Temple Tourism: हर साल देवों की भूमि उत्तराखंड में बड़ी संख्या में दुनियाभर से श्रद्धालु केदारनाथ धाम के दर्शन के लिए आते हैं. बाबा केदार की यात्रा सबसे कठिन पैदल यात्राओं में से एक है जो हर साल कई शिव भक्तों को अपनी तरफ आकर्षित करती है. मगर क्या आप जानते हैं कि बाबा केदार की विधिवत पूजा भुकुंट भैरव की पूजा से ही शुरू होती है. साथ ही इनके दर्शन के बिना केदारनाथ की यात्रा अधूरी मानी जाती है.
देशभर में जहां-जहां भगवान शिव के सिद्ध ज्योतिर्लिंग मौजूद हैं, वहां आसपास कालभैरवजी के मंदिर भी हैं. मान्यताओं क अनुसार इनके दर्शन के बिना इन सिद्ध मंदिरों के दर्शन भी अधूरे माने जाते हैं. ऐसा ही एक मंदिर केदारनाथ क्षेत्र में भी मौजूद है जिन्हें भुकुंट भैरव नाम से जाना जाता है. हर साल केदारनाथ जाने वाले श्रद्धालु इनके दर्शन करने के लिए जरूर आते हैं. आज यहां भुकुंट भैरव के बारे में खास बातें जानने वाले हैं
बाबा केदार से पहले भुकुंट भैरव की पूजा
चारधाम यात्राओं में से एक केदारनाथ के कपाट केवल ये महीने के लिए ही खुलते हैं. ऐसे में कपाट खुलने और यात्रा शुरू होने से पहले भैरव मंदिर में भुकुंट भैरव की पूजा की जाती है, जिसके बाद ही विधिवत तरीके से बाबा केदार के कपाट खोले जाते हैं. यहां देवादिदेव महादेव भीषण भैरव, संहार भैरव, बटुक भैरव आदि अनेक नामों से निवास करते हैं. ऐसी मान्यता है कि इनकी पूजा के बिना केदारनाथ की यात्रा अधूरी मानी जाती है. यही इस क्षेत्र के पाल देवता और केदारनाथ के पहले रावल भी हैं.
केदार क्षेत्र के पहले रावल हैं बाबा भुकुंट
बता दें कि भुकुंट बाबा को ही केदारनाथ का पहला रावल माना जाता है. साथ ही उन्हें ही इस इस पूरे केदार क्षेत्र का पाल देवता और क्षेत्रपाल आदि कहा जाता है. यही कारण है कि बाबा केदार की पूजा से पहले भुकुंट भैरव की पूजा करने का विधान है, हर साल इसके बाद ही केदारनाथ मंदिर के कपाट सभी श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाते हैं.
मंदिर में नहीं है दीवार और छत
समुद्र तल से 3,583 मीटर की ऊंचाई और हाड़ कंपा देने वाली ठंड के बीच भुंकुट बाबा का मंदिर बिना छत और दीवारों के यूं ही बना हुआ है. यहां कई त्रिशूल और झंडे भी स्थापित हैं. यह मंदिर केदारनाथ से दक्षिण दिशा से केवल आधा किलोमीटर की दूरी पर ही स्थित है. इस मंदिर में भुकुंट भैरव समेत कई अन्य देवताओं की मूर्तियां भी विराजमान है जोकि भगवान शिव का ही रूप हैं. इस मंदिर में सामान्यता मंगलवार और शनिवार को पूजा की जाती है. ऐसा माना जाता है कि शीतकाल में भुंकुट भैरव ही इस पूरे क्षेत्र की सुरक्षा करते हैं.
मानें जाते हैं जागृत देव
स्थानीय लोगों और लोकमान्यताओं के अनुसार भुकुंट देव केदार घाटी के जागृत देव माना जाता है. स्थानीय लोगों के अनुसार 2017 में स्थानीय मंदिर समिति को कपाट बंद करने में समस्या आ रही थी, गेट के कुंडे लग ही नहीं पा रहे थे. इसके बाद एक पुरोहित ने बाबा भुकुंट भैरव का आह्वान किया और कुछ ही समय में कपाट के कुंडे ठीक से लग गए. शीतकाल में जब पूरा केदारक्षेत्र बर्फ की परतों में ढक जाता है तब भुकुंट नाथ ही यहां की देखभाल करते हैं.
सदियों से चली आ रही परंपराओं के अनुसार केदारनाथ की चल विग्रह डोली के शीतकालीन गद्दीस्थल उखीमठ के ओंकारेशवर से केदारपुरी प्रस्थान करती है. इससे पहले भुकुंट भैरवनाथ की पूजा जरूर की जाती है. पूजा करने के बाद ही आगे की गतिविधियों को सुचारु ढंग से किया जाता है. बिना भैरों के दर्शन के यह पूरी यात्रा ही अधूरी है.
कैसे पहुंचे भुकुंट भैरव?
भुकुंट भैरव तक पहुंचने का रास्ता बाबा केदार का रास्ता ही है. केदारनाथ मंदिर से केवल आधा किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में यह दिव्य मंदिर स्थापित है. जहां एक तरफ यहां चारों और बर्फ से ढ़के ऊंचे-ऊंचे पहाड़ देखने को मिलेंगे तो वहीं हरियाली और मनोरम दृश्य मानसिक शांति का अनुभव कराते हैं. केदारनाथ की यात्रा के बाद इस मंदिर की यात्रा के लिए जरूर जाएं.