Akshaya Tritiya 2025: अक्षय तृतीया वैशाख महीने में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि का पर्व मनाया जाता है. हिंदू शास्त्रों और पुराणों के अनुसार चार युग का चक्र होता है, जिसे सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग के नाम से जाना जाता है. अक्षय तृतीया के दिन सतयुग जिसे इंसान के जीवन का सुनहरा दौर कहा जाता है वो समाप्त हो जाता है और त्रेतायुग शुरू हो जाता है. इसलिए अक्षय तृतीया को युगादि तिथि भी कहा जाता है. हिंदू परिवारों के लिए यह दिन बहुत ज्यादा महत्व रखता है.
अक्षय तृतीया का महत्व
अक्षय शब्द का अर्थ होता है कभी न मिटने या कम होने होने वाला. संस्कृत में अक्षय (अक्षय) शब्द का अर्थ समृद्धि, आशा, खुशी, सफलता होता है. जबकि तृतीया का अर्थ है चंद्रमा का तीसरा चरण. इसका नाम हिंदू कैलेंडर में वैसाख के वसंत महीने के तीसरे चंद्र दिवस के नाम पर रखा गया है. इस त्योहार को आम भाषा में आखा तीज नाम से भी जाना जाता हैं. जिसका अर्थ होता है जो कभी खत्म ना होने वाला. इसलिए यह दिन वस्तुओं की खरीदारी का सबसे शुभ दिन माना जाता है. “अक्षय” शब्द का अर्थ होता है जो कभी खत्म न हो. इसी कारण इस दिन किए गए सभी अच्छे कार्यों, जैसे जप, यज्ञ, दान का पुण्य कभी समाप्त नहीं होता. माना जाता है कि अक्षय तृतीया का दिन व्यक्ति को अनंत सुख और समृद्धि की प्राप्ति करता है. इस दिन जितने पुण्य किए जाएं उतने हमें हमारे लिए कम है.
क्यों मनाते हैं अक्षय तृतीया
देश में समय-समय पर बहुत से त्योहार मनाये जाते हैं. इसलिए हमारे देश को त्योहारों का देश भी कहते हैं. हिन्दू धर्मावलम्बियों के प्रमुख त्योहारों में से एक अक्षय तृतीया है जिसे आम लोग आखा तीज भी कहते हैं. अक्षय तृतीया देश भर में हिंदुओं द्वारा मनाए जाने वाले सबसे पवित्र और शुभ दिनों में से एक है. माना जाता है कि इस दिन से जो भी कार्य इस शुरू होता है वो हमेशा पूर्ण होता है. यह त्यौहार हर वर्ष वैशाख महीने में शुक्ल पक्ष के तृतीया को आता है. इस वर्ष अक्षय तृतीया 30 अप्रैल को है.
अक्षय तृतीया को शादी का मुहुर्त माना जाता है क्योंकि इस दिन शुभ कार्य करने के लिए मुहूर्त नहीं देखना पड़ता. इसी कारण अक्षय तृतीया को बहुत अधिक शादियां होती हैं. अक्षय तृतीया का पर्व बसंत और ग्रीष्म के संधिकाल का महोत्सव है. इस तिथि में गंगा स्नान, पितरों का तिल व जल से तर्पण और पिंडदान भी पूर्ण विश्वास से किया जाता है जिसका फल भी अक्षय होता है. इस तिथि की गणना युगादि तिथियों में होती है क्योंकि सतयुग की समाप्ति पर त्रेतायुग का आरंभ इसी तिथि से हुआ है.
माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में जन्म लिया था. इसीलिये इस दिन को परशुराम जयंती के रूप में मनाते हैं. मान्यता है कि आखा तीज के दिन राजा भागीरथ गंगा नदी को पृथ्वी पर लाये थे. अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु तथा उनकी धर्मपत्नी लक्ष्मीजी की पूजा की जाती है. आखा तीज के दिन ही देवी अन्नपूर्णा का जन्म भी हुआ था. यह वह दिन था जब भगवान कृष्ण ने अपनी सारी संपत्ति और सौभाग्य अपने गरीब मित्र सुदामा को दे दिया था. अक्षय तृतीया के दिन श्रद्धेय ऋषि वेद व्यास ने महाभारत की रचना शुरू की थी. पुराणों के अनुसार यह दिन त्रेता युग की शुरुआत का प्रतीक है. जो मानव जाति के चार युगों या युगों में से दूसरा है.
जैन धर्म से भी है इस दिन का कनेक्शन
जैन धर्म में अक्षय तृतीया एक महत्वपूर्ण तिथि है जिसे दान और पुण्य कार्य करने के लिए विशेष रूप से शुभ माना जाता है. इस दिन भगवान ऋषभदेव (प्रथम तीर्थंकर) ने एक वर्ष की तपस्या के बाद गन्ने के रस से पारणा किया था इसलिए इस दिन को अक्षय तृतीया के रूप में मनाया जाता हैं. अक्षय तृतीया के दिन यूं तो आप किसी भी देवी-देवता की पूजा कर सकते हैं लेकिन विशेष रूप से इस दिन माता लक्ष्मी, भगवान गणेश और धन के देवता कुबेर की पूजा करने का विधान है. अन्य त्योहारों की तरह इसमें भी दीपक जलाते हैं. इस दिन किया गया परोपकार हमारे लिए जीवन को सुखी बना देता हैं. इसीलिए इस दिन लोग गरीबों को भोजन कराते हैं तथा उनकी सहायता करते हैं.
अक्षय तृतीया का धार्मिक महत्व
माना जाता है कि इस दिन किए गए पुण्य हमारे लिए स्वर्ग में जगह बनाते हैं. इस दिन कई लोग जागरण रखकर हवन करते हैं तथा गरीबों को दान देते हैं. कई लोग अपने नए घर में मुहूर्त के हिसाब से प्रवेश करते हैं. अक्षय तृतीया का पौराणिक महत्व भी है. मान्यता है कि इसी दिन सतयुग और त्रेता युग का आरंभ हुआ था. द्वापर युग का समापन और महाभारत युद्ध का समापन भी इसी तिथि को हुआ था. देश के अनेक हिस्सों में इस तिथि का अलग-अलग महत्व है. जैसे उड़ीसा और पंजाब में इस तिथि को किसानों की समृद्धि से जोड़कर देखा जाता है तो बंगाल में इस दिन गणपति और लक्ष्मीजी की पूजा का विधान है.
देश में अक्षय तृतीया (आखा तीज) पर हर वर्ष हजारों की संख्या में बाल विवाह किए जाते हैं. तमाम प्रयासों के बावजूद हमारे देश में बाल विवाह जैसी कुप्रथा का अन्त नहीं हो पा रहा है. भारत में बेटी-बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसे अभियान के शुरू होने के बावजूद एक नाबालिग बेटी की जबरदस्ती शादी करा दी जा रही है. बाल विवाह मनुष्य जाति के लिए अभिशाप है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हर जगह बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा देते हैं. देश के सभी प्रदेशों में बेटियां शिक्षित हो रही हैं. ऐसे में समाज को आगे आकर कम उम्र में लड़कियों के होने वाले बाल विवाह रुकवाने के प्रयास करने होंगे. ऐसे पवित्र दिन का महत्व बनाए रखने के लिए समाज को इस दिन होने वाली कुरीतियों पर रोक लगाकर सकारात्मक संदेश देना होगा. तभी सार्थकता बनी रह पाएगी.
रमेश सर्राफ धमोरा
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं.)