Dehradun: विपक्ष ने उत्तराखंड विधानसभा में विभिन्न सत्रों की कम समय अवधि का मामला गुरुवार को मानसून सत्र की कार्यवाही के दौरान उठाया. कांग्रेस विधायकों ने कहा कि उत्तराखंड में देशभर के विधानसभा से औसत सत्र कम चलता है. ऐसे में जनहित के मुद्दों पर चर्चा नहीं हो पाती है. जनहित से जुड़े कई सवाल और मुद्दे अनुत्तरित रह जाते हैं.
विपक्ष ने नियम 299 के तहत ध्यानाकर्षण प्रस्ताव लाया और सरकार से इस पर जवाब मांगा. हालांकि सरकार की तरफ से आये जवाब पर संतोष जताते हुए पीठ ने नोटिस को खारिज कर दिया. विपक्ष ने पीठ के निर्णय से नाराजगी जताते हुए हंगामा किया.
कांग्रेस विधायक काजी निजामुद्दीन ने गुरुवार को मानसून सत्र के दूसरे दिन शून्य काल में सदन की कम समय अवधि का मामला उठाया. उन्होंने कहा कि संसद समेत देश भर की विधानसभाओं में तीन सत्र के आयोजन का प्रावधान है. इस दौरान कम से कम 60 दिन सदन के संचालन का रिवाज है. विधायक काजी ने एक पीसीआर रिसर्च का हवाला देते हुए कहा कि पूरे देश की विधानसभाओं में औसतन 22 दिन की कार्यवाही होती है. उत्तराखंड में देखें तो वर्ष 2022 में 8 दिन, 2023 में 10 दिन और 2024 (अब तक) में चार दिन सदन की कार्यवाही हुई है. यानी पिछले तीन वर्ष की बात करें तो औसतन दस दिन भी सदन की कार्यवाही नहीं हुई है. ऐसे में जनहित के मुद्दों पर चर्चा नहीं हो पाती है. कई सवाल और मुद्दे अनुत्तरित रह जाते हैं.
नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने काजी निजामुद्दीन से सहमति जताते हुए कहा कि उत्तराखंड विधानसभा में सत्र के दौरान सोमवार को मुख्यमंत्री से जुड़े विभागों से प्रश्न पूछे जाते हैं. कई साल से सोमवार को सदन की कार्यवाही नहीं हो रही है इसलिए मुख्यमंत्री के विभागों के जवाब नहीं आते हैं. विडंबना यह है कि 40 से अधिक महकमे सीएम के पास हैं. उन्होंने यह भी कहा कि सदन की कम कार्यवाही होने के कारण जनहित के मुद्दों पर व्यापक रूप से चर्चा नहीं हो पाती है. इसका असर विकास कार्यों पर भी पड़ता है. कई समस्याओं का समाधान नहीं निकल पाता है.
विपक्ष की ओर से उठाये गये मुद्दे पर संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने जवाब दिया. उन्होंने कहा कि सदन के कामकाज को बाधित किया जाता है. कम समय अवधि पर सवाल उठाना उचित नहीं है. संसदीय कार्य मंत्री के बयान से नाराज नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि सवाालों के सही जवाब नहीं आयेंगे को सदन की कार्यवाही बाधित होगी. मंत्री अग्रवाल ने कहा कि सरकार भी चाहती है कि सदन चले, लेकिन कार्यवाही का समय बिजनेस के आधार पर तय होता है. बिजनेस नहीं है तो सदन में बैठे रहने से कोई लाभ नहीं है.
यशपाल आर्य ने कहा कि कम बिजनेस के नाम पर सदन को गुमराह किया जा रहा है. बिजनेस लाना सरकार का काम है. प्रेमचंद अग्रवाल ने यह भी कहा है कि ऐसा कोई नियम नहीं है कि कार्यवाही की समयावधि 60 दिन की ही हो. साधारणतया ऐसा हो सकता है. कार्य संचालन नियमावली में यह स्पष्ट है.
विधानसभा अध्यक्ष ऋतू भूषण खंडूड़ी ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद अपना विनिश्चय दिया. उन्हें कहा कि सदन की कार्यवाही सरकार की ओर से तय की जाती है. सरकार बिजनेस लाती है और कार्यमंत्रणा समिति उसे फाइनल करती है. जहां तक पीठ की बात है तो सभी विधायकों को अपनी बात कहने का पूरा मौका दिया जाता है. अनुपूरक सवाल पूछने का अधिकार भी सभी विधायकों को दिया गया है. विपक्ष तमाम मुद्दों को नियम 310 के तहत उठाता है. नियम 310 के तहत प्रावधान है कि एक दिन में एक या दो से अधिक कार्य स्थगन प्रस्ताव नहीं आएंगे. विपक्ष इस प्रावधान का पालन नहीं करता. पांच-पांच कायर्स्थगमन प्रस्ताव लाये जा रहे हैं. इसके बावजूद पीठ सभी कार्यस्थगन प्रस्तावों पर चर्चा कराती है. इसलिए यह आरोप निराधार है कि सदन की कार्यवाही कम समय के लिए संचालित होती है. उन्होंने कहा कि जब बिजनेस होता है तो हम देर रात तक कार्यवाही चलाते हैं. आगे भी ऐसा ही होगा. उन्होंने नियम 299 के तहत ध्यानकर्षण प्रस्ताव को खारिज कर दिया. इससे विपक्ष नाराज हो गया और अपनी सीट से खड़े होकर हंगामा किया.
हिन्दुस्थान समाचार