Delhi Election Result 2025: सत्ताईस साल लंबे बनवास के बाद दिल्ली की सरकार में भारतीय जनता पार्टी की वापसी हो गई. 5 फरवरी को दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों के लिए हुए मतदान के नतीजे आज (8 फरवरी) को घोषित हुए. कांग्रेस आधी-अधूरी तैयारी से चुनाव लड़ी. उसे पिछली बार के 4.26 के मुकाबले करीब साढ़े छह फीसदी वोट मिले. उसे कोई सीट नहीं मिली लेकिन इतने कम वोट लाकर भी कई सीटों पर भाजपा की जीत में कांग्रेस ने बड़ी भूमिका निभाई. यह चुनाव इस मायने में ऐतिहासिक रहा कि न केवल आम आदमी पार्टी (आप) हारी बल्कि उसके सर्वेसर्वा और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पार्टी में नंबर दो का दर्जा रखने वाले पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया समेत अनेक नेता चुनाव हार गए. मौजूदा मुख्यमंत्री आतिशी मामूली अंतर से भाजपा के रमेश बिधूड़ी से चुनाव जीत पाईं.
राजधानी के राजनीतिक गलियारों में जितनी चर्चा इस जीत के बाद भाजपा की ओर से बनने वाले मुख्यमंत्री के नाम की है उससे अधिक आप के बिखरने की है. कांग्रेस के अनेक नेता अपनी पार्टी की हार से परेशान कम हैं, वे आप की हार से गदगद हैं. दिल्ली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता चतर सिंह का कहना है कि इस चुनाव के परिणाम ने दिल्ली से आप की स्थायी विदाई कर दी है. अब दिल्ली में कोई भी अगला चुनाव भाजपा और कांग्रेस के बीच होगा.
चुनाव परिणाम आते ही दिल्ली का ही नहीं देश की राजनीति का नजारा बदलने लगा. आप पूरी तरह से केजरीवाल की पार्टी है. उनके अलावा उस पार्टी का हर नेता उनका अनुचर है और पार्टी को वोट देने वालों में बड़ी तादाद में आप सरकार के लाभार्थी. इस चुनाव में भाजपा ने पूरा चुनाव प्रचार केजरीवाल व आप की ईमानदार और नए प्रयोग करने वाली छवि को ध्वस्त करने पर केन्द्रित रखा. केजरीवाल को कट्टर ईमानदार से भारी बेईमान साबित करने के सफल प्रयास किए. जिन उपलब्धियों को केजरीवाल और आप के नेता गिनाते रहे, उसकी काट भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस के नेता करते रहे.
इतना ही नहीं, जिन तीन कामों को न कर पाने के लिए केजरीवाल ने एक और अवसर देने की लोगों से अपील की, उन्हीं तीन मुद्दों- यमुना सफाई, हर घर को 24 घंटे साफ पानी और दिल्ली की सड़कों को विश्वस्तरीय बनाने के केजरीवाल के पुराने दावे को मुख्य मुद्दा बनाया. साथ ही जिन रेवड़ियों (मुफ्त घोषणाओं) से दिल्ली की गरीब और निम्न वर्गीय जनता ने 2013 के विघानसभा चुनाव में आप की मजबूत बुनियाद रखी और 2015 एवं 2020 में प्रचंड बहुमत दिया, उसे बढ़ाकर देने के वादे किए. महिलाओं को पंजाब में आप ने हर महीने पैसे देने की घोषणा की लेकिन अभी तक केवल उसका विज्ञापन करते रहे. दिल्ली में मंत्रिमंडल से पास करवाया एक हजार रुपये महीना और घोषणा कर दी 2100 रुपये हर महीने देने की. उसकी भी पहली किस्त नहीं दी. इसी तरह की तमाम घोषणाओं और वादों पर भाजपा ने उसे पूरे चुनाव प्रचार में घेरा.
केजरीवाल और सिसोदिया समेत आप के अनेक आला नेताओं के शराब घोटाले में जेल जाने को आप नेता केन्द्र सरकार से प्रताड़ित करने (वीक्टिम कार्ड) का मुद्दा बनाने के प्रयास 2024 के लोकसभा, हरियाणा चुनाव से लेकर दिल्ली विधानसभा चुनाव में किए लेकिन जनता ने उसको सही नहीं माना. इस चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा (गेम चेंजर) स्थानीय मुद्दों पर आप को घेरने की भाजपा की रणनीति काम आई. इस चुनाव में कोई देशी-विदेशी मुद्दा न आया और न ही भाजपा ने धार्मिक ध्रुवीकरण का प्रयास किया. चुनाव से पहले मुख्यमंत्री का नाम न घोषित करने को पहले भाजपा की असफलता माना जा रहा था, वही भाजपा में गुटबाजी रोकने का यह सबसे कारगर तरीका बना. केजरीवाल के मुकाबले भाजपा के नेता के नाम के सवाल को मुद्दा बनता देख चुनाव प्रचार की कमान खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संभाल ली. उन्होंने आम आदमी पार्टी को नया नाम दिया– आप-दा. अपने भाषणों में उन्होंने अपने अंदाज में कहा कि भाजपा का संकल्प मोदी की गारंटी है. उन्होंने चुनाव प्रचार में खुलकर आप पर हमला किया. संयोग से चुनाव प्रचार के एक दिन पहले लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर उनका जवाब एक तरह से दिल्ली पर केन्द्रित रहा. इतना ही नहीं, नए बजट में आय-कर की छूट सीमा बढ़ा कर 12 लाख सलाना करने और केन्द्र सरकार के कर्मचारियों के लिए नया वेतन आयोग की घोषणा से सरकारी कर्मचारी और मध्यम वर्ग का भरपूर समर्थन भाजपा को मिला. इस वर्ग में ही अच्छी पैठ बना कर केजरीवाल ने लगातार दो चुनावों में भारी बहुमत जुटा लिया था.
पहले उन्होंने गरीब तबका, अल्पसंख्यक और दलितों को बिजली-पानी फ्री के नाम पर जोड़ा, फिर बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था का सब्जबाग दिखा कर मध्यम वर्ग को जोड़ने की कोशिश की. गरीब तबके पर उनका पूरा असर इस चुनाव में कम होता नहीं दिखा लेकिन अलग-अलग इलाकों में इस तबके के मतों का बंटवारा दिखा. अल्पसंख्यक बहुल सीटों पर भी उन सीटों पर जिन पर एक से ज्यादा मजबूत अल्पसंख्यक उम्मीदवार थे, उनमें मतों का बंटवारा हुआ और कई ऐसी सीटों पर भाजपा को जीत मिल गई.
दिल्ली में 1993 में विधानसभा बनने के बाद पहले चुनाव में भाजपा जीती. 1998 से भाजपा सत्ता से बाहर हो गई. 1998, 2003 और 2008 में दिल्ली में शीला दीक्षित की अगुवाई में कांग्रेस की सरकार बनी. 2013 के चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला. 32 सीटों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी. उसके मना करने पर आप ने कांग्रेस के सहयोग से सरकार बनाई. वह सरकार केवल 49 दिन चली. 2014 में पहली बार दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगा. 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में आप को 67 और भाजपा को 3 और 2020 के विधानसभा चुनाव में आप को 62 और भाजपा को 8 सीटें मिलीं. दिल्ली से बाहर आप की पंजाब में सरकार बनी और गुजरात में पांच विधायक जीते. वर्ष 2022 में आप पहली बार दिल्ली नगर निगम चुनाव जीत गई. लोकसभा चुनाव भाजपा लगातार दिल्ली की सीटें जीतती रही लेकिन विधानसभा चुनाव हारती रही. 27 साल बाद पहली बार उसे दिल्ली की जनता ने विधानसभा चुनाव में भारी जनादेश दिया है.
आप पूरी तरह से केजरीवाल की पार्टी है. यह न तो कार्यकर्ता आधारित पार्टी है और न ही बिहार, उत्तर प्रदेश आदि कुछ राज्यों में ताकतवर जाति आधारित पार्टी. यह तो केजरीवाल समर्थकों और उससे लाभ पाने वालों की पार्टी है. इसलिए आप के दिल्ली विधानसभा चुनाव हारने से ज्यादा खुद केजरीवाल के नई दिल्ली सीट से पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह के पुत्र प्रवेश वर्मा से पराजित होने से पार्टी के बिखरने का खतरा हो गया है. आने वाले दिनों में लोगों की इसी पर नजर रहेगी. इस हार के बाद आप की तुलना छात्र राजनीति से असम की सत्ता में आने वाली पार्टी असम गण परिषद् से शुरू हो गई है. 2012 में बनी पार्टी का भविष्य संकट भरा दिखने लगा है.
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार के कार्यकारी संपादक हैं.)
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