Holika Dahan: हिंदूओं के प्रसिद्ध त्योहार होली की धूम देश समेत पूरी दुनियाभर में है . यह त्योहार प्रत्येक साल फाल्गुन महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है लेकिन इसकी तैयारी कई दिन पहले ही शुरू हो जाती है. होली पर सभी घरों में भांति-भांति के पकवान बनते हैं और नए-नए वस्त्र खरीदे जाते हैं. होली समाज को एकजुट करने और गिल शिकवे भुलाकर एक साथ मिल-जुलकर रहने की प्रेरणा देता है.
होली से एकदिन पहले होलिका दहन किया जाता है. जिसे आमतौर पर छोटी होली के नाम से जाना जाता है. यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. इस दिन लकड़ी, उपलों से हर गली-मोहल्लों में होलिका का ढांचा बनाया बनाया जाता है. महिलाएं गुड़-घी हल्दी आदि से होलिका का पूजन करती है. गोबर की गुलरियां, फूलमाला, जल चढ़ाकर और कलावा बांधकर होलिका की परिक्रमा की जाती है. जिसके बाद देर शाम शुभ मुहुर्त में होलिका का दहन किया जाता है.
तिथि और शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास की पूर्णिमा 13 मार्च 2025 को सुबह 10:35 बजे से प्रारंभ हो रही है. हालांकि, भद्राकाल के कारण होलिका दहन का आयोजन 13 मार्च की रात 11:27 बजे से किया जाएगा. इसी दिन पूर्णिमा का व्रत भी रखा जाएगा.
मान्यता है कि इस समय मनुष्य जो भी मनोकामना करते हैं वह पूरी होता है. होलिका दहन के पीछे कई पौराणिक कथाएं प्रसिद्ध हैं. चलिए हम आपको बताते हैं.
होलिका दहन की पौराणिक कथा
होलिका दहन की परंपरा भक्त प्रह्लाद और उनके पिता राजा हिरण्यकश्यप से जुड़ी हुई है. हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु का शत्रु था, जबकि उसका पुत्र प्रह्लाद शुरू से ही धार्मिक प्रवृत्ति का था. वह विष्णु का अनन्य भक्त था और नारायण की पूजा किया करता था. लेकिन हिरण्यकश्यप खुद को भगवान मानता था. उसकी इच्छा थी कि उसकी भी पूजा भगवान की तरह ही की जाए.
जब प्रह्लाद ने हिरण्यकश्यप की पूजा करने से मना कर दिया तो प्रहलाद उसने भक्त प्रह्लाद को यातनाएं देना शुरू कर दिया. फिर भी प्रह्लाद नहीं माने तो उसने अपनी बहन होलिका की सहायता ली. बता दें कि होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जल सकती. वह प्रह्लाद को देखकर अग्नि में बैठी और जलने लगी. वह प्रह्लाद भगवान विष्णु की स्तुति करने लगे. भगवान की लीला देखिए प्रह्लाद को आग की लपटे छू भी नहीं सकी. वहीं होलिका जलकर राख हो गई. तभी से होली का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर माना जाता है.
राधा-कृष्ण से जुड़ी है कथा
होली से जुड़ी एक और एक कहानी राधा और कृष्ण से जुड़ी हुई है. जब भगवान श्रीकृष्ण शिशु थे तब उन्होंने पुतना नामक राक्षस का दूध पिया था. जिसमें विष था जिसकी वजह से भगवान रंग नीला हो गया था. भगवान को डर था कि उनका नीला रंग देखकर देवी राधा उनसे प्रेम नहीं करेगी. लेकिन राधा ने कृष्ण को अपनी त्वचा को रंग से रंगने से अनुमति दे दी और जमकर होली खेली.
होली त्योहार का महत्व
बुराई पर अच्छाई की विजय– यह पर्व हमें सिखाता है कि सत्य और भक्ति की हमेशा जीत होती है.
नकारात्मक ऊर्जा का नाश– ऐसा माना जाता है कि होलिका दहन की अग्नि नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करती है.
नई फसल का उत्सव – यह पर्व कृषि से जुड़ा हुआ है, क्योंकि इस समय नई फसल तैयार होती है और किसान इसका स्वागत करते हैं.
सामाजिक समरसता – होली एक ऐसा पर्व है जो लोगों को गिले-शिकवे भुलाकर प्रेम और सौहार्द्र बढ़ाने का संदेश देता है.