गांधीनगर/अहमदाबाद: उत्तराखंड के बाद गुजरात में भी समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू की जाएगी. इसके लिए सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना देसाई की अध्यक्षता में एक पांच सदस्यीय समिति गठित की गई है. इस समिति काे 45 दिनाें में अपनी रिपाेर्ट सरकार काे पेश करनी हाेगी.
उत्तराखंड के बाद गुजरात समान नागरिक संहिता लागू करने की पहल करने वाला दूसरा राज्य बनने जा रहा है. मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने कहा कि राज्य सरकार प्रदेश में रहने वाले सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार और विशेषाधिकार सुनिश्चित करने की दिशा में आगे बढ़ रही है. गुजरात में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता की जांच करने और कानून का मसौदा तैयार करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना देसाई की अध्यक्षता में एक पांच सदस्यीय समिति गठित की गई है. समिति के सदस्याें में वरिष्ठ सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी सी.एल. मीना, एडवोकेट आर.सी. कोडेकर, पूर्व कुलपति दक्षेस ठाकर, सामाजिक कार्यकर्ता गीताबेन श्रॉफ काे रखा गया है.
राज्य में समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने की योजना के बारे में मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में आजादी की 75वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है, ऐसे में प्रधानमंत्री ने देशभर में समान नागरिक संहिता लागू करने का निर्णय लिया है. देश के सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करना है. भाजपा सरकार जो कहती है वह करती है. एक राष्ट्र-एक चुनाव, अनुच्छेद 370, तीन तलाक कानून आदि को लेकर किए गए वादे एक के बाद एक पूरे किए गए हैं. अब समान नागरिक संहिता लागू करने का संकल्प लिया गया है. गुजरात इस संकल्प को पूरा करने के लिए सदैव प्रतिबद्ध है. यह राज्य में रहने वाले सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार और विशेषाधिकार सुनिश्चित करने की दिशा में आगे बढ़ाता है.
इसके लिए सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश रंजना देसाई की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई है, जो गुजरात में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता की जांच करेगी और कानून का मसौदा तैयार करेगी. इस पांच सदस्यीय समिति में एक वरिष्ठ सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी भी शामिल हैं. सी एल मीना, आर सी कोडेकर, दक्षेश ठाकर, गीताबेन श्रॉफ काे इसमें रखा गया है. यह समिति सभी पहलुओं का अध्ययन कर 45 दिनों के भीतर राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंपेगी. सरकार इस रिपोर्ट के आधार पर निर्णय लेगी.
गृह राज्य मंत्री हर्ष सांघवी ने कहा कि यूसीसी काे लेकर राज्य सरकार ने एक समिति गठित की है. यह समिति अपनी रिपाेर्ट बनाएगी. रिपोर्ट उन्हीं नियमों के आधार पर तैयार की जाएगी, जाे वादे किए गए हैं. रंजना देसाई की नियुक्ति के पीछे के कारणों के बारे में उन्होंने कहा कि चयन अनुभव के आधार पर किया जाता है. उनके पास व्यापक अनुभव है और वे सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रहे चुके हैं. इस कानून से आदिवासी अधिकारों पर असर पड़ेगा या नहीं, इस पर गृह राज्य मंत्री ने कहा कि उत्तराखंड सरकार का यूसीसी मॉडल अद्भुत है. इस मॉडल में जनजातीय समुदाय के अधिकारों को समान नागरिक संहिता अधिनियम में शामिल नहीं किया गया है.
गुजरात के गृह मंत्री ने अपनी झारखंड बैठक के दौरान यह भी कहा कि आदिवासी समुदाय के रीति-रिवाजों और कानूनों की पूरी तरह से रक्षा की जाएगी. गुजरात में धर्म के आधार पर निवास का विभाजन (अशांत अधिनियम) है, जो घटना के आधार पर तय होता है. इसलिए यह मुद्दा प्रासंगिक नहीं है. 45 दिन के अंदर रिपोर्ट आने के बाद मुख्यमंत्री निर्णय लेंगे और विधेयक विधानसभा में पेश किया जाएगा. हिन्दू विभाजित परिवार (एचयूएफ) इसके लिए एक अलग कानून भी है. यह किसी एक समाज के लिए कानून नहीं है. धर्म से जुड़े लोगों को भी इस समिति में शामिल किया जाएगा. सभी समीक्षाएं रिपोर्ट में प्रस्तुत की जाएंगी.
उल्लेखनीय है कि गुजरात में समान नागरिक संहिता के लिए गठित समिति में शामिल अध्यक्ष न्यायमूर्ति रंजना देसाई सर्वोच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश रही हैं. उन्हाेंने 13 सितम्बर 2011 से 29 अक्टूबर 2014 तक सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश रहते हुए कई अहम मामलाें में फैसले किए. न्यायमूर्ति रंजना देसाई जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं. 70 के दशक में वकालत शुरू करने वाले न्यायमूर्ति देसाई सर्वोच्च न्यायालय में आने से पहले बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थीं.
हिन्दुस्थान समाचार