नई दिल्ली: विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने मंगलवार को लोकसभा को जानकारी दी कि चीनी कार्रवाई के चलते सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति भंग होने के कारण भारत-चीन संबंध 2020 के बाद से सामान्य नहीं रहे थे. हमारे निरंतर राजनयिक प्रयासों से हाल ही में संबंधों में कुछ सुधार आया है.
विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने मंगलवार को लोकसभा में भारत-चीन संबंधों पर एक बयान दिया. उन्होंने कहा कि सीमा पर शांति और अमन-चैन रिश्तों के सामान्य होने की पहली शर्त है. चीन के साथ बातचीत में राष्ट्रीय हितों को व्यापक तौर पर साधा जा रहा है. दोनों पक्षों (भारत और चीन) को एलएसी का सख्ती से सम्मान और पालन करना चाहिए. किसी भी पक्ष को यथास्थिति को एकतरफा बदलने का प्रयास नहीं करना चाहिए.
उन्होंने कहा कि सीमा से जुड़े मुद्दों के समाधान के लिए निष्पक्ष, उचित और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य ढांचे पर पहुंचने के लिए द्विपक्षीय चर्चाओं के माध्यम से चीन के साथ जुड़ने के लिए भारत प्रतिबद्ध है. दोनों देशों के बीच कुछ क्षेत्रों के बारे में वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर समझ का अभाव है.
विदेश मंत्री ने सदन को डेप्सांग और डेमचोक के संबंध में 21 अक्टूबर, 2024 को हुए समझौते के बारे में सूचित किया. उन्होंने बताया कि दोनों स्थानों को लेकर अस्थिरता की स्थिति और इनके द्विपक्षीय संबंधों पर प्रभाव को देखते हुए समझौता जरूरी था. हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र में अग्रिम तैनाती हटाने को लेकर अंतिम समझौता होने के बाद से दोनों क्षेत्र सितंबर 2022 से चीनी पक्ष के साथ डब्ल्यूएमसीसी और एसएचएमसी दोनों में हमारी चर्चाओं का केंद्र रहे हैं .
विदेश मंत्री ने कहा कि 21 अक्टूबर को बनी सहमति के बाद प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 23 अक्टूबर को कज़ान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान एक बैठक की. उन्होंने इस सहमति का स्वागत किया और विदेश मंत्रियों को बैठक कर संबंधों को स्थिर और पुनर्निर्माण करने का निर्देश दिया. विशेष प्रतिनिधियों को सीमा प्रश्न का निष्पक्ष, उचित और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान तलाशने के अलावा शांति और सौहार्द्र के प्रबंधन की देखरेख भी करनी है. इसके अनुसरण में उन्होंने हाल ही में 18 नवंबर, 2024 को रियो डी जेनेरियो में जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान विदेश मंत्री वांग यी के साथ फिर से चर्चा की.जयशंकर ने कहा कि सदन को पता है कि 2020 से हमारे संबंध असामान्य रहे हैं, जब चीनी कार्रवाइयों के परिणामस्वरूप सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और सौहार्द्र भंग हुआ था.
हाल के घटनाक्रम जो तब से हमारे निरंतर कूटनीतिक जुड़ाव को दर्शाते हैं, जिससे हमारे संबंधों में कुछ प्रगति हुई है. सदन इस तथ्य से अवगत है कि 1962 के संघर्षों और उससे पहले की घटना के परिणामस्वरूप चीन अक्साई चिन में 38,000 वर्ग किमी भारतीय क्षेत्र पर अवैध कब्जा कर रखा है. इसके अलावा पाकिस्तान ने 1963 में अवैध रूप से 5,180 वर्ग किमी भारतीय क्षेत्र चीन को सौंप दिया, जो 1948 से उसके कब्जे में है. भारत और चीन ने सीमा मुद्दे को सुलझाने के लिए कई दशकों तक बातचीत की है. सीमा विवाद के समाधान के लिए निष्पक्ष, उचित और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य रूपरेखा पर पहुंचने के लिए द्विपक्षीय चर्चा की गई. विदेश मंत्री ने सदस्यों को याद दिलाया कि अप्रैल-मई 2020 में पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर चीन द्वारा बड़ी संख्या में सैनिकों को एकत्र करने के परिणामस्वरूप कई बिंदुओं पर हमारी सेनाओं के साथ आमना-सामना हुआ. इस स्थिति के कारण गश्ती गतिविधियों में भी बाधा उत्पन्न हुई. यह हमारे सशस्त्र बलों के लिए श्रेय की बात है कि रसद संबंधी चुनौतियों और तत्कालीन कोविड स्थिति के बावजूद वे तेजी से और प्रभावी ढंग से जवाबी तैनाती करने में सक्षम थे.
विदेश मंत्री ने कहा कि हम इस बात को लेकर बहुत स्पष्ट हैं कि शांति और सौहाद्र की बहाली ही बाकी रिश्तों को आगे बढ़ाने का आधार होगी. 2020 से ही हमारा जुड़ाव इसी उद्देश्य पर केंद्रित रहा है. यह विभिन्न स्तरों पर हुआ, जिसमें सरकार के विभिन्न अंग शामिल थे. मैंने खुद अपने चीनी समकक्ष के साथ बैठकें की हैं, जैसा कि मेरे वरिष्ठ सहयोगी रक्षा मंत्री ने भी किया है. हमारे एनएसए ने भी अपने चीनी समकक्ष के साथ बातचीत की है, दोनों ही सीमा प्रश्न पर विशेष प्रतिनिधि हैं. राजनयिक स्तर पर सहयोग और समन्वय के लिए कार्य तंत्र (डब्ल्यूएमसीसी) द्वारा अधिक विस्तृत चर्चा की गई. इसका सैन्य समकक्ष वरिष्ठ सर्वोच्च सैन्य कमांडरों की बैठक (एसएचएमसी) तंत्र था. बातचीत में राजनयिक और सैन्य अधिकारियों की संयुक्त उपस्थिति के साथ स्वाभाविक रूप से बातचीत बहुत अच्छी तरह से समन्वित थी. जून 2020 से डब्ल्यूएमसीसी की 17 बैठकें और एसएचएमसी के 21 दौर हो चुके हैं.
हिन्दुस्थान समाचार