Uttarakhand Tourism: प्रकृति में यूं तो कई रत्न मौजूद हैं जिन्हें देखकर अकसर मनुष्य हर बार अचंभित और आश्चर्य में पड़ जाता है. इन्हीं की खोज के लिए पर्यटक हर बार नए स्थानों की तलाश में रहते हैं, जहां जाकर इस ट्रैवलिंग एक्पीरियंस को यादगार बनाया जा सके. आज उत्तराखंड के ऐसे ही एक हिल स्टेशन हर्षिल घाटी के बारे में बताने जा रहे हैं. जहां इतनी प्राकृतिक खूबसूरती मौजूद है कि सैलानी एक बार आकर वहीं के होकर रह जाते हैं.
हिमालय की गोद में बसी हर्षिल घाटी एक सुंदर प्राकृतिक हिल स्टेशन है जहां शांति और सुकून तलाशने वाले सैलानी जरूर विजिट करते हैं. यह जगह समुद्र तल से 2620 मीटर की ऊंचाई पर भागीरथ नदी के किनारे स्थित है. यहाँ की खूबसूरती पर्यटकों को दूर से ही अपनी तरफ आकर्षित करती है, जहां एक तरफ ऊंचे बर्फ से ढके हुए पहाड़ है तो वहीं चारों तरफ की हरियाली और ठंडक भरी हवा हर किसी को अपना दीवाना बनाने के लिए काफी है. वहीं धार्मिक महत्व के लिए भी इसका नाम जाना जाता है.
ऐसे पड़ा था हर्षिल नाम

इस जगह को लेकर मान्यता है कि यहाँ भागीरथी और जलधारी नदी के तेज बहाव को कम करने के लिए यहां भगवान विष्णु ने हरि बनकर पत्थर का रूप ले लिया था. इसके पीछे उनका उद्देश्य नदी के प्रचंड प्रवाह को कम करना था. इसके बाद इस स्थान को हरिसिला कहा जाने लगा जो कालांतर में हर्षिल घाटी हो गया. अब इस जगह को हर्षिल घाटी या “वैली” कहकर ही संबोधित किया जाता है.
मां गंगा का मायका है हर्षिल का ये गांव

हर्षिल घाटी के एक गांव मुखवा से मां गंगा का खास रिश्ता रहा है, इसे उनका मायका भी कहा जाता है. यह गंगा माता का शीतकालीन पड़ाव स्थल भी है. सर्दियों में जब गंगोत्री धाम के कपाट बंद हो जाते हैं तब मुखवा गांव में ही उनकी डोली को लाया जाता है. इसके बाद फिर इन दिनों में अगले 6 महीनों तक उनकी इसी गांव में विधि विधान के साथ पूजा की जाती है. यहां ऐसी मान्यता है कि माता गंगा की उपासना करने से पारिवारिक क्लेश दूर होते हैं वहीं गंगा पूजन की तो परंपरा पिछले लंबे वक्त से चली आ ही रही है.
मुखवा के साथ ही यहां कई अन्य गांव भी हैं, हर्षिल घाटी में देवदार के घने जंगल, चारों तरफ फैली हरियाली, रंग-बिरंगे खूशबूदार फूल, कल-कल बहता ताजा साफ जल ऐसा अनुभव करवाते हैं मानों किसी ने एक साथ प्रकृति की खूबसूरती को यहीं उड़ेल दिया हो. यहां कुछ समय बिताकर आपको कश्मीर में होने का एहसास होगा. यहीं कारण है कि इसे मिनी स्विट्जरलैंड के नाम से भी जाना जाता है. पिछले दिनों यह जगह काफी लाइमलाइट में रही जिसे लेकर अब उसी स्पीड में काम भी किया जा रहा है.
वाइब्रेंट विलेज योजना में शामिल है हर्षिल

बता दें कि हर्षिल घाटी चीन की सीमा के निकट है इस कारण इसे भारत सरकार की वाइब्रेंट विलेज योजना में भी शामिल किया गया है, पिछले दिनों पीएम मोदी के आने के बाद यह इलाका काफी सुर्खियों में छाया रहा. वहीं साल 2016-17 में हर्षिल इनर लाइन की पबंदियों से भी फ्री हो चुका है. इसके बाद यहां पर्यटन से जुड़े कई कार्य विशेष मास्टर प्लान तैयार करके किए गए. हर्षिल के निकट बगोरी, धराली व मुखवा जैसे कई छोटे गांव है जहां पर्यटक बड़ी संख्या में पहुंचना पसंद करते हैं. वहीं अब लगातार सुर्खियों में रहने की वजह से भी बड़ी संख्या में पर्यटक यहां घूमना पसंद करते हैं.
हर्षिल घाटी में कहां घूमें

हर्षिल घाटी को यूं ही पर्यटकों की पसंदीदा जगह नहीं कहा जाता है, यहां ऐसी कई जगहें मौजूद हैं जहां जाकर पर्यटक विजिट कर सकते हैं. इसमें में कुछ मुख्य इस प्रकार से हैं-
थराली में बागानों की खुशबू
ये जगह खासतौर पर अपने रसीले-लाल सेबों के बागानों के लिए जानी जाती है. हर्षिल घाटी से केवल 6 किलोमीटर की दूरी पर थराली मौजूद है जहां पर चीड़ देवदार के लंबे घने पेड़ और गंगा का तट स्थित है. यहां का प्राचीन शिव मंदिर विशेष आकर्षण का केंद्र है.
मुखवास गांव
हर्षिल घाटी से केवल 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मुखवास गांव देवी मां गंगा के घर के रूप में भी जाना जाता है. बता दें कि इस क्षेत्र में सामान्य तौर पर सर्दियों के मौसम में तेज बारिश होती है. इस वजह से इस स्थान पर सर्दियों में जा पाना जोखिम भर रहता है और मार्ग को अस्थायी रूप से बंद कर दिया जाता है. गंगोत्री के द्वार मार्ग के रूप में इस मार्ग की पूजा की जाती है.
केदार ताल जरूर करें विजिट
केदार ताल सुंदर नीले पानी का साफ और एक खूबसूरत ताल है. यह समुद्र तल से 4750 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. केदार ताल चारों तरफ से जोगिन 1, जोगिन 2, भृगुपंथ और अन्य प्रमुख हिमालयी चोटियों से घिरा हुआ है. ज्यादातर समय इस जगह अधिक सर्दी पड़ने से ठंड रहती है जिससे यह जमी हुई रहती है. इस झील तक ट्रेकिंग करके पहुंचा जा सकता है.
डोडीताल झील में पर्यटन का असली सुख

बता दें कि डोडीताल ट्रेक उत्तराखंड के प्रमुख हिमालयी ट्रेकों में सबसे खूबसूरत ट्रेक माना जाता है. ट्रैक के बीच के मनोरम प्राकृतिक दृष्य किसी का भी ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिए काफी है. इसका रास्ता एक रहस्यमयी जंगल से होकर जाता है, जहां ऊंचे देवदार के पेड़ ठंड़ी हवा मन शांत कर देती है. वहीं इस ट्रैक की सबसे हाईएस्ट पीक दरवा टॉप 4,150 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित है. इस बीच डोडीताल का दीदार करना बिल्कुल भी न भूलें .
हर्षिल घाटी कैसे पहुंचें
यूं तो हर्षिल घाटी पहुंचने के लिए कई रास्ते हैं, इसमें से कुछ प्रमुख मार्गों के बारे में नीचे बताया जा रहा है-
सड़क मार्ग से – हर्षिल घाटी तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग सबसे अनुकूल है क्योंकि यहां तक सड़क कनेक्टिविटी सबसे बढ़िया है. यह घाटी NH108 पर स्थित है. यह रास्ता ऋषिकेश से टिहरी, उत्तराकाशी और गंगोत्री को अच्छे से जोड़ता जिसके आगे सड़कें उपलब्ध हैं. वहीं ऋषिकेश तक पहुंचने के लिए कार, बस ट्रेन आदि का प्रयोग कर सकते हैं.
रेल मार्ग द्वारा – इस टूरिस्ट डेस्टिनेशन तक पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है. यहां से हर्षिल 215 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इसके आगे से
टिहरी गढ़वाल के लिए बस, कैब, प्राइवेट केब की सुविधाएं मौजूद हैं. ऋषिकेश तक पहुंचने के लिए कई सेवाएं उपलब्ध हैं जिनकी मदद से वहां पहुंचा जा सकता हैं.
हवाई मार्ग द्वारा – जॉलीग्रांट एयरपोर्ट हर्षिल तक पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है. इस जगह से हर्षिल घाटी की दूरी केवल 232 किलोमीटर दूर ही रह जाती है. इससे आगे जाने के लिए प्राइवेट कैब और टैक्सी आदि की मदद भी ले सकते हैं. उत्तराकाशी और टिहरी गढ़वाल कही भी जा सकते हैं. वहीं जौलिग्रांट एयरपोर्ट देशभर की हवाई उड़ानों से जुड़ा हुआ है.