Dehradun: रुद्रप्रयाग जिले के कोट तल्ला गांव की 75 वर्षीय भादी देवी ने अपने समर्पण और मेहनत से कौंणी (कंगनी) जैसे विलुप्त हो रहे मोटे अनाज का संरक्षण किया है. पिछले 12 वर्षों से उन्होंने 20 किलो से अधिक कौंणी के बीज को सुरक्षित रखा है, साथ ही 16 से अधिक प्रकार के अन्य प्राचीन अनाज भी संरक्षित किए हैं. अब भादी देवी अपने खेतों में इस पुराने अनाज की बुआई करने की योजना बना रही हैं, जिससे आने वाले वर्षों में कौंणी की फसल फिर से लहलहाती नजर आएगी.
क्या है कौंणी अनाज ?
कौंणी, जिसे कंगनी भी कहा जाता है, एक प्राचीन माेटा अनाज है, जाे पहाड़ के गांव में मंडुवा, झंगोरा के साथ यह फसल प्रमुख हुआ करती थी. बीते कुछ वर्षों से कौंणी खेतों से लगभग गायब हो गई है. स्थिति यह है कि अगस्त्यमुनि ब्लॉक के धनपुर, बच्छणस्यूं, तल्लानागपुर सहित ऊखीमठ और जखोली ब्लॉक के गांवों में भी कौंणी ढूढ़ने से नहीं मिल रही है. रानीगढ़ पट्टी के 25 गांवों में सिर्फ कोट तल्ला गांव में 75 वर्षीय महिला भादी देवी के घर पर ही कौंणी का बीज मिला है. महिला के पास लगभग 10 से 12 वर्ष पुराना 20 किलो कौंणी का बीज है, जो पूरी तरह से सुरक्षित है. इसके अलावा उनके पास काला भट्ट, हरा भट्ट, काले तिल, झंगोरा, सोयबिन, मंडुवा, ज्वार सहित 16 किस्म का अन्य अनाज भी है. बजुर्ग महिला का कहना है कि वह इस बार अपने खेतों में कौंणी की बुआई करेंगी, जिससे उन्हें नये बीज मिल सके और आगामी वर्षों में बेहतर उत्पादन हो सके.
उन्हाेंने बताया कि गांव सहित पूरे क्षेत्र में 10-12 वर्षों पूर्व कौंणी का अच्छा उत्पादन होता था. कई परिवार तो इस अनाज का वर्षभर उपभोग करते थे. साथ ही पशुओं के लिए भी इस अनाज का पींडा बनाया जाता था. गांवों से पलायन होने के साथ ही यह अनाज भी विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गया. इधर, स्थानीय निवासी व पर्यावरण विज्ञान के जानकार राघवेंद्र सिंह चौधरी बताते हैं कि कोट तल्ला गांव में भादी देवी के पास 12 वर्ष पुराना 20 किलो कौंणी मिला है, जो सुखद है. उम्मीद है कि बुजुर्ग काश्तकार की इस पहल से कौंणी से फिर खेत लहलहाएंगे. उन्होंने बताया कि वह पूरे क्षेत्र में प्राचीन बीजों के बारे में जानकारी प्राप्त कर रहे हैं और उन्हें संरक्षित करने के लिए काम किया जाएगा.
कृषि विज्ञान केंद्र ने कौंणी को विशेष योजना में किया शामिल
वर्ष 2023 में भारत सरकार ने मिलेट योजना के तहत मोटे अनाज वर्ष घोषित किया था. तब से मंडुवा, झंगोरा, जुआर और कौंणी के उत्पादन को लेकर निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं. इधर, कृषि विज्ञान केंद्र बणसू-जाखधार द्वारा भी कौंणी का उत्पादन प्राकृतिक तरीके से बढ़ाने के लिए इस विशेष योजना में शामिल किया गया है. संस्थान के प्रभारी व वरिष्ठ वैज्ञानिक डाॅ. संजय सचान ने बताया कि कौंणी सहित अन्य मोटे अनाज के प्राकृतिक उत्पादन पर शोध किया गया है, जिसका परिणाम बेहतर आया है.
पोषक तत्वों की खान है कौंणी
अब केदारघाटी सहित जनपपद के अन्य क्षेत्रों में कौंणी उत्पादन के लिए काश्तकारों को प्रेरित किया जाएगा. उन्होंने बताया कि कौंणी में प्रोटीन, कार्बाेहाइड्रेड सहित बसा, खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में होते हैं.
हिन्दुस्थान समाचार