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AMU: अलिगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं, देश की सर्वोच्च अदालत ने सुनाया फैसला

Diksha Gupta by Diksha Gupta
Nov 8, 2024, 12:28 pm GMT+0530
Supreme Court on AMU

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की संविधान बेंच ने 4:3 के बहुमत से अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) को अल्पसंख्यक संस्थान कहा है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ समेत चार जजों ने इस विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान कहा है जबकि तीन जजों ने इस फैसले से असहमति जताई है.

चीफ जस्टिस के अलावा जिन जजों ने इसे अल्पसंख्यक संस्थान कहा, वो हैं जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा हैं. वहीं इस फैसले से असहमत होने वाले जजों में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्ट्स सतीश चंद्र शर्मा हैं. सुप्रीम कोर्ट के इस बहुमत के फैसले से 1967 का अजीज बाशा का फैसला पलटा गया. अजीज बाशा के फैसले में कहा गया था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान का दावा नहीं कर सकती है क्योंकि ये एक कानून के तहत अस्तित्व में आया है.

चीफ जस्टिस ने कहा कि हमारे सामने सवाल था अनुच्छेद 30ए के तहत किसी संस्था को अल्पसंख्यक माने जाने के मानदंड क्या हैं. चीफ जस्टिस ने कहा कि इस मामले मे केंद्र का कहना है कि इस बात पर विवाद नहीं किया जा सकता कि अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव न किए जाने की गारंटी देता है. हालांकि यहां सवाल यह है कि क्या इसमें गैर-भेदभाव के अधिकार के साथ-साथ कोई विशेष अधिकार भी है.

चीफ जस्टिस ने कहा कि किसी भी नागरिक द्वारा स्थापित शैक्षणिक संस्थान को अनुच्छेद 19(6) के तहत विनियमित किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक अनुच्छेद 30 के तहत अधिकार निरपेक्ष नहीं है. अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान के विनियमन की अनुमति अनुच्छेद 19(6) के तहत दी गई है, बशर्ते कि यह संस्थान के अल्पसंख्यक चरित्र का उल्लंघन न करे. चीफ जस्टिस ने कहा कि कोई भी धार्मिक समुदाय एक संस्था स्थापित तो कर सकता है, लेकिन उसका प्रशासन नहीं संभाल सकता. उन्होंने कहा कि संविधान के पहले के और उसके बाद के जो इरादे हों उनके बीच अंतर अनुच्छेद 30(1) को कमजोर करने के लिए नहीं किया जा सकता है.

उल्लेखनीय है कि संविधान बेंच ने एक फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा था कि आखिर वो संसद की ओर से किए गए संशोधन का समर्थन कैसे नहीं कर सकते हैं. 12 फरवरी, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को सात जजों की संविधान बेंच को रेफर कर दिया था. तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह आदेश दिया था. कोर्ट ने कहा था कि एएमयू कोर्ट का अंतिम फैसला आने तक मुस्लिमों का दाखिला देकर सकता है.

वर्ष 2019 में सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने हलफनामा देकर कहा था कि एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं दिया जा सकता. जबकि पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने जामिया यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने की वकालत की थी. 29 अगस्त, 2011 को यूपीए सरकार ने नेशनल कमीशन फॉर माइनॉरिटी एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस के फैसले पर सहमति जताई थी. वर्तमान केंद्र सरकार ने अपने ताजे हलफनामे में कहा है कि पहले के हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अजीश बाशा केस में दिए गए फैसले को नजरंदाज कर दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय नहीं है, क्योंकि इसे ब्रिटिश सरकार ने स्थापित किया था, ना कि मुस्लिम समुदाय ने.

हिन्दुस्थान समाचार

Tags: Aligarh Muslim UniversityAMUJustice DY ChandrachudSupreme CourtSupreme Court of India
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