहती है. भाई-बहन के बीच प्यार, मनुहार व तकरार सामान्य सी बात है. लेकिन रक्षाबंधन के दिन बहन द्वारा भाई के हाथ में बांधे जाने वाले रक्षा सूत्र में भाई के प्रति बहन के असीम स्नेह और बहन के प्रति भाई के कर्तव्यबोध को पिरोया गया है.
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं.)
हिन्दुस्थान समाचार