Holashtak 2025: होली से आठ दिन पहले लगने वाला होलाष्टक आज यानी 7 मार्च से शुरू हो चुका है और इसका समापन 13 मार्च को होलिका दहन के साथ होगा. इन आठ दिनों में किसी भी शुभ कार्य को करने की मनाही होती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दौरान किए गए मांगलिक कार्य अशुभ परिणाम दे सकते हैं. आइए जानते हैं होलाष्टक के दौरान कौन-कौन से कार्य वर्जित माने जाते हैं.
होलाष्टक में ये कार्य है वर्जित
1. शादी-विवाह और गृह प्रवेश पर रोक: इस दौरान शादी, विवाह, भूमि पूजन, गृह प्रवेश या कोई नया व्यापार शुरू करना शुभ नहीं माना जाता. ग्रहों की स्थिति में बदलाव के कारण इस समय कोई भी मांगलिक कार्य करना वर्जित होता है.
2. संस्कार संबंधित कार्य भी वर्जित: नामकरण संस्कार, जनेऊ संस्कार, गृह प्रवेश, विवाह संस्कार जैसे 16 संस्कारों पर भी रोक होती है. इस समय किए गए संस्कार व्यक्ति के जीवन में नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं.
3. हवन और यज्ञ करने की मनाही: किसी भी प्रकार के हवन, यज्ञ और धार्मिक अनुष्ठान इन दिनों में नहीं किए जाते हैं. इस समय ग्रहों की स्थिति अशांत मानी जाती है, जिससे किए गए धार्मिक कार्यों का फल नहीं मिलता.
4. नव विवाहिताएं मायके में रहें: परंपराओं के अनुसार, नव विवाहिताओं को इन दिनों में अपने मायके में रहने की सलाह दी जाती है. ऐसा माना जाता है कि इस समय नव दंपत्ति के जीवन में अशुभ प्रभाव पड़ सकता है.
5. धातु खरीदारी करने से बचे: होलाष्टक के दौरान धातु जैसे सोना, चांदी इत्यादि को खरीदने से बचना चाहिए साथ ही नए सामान को धारण भी नहीं करना चाहिए.
क्या करें होलाष्टक के दौरान?
1. भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की भक्ति करें.
2. जरूरतमंदों को अन्न-जल का दान करें.
3. होलिका दहन की तैयारी करें और सकारात्मक विचार रखें.
होलाष्टक का वैज्ञानिक पक्ष
कुछ विद्वानों के अनुसार होलाष्टक के दौरान मौसम में बदलाव होता है, जिससे शरीर पर भी प्रभाव पड़ता है. इस समय गर्मी और ठंडक के बीच संक्रमण काल रहता है, जिससे बीमारियां बढ़ सकती हैं. इसलिए इस समय संयम रखना और सात्विक भोजन करना लाभदायक माना जाता है.
होलाष्टक का धार्मिक महत्व
होलाष्टक के दौरान शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं. इस अवधि में ग्रहों की स्थिति में विशेष परिवर्तन होता है, जिससे ऊर्जा असंतुलित रहती है. मान्यता है कि इस दौरान मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, नामकरण संस्कार आदि करने से कष्ट बढ़ सकते हैं. इन आठ दिनों में व्यक्ति के जीवन में कलह, बीमारी और अकाल मृत्यु का साया मंडराने लगता है.