नैनीताल: नैनीताल हाई कोर्ट ने उत्तराखंड लघु खनिज (रियायत) नियमावली में संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद निर्णय दिया है कि इस संशोधन के तहत खनन की दी गई अनुमति में नदी तल सामग्री को हटाने के लिए मशीनों का उपयोग नहीं किया जाएगा. कोर्ट ने सरकार सहित अन्य पक्षकारों को चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं.
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी व न्यायमूर्ति विवेक भारती शर्मा की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई. मामले के अनुसार सत्येंद्र सिंह चौहान ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि राज्य सरकार ने लेटर ऑफ इंटेंट धारकों को पिछले दरवाजे से प्रवेश दिया है जो ड्रेजिंग नीति की आड़ में खनन कार्य करने के लिए संबंधित एजेंसियों से अनुमति प्राप्त करने में असमर्थ हैं. यह अनुमति तभी तक रहेगी जब तक संबंधित एजेंसियों से आवश्यक मंजूरी नहीं मिल जाती.
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि उपनियम (9) का प्रयोग कर राज्य के भीतर सभी नदियों में खनन की अनुमति दी गई है, भले ही केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और अन्य संबंधित एजेंसियों द्वारा आवश्यक अनुमति ना मिली हो. उन्होंने कहा कि इस तरह का खनन मशीनों का उपयोग करके किया जाता है, जो खनन नीति और उत्तराखंड लघु खनिज (रियायत) नियम, 2023 के प्रावधानों के तहत भी अनुमन्य नहीं है. सरकारी अधिवक्ता के अनुसार इस प्रावधान के अनुसार केवल ऐसे व्यक्ति को खनन कार्य करने की अनुमति है, जिसे आशय पत्र जारी किया गया है,जो रॉयल्टी के रूप में देय राशि का दोगुना भुगतान करने के लिए तैयार है.
उन्होंने स्पष्ट किया कि नदियों को चैनलाइज करने के लिए ड्रेजिंग की जाती है, ताकि नदी अपना मार्ग न बदलें. यह भी कहा कि संशोधित प्रावधान यह सुनिश्चित करने के लिए है कि जिस व्यक्ति को आशय पत्र दिया गया है, उसे संबंधित एजेंसियों द्वारा खनन के लिए मंजूरी देने में देरी के कारण नुकसान न उठाना पड़े. यदि ड्रेजिंग नीति के तहत किसी अन्य व्यक्ति को आरबीएम निकालने की अनुमति दी जाती है, तो यह उस व्यक्ति के साथ अन्याय होगा, जिसे उसी नदी से खनन के लिए पहले से ही आशय पत्र दिया गया है. कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए आठ जनवरी की तारीख दी है.
हिन्दुस्थान समाचार