Dehradun: मैदानी क्षेत्रों से अलग पर्वतीय क्षेत्र में दीपावली की अपनी अनूठी परंपरा है. हालांकि दूरदर्शन चैनलों और फिल्मों के कारण पहाड़ में भी मैदानी क्षेत्रों जैसा माहौल होने लगा है, परंतु पहले की पर्वतीय दिवाली पूरी तरह से विशिष्ट होती थी. गढ़वाल और जौनसार के कुछ क्षेत्रों में एक माह बाद दीपावली मनाने की परंपरा आज भी जीवित है.
जौनसार के सामाजिक कार्यकर्ता सत्यवीर चौहान के अनुसार, राम के अयोध्या आगमन की सूचना इस क्षेत्र के लोगों को एक माह बाद मिली थी, इसी कारण यहां एक माह देरी से दिवाली मनाई जाती है जिसे बूढ़ी दिवाली भी कहा जाता है. इसके अतिरिक्त, यहां के लोग खेती-बाड़ी के कार्यों में व्यस्त रहते हैं, जिस कारण दिवाली का उत्सव एक माह बाद ही उल्लासपूर्वक मना पाते हैं. इस दौरान दिवाली का पर्व एक सप्ताह तक धूमधाम से मनाया जाता है.
इस संदर्भ में वरिष्ठ कांग्रेस नेता सुरेंद्र कुमार का कहना है कि दीपावली एक ऐसा पर्व है जो भाईचारे और उल्लास का प्रतीक है. पर्वतीय क्षेत्र में दीपावली अपने विशेष स्वरूप में मनाई जाती है. जहां मैदानी क्षेत्र की दीवाली में पटाखों और मिठाइयों का उत्सव होता है, वहीं पर्वतीय दिवाली प्रकृति और परंपरा को अधिक महत्व देती है.
ईगास पर्व के लिए यहां के लोगों में अद्वितीय उत्साह देखा जाता है. यह पर्व दिवाली का पर्याय है और इसे देवभूमि के लोग विशेष श्रद्धा के साथ मनाते हैं. उन्होंने दीपावली को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का प्रतीक बताते हुए कहा कि हमें इस पर्व के माध्यम से हर घर को रोशन करने का प्रयास करना चाहिए.
समाजसेवी और पत्रकार वीरेंद्र भारद्वाज ने पर्वतीय क्षेत्रों की दिवाली को सर्वोत्कृष्ट बताते हुए कहा कि हम दीपों की पंक्तियों से वातावरण को रोशन करते हैं. उन्होंने पटाखों के सीमित उपयोग पर जोर देते हुए पर्यावरण को ध्यान में रखने का आग्रह किया. भारद्वाज ने समाज के कुछ वर्गों पर आलोचना करते हुए कहा कि दीपावली पर आतिशबाजी को लेकर टिप्पणी की जाती है, जबकि अन्य त्योहारों के दौरान होने वाली अनुचित परंपराओं पर कोई सवाल नहीं उठाता.
उनका कहना है कि दीपावली असत्य पर सत्य की जीत का पर्व है और हमें इसे उत्साहपूर्वक मनाना चाहिए.
हिन्दुस्थान समाचार