Madmaheshwar Temple: उत्तराखंड की फेमस चारधाम यात्रा का डंका देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में बजता है, मगर इससे इतर भगवान शिव को समर्पित पंच केदार भी हैं जोकि खासतौर पर श्रद्धालुओं को अपनी तरफ खींचते हैं. इन्हीं पंचकेदारों में सबसे खास मदमहेश्वर मंदिर है जोकि देवभूमि उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय के मनसुना गांव में स्थित है. भगवान भोलेनाथ के इस मंदिर की महिमा अपार है, यह समुद्र तल से 3497 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है.
भगवान शिव को समर्पित मदमहेश्वर मंदिर पंचकेदारों में आने वाला चौथे नंबर का मंदिर है जिसका निर्माण भी केदार शैली में हुआ है. यह हिंदुओं के पूजनीय तीर्थस्थलों में से एक हैं साथ ही यह साल के 6 महीने (मई-नवंबर) ही श्रद्धालुओं के लिए खुलता है बाकि समय बर्फ से ढका रहता है, यहीं कारण है कि गर्मी के मौसम में भी यहां तेज ठंड का एहसास होता है. भक्त मदमहेश्वर धाम के कपाट खुलने का बेसब्री से इंतजार करते हैं.

पांडवों से है मंदिर का कनेक्शन
वैसे तो मदमहेश्वर मंदिर को लेकर कई कथाएं और मान्यताएं प्रचलित हैं मगर इसका संबंध महाभारत काल से जोड़ा जाता है. इसका निर्माण महाबली भीम ने करवाया था और देवादिदेव महादेव की पूजा की थी. यहां नंदी स्वरूप के मध्य भाग (नाभि) की भी पूजा की जाती है जिसे भगवान शिव का दिव्य रूप भी माना जाता है. वहीं दाईं ओर एक छोटा मंदिर है जहां गर्भगृह में माता सरस्वती की संगमरमर की प्रतिमा विराजमान है. यह सभी प्रमुख बातें भक्तों को स्वर्ग का एहसास कराती हैं.
प्राकृतिक खूबसूरती में दिव्यता का समागम

प्रकृति की गोद में बसा यह स्थान आध्यात्मिक और दिव्य होने के साथ खूबसूरत प्राकृतिक दृश्यों का अनुभव देता है. इसमें जहां एक तरफ ऊंचे बर्फ से ढके पहाड़ हैं तो वहीं दूसरी तरफ हरे-भरे मैदान स्वर्ग में होने का एहसास करवाते हैं. ये सारी चीजें एक साथ जहां एक तरफ मन को शांत और प्रसन्न करती हैं तो वहीं दूसरी तरफ व्यक्ति को भी किसी दूसरी ही दुनिया में होने का एहसास भी करवाती है.
मदमहेश्वर मंदिर के आसपास घूमने की जगहें
मदमहेश्वर मंदिर के आस-पास भी घूमने के लिए कई प्रचलित जगह हैं जहां मंदिर के दर्शन करने के बाद जा सकते हैं. इनमें से कुछ मुख्य स्थान इस प्रकार से हैं-

वृद्ध मदमहेश्वर मंदिर – वृद्ध-मदमहेश्वर मंदिर देश के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है. यह स्थान रिज पर स्थित है जहां से कमांडिंग और चौखम्बा चोटियों का नजारा साफ दिखाई देता है.
आसपास के गांव- मदमहेश्वर मंदिर के आसपास कई छोटे-बड़े गांव भी हैं जहां चरवाहों की झोपड़ियां और गावं के कई अन्य घर हैं. उत्तर भारत अद्भुत क्लासिक शैली का उदाहरण है. यहां कैंप लगाकर गांव की खूबसूरती का आनंद उठा सकते हैं.
कांचली ताल – प्रकृति के गोद में स्थित कांचली ताल जाने और वापस आने के लिए सुबह से शाम तक का समय लग जाता है. इसके साथ ही खाना भी साथ लेकर जाना चाहिए और कैंपिंग का सामान भी साथ रख सकते हैं.
पांडु सेरा – कांचली ताल से आगे पाण्डु सेरा नामक जगह है, इसे लेकर मान्यता यह है कि इसी स्थान पर पांडवों ने स्वर्गारोहण जाते समय यहीं पर अपने अस्त्र-शस्त्र छोड़े थे. मान्यता है कि आज भी अस्त्र वहीं पर पड़े हुए हैं. पांडु सेरा जाते वक्त अपने साथ तंबू लेकर जाना पड़ता है क्योंकि वहां पूरा दिन लग जाता है.
ट्रैकिंग – रांसी गांव से मदेमहेश्वर की दूरी 16 किलोमीटर से ज्यादा की है. यहां से सड़क का रास्ता खत्म हो जाता है इसलिए इससे आगे का सफर ट्रेक करके किया जाता है. उखीमठ सड़क से संपर्क वाला निकटतम शहर है. यह एक अनोखा ट्रेकिंग का अनुभव है जो की देश और दुनिया के पर्यटक व श्रद्धालुओं का ध्यान अपनी तरफ खींचता है. वहीं चल न पाने की सूरत में यहां से किराये के खच्चर भी ले सकते हैं.
कैसे पहुंचे मदमहेश्वर मंदिर?

चूंकि रांसा गांव से आगे का रास्ता ट्रैक करके किया जाता है. इसी के चलते यहां तक ही वाहनों से आ-जा सकते हैं. गौरीकुंड तक पहुंचने के मुख्य साधन इस प्रकार से हैं-
सड़क – गौरीकुंड उत्तराखंड के प्रमुख स्थलों में से एक है, यहां से सभी सड़क मार्ग जुड़े हुए हैं. हरिद्वार, ऋषिकेश और श्रीनगर से गौरीकुंड के लिए कई बसें और कैब मिल जाती हैं.
रेलवे – देश के बाकी जगहों से आने वालों के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है इसके बाद बस या कैब लेकर आगे जा सकते हैं.
हवाई जहाज के रास्ते – मदमहेश्वर मंदिर जानें के लिए हवाई यात्रा से आने की सोच रहे हैं तो रहे हैं तो इसका सबसे नजदीकी एयरपोर्ट जौलिग्रांट पड़ेगा. इसके आगे टैक्सी, कैब करके आगे जा सकते हैं.