इन दिनों उत्तराखंड विश्वप्रसिद्ध चारधाम यात्रा पूरे प्रदेश भर में खूब जोश और उत्साह के साथ चल रही है, जहां देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर से श्रद्धालु दर्शन करने के लिए पहुंच रहे हैं. अबतक 13 लाख से ज्यादा लोग दर्शन कर चुके हैं. वहीं इस बार दिया जा रहा प्रसाद भी विशेषतौर पर चर्चाओं का केंद्र बना हुआ है. प्रदेश में इस बार न केवल महिलाएं ऑर्गेनिक और इको फ्रैंडली तरीकों से प्रसाद तैयार कर रही हैं बल्कि उसे वितरित भी कर रही हैं. यही नहीं इन दिनों उत्तराखंड के ज्यादातर मंदिरों में प्रसाद को महिलाओं से जोड़ा जा रहा है.

कई महिला स्वयं सहायता समुह आगे बढ़-चढ़कर इन दिनों प्रसाद तैयार करने में अपना योगदान देकर न केवल अजीविका को सुदृढ़ कर रहे हैं, बल्कि रोजगार के नए रास्ते भी खोल रहे हैं. जिले में तकरीबन 150 से ज्यादा स्वयं सहायता समुह जुड़कर प्रसाद, जौ, तिल, सौवेनियर, सिक्के से लेकर पहाड़ी स्थानीय उत्पादों, जलपान और होमस्टे जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध करा रहे हैं. इससे इस बार बड़ी संख्या में महिलाओं को रोजगार मिला रहा है.
बता दें कि वर्तमान में रुद्रप्रयाग में जिला उद्योग केंद्र को महिलाओं द्वारा संचालित किया जा रहा है. इसके तहत 5 हजार से ज्यादा स्मृति चिन्ह और प्रतिकृतियां तैयार की जा चुकी हैं, जोकि इस बार विशेष तौर पर पर्यटकों का ध्यान खींच रही हैं. इन्हें और भी बड़ी संख्या में तैयार किया जा रहा है.
अगस्त्यमुनि में रोजगार को पंख – इस बार अगस्त्यमुनि ब्लॉक 38 महिला समूहों को यात्रा के दौरान करोबार से जोड़ा जा रहा है. ये ग्रुप प्रसाद की पैकेजिंग से लेकर कई अन्य उत्पादों को भी यात्रा के रास्तों पर ले जाकर बेच रहे हैं. साथ ही जलपान की व्यवस्थाओं को भी संचालित कर रहे हैं. 90 से ज्यादा महिलाओं को इससे रोजगार मिल गया है.
उखीमठ में भी महिलाएं हो रही हैं सशक्त – बता दें कि उठीमठ ब्लॉक में लगभग 60 महिला ग्रुप्स को तीर्थयात्रा से जुड़े व्यवसायों में लगाया गया है. इसके अंतर्गत 48 महिलाएं सीधे प्रसाद को तैयार कर रही हैं. वहीं इस ग्रुप में अन्य तीर्थयात्रियों को रहने की जगह देने, होम स्टे, जलपान आदि सेवाओं को भी कर रही हैं.
जखोली ब्लॉक में कारोबार – इस ब्लॉक में भी 50 महिला सेल्फ हेल्प ग्रुप तीर्थयात्रा में अपना व्यापार कर रहे हैं. इस दौरान अकेले 30 ग्रुप की महिलाएं मिलकर प्रसाद तैयार कर रही हैं. इसमें 10 ग्रुप मिलकर अगरबत्तियां बना रहे हैं. वहीं अन्य ग्रुप बाकि चर्चित पहाड़ी उत्तपादों को बेच रहे हैं. इस दौरान ट्रेंडिंग श्री बद्री गाय की घी भी 1200 रुपये प्रति किलो के रेट पर बेचा जा रहा है.
भटवाड़ीसैंण में केदारनाथ मंदिर और बाबा केदार की आकर्षक प्रतिकृतियां भी तैयार की जा रही हैं. इसमें ज्यादातर को लेकर काफी डिमांड भी हैं.
प्रसाद ही नहीं, इन उत्पादों को भी बना रही हैं महिलाएं

उत्तराखंड महिला सशक्तिकरण में इन दिनों एक नई इबारत लिख रहा है. महिलाओं के स्वयं सहायता समुह (SHGs) इस समय न केवल प्रसाद और उसमें प्रयुक्त करने वाली वस्तुओं को परंपरागत तरीकों से बना रहे हैं. बल्कि धूपबत्ती, अख्ता प्रसाद और अन्य पहाड़ी खूशबूदार उत्पादों को भी ऑर्गेनिक, पहाड़ी तरीके से तैयार कर रहे हैं. तीर्थयात्रियों की यात्रा को सुगम बनाने के लिए ये होम स्टे लेकर जलपान और पहाड़ी उत्पादों को तैयार करने का काम भी किया जा रहा है.
श्री ब्रदीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति की तरफ से ही चारधाम यात्रा में प्रसाद की व्यवस्था की जाती है. बता दें कि यमुनोत्री और गंगोत्री धाम में प्रसाद लेने और चढ़ाने की कोई मान्यता नहीं हैं इसलिए वहां मुख्य तौर पर ईलायची के दानें और मिश्री का प्रसाद दिया जाता है.
ऐसे में प्रमुख रूप से बद्रीनाथ और केदारनाथ मंदिर के पवित्र प्रसाद की व्यवस्था बीकेटीसी ही देखती है. इसके लिए समिति ने स्थानीय स्तर पर उगाई जाने वाली चौलाई जिसे रामदाना भी कहा जाता है नाम के स्वदेशी प्रसाद को शामिल किया जाता है.
कितने प्रकार का प्रसाद मिलता है?

स्वदेशी प्रसाद – इस प्रसाद में बीकेटीसी ने स्थानीय पौधे रामदाना (चौलाई) से बने हुए लड्डुओं वाले प्रसाद को शामिल किया गया है. टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक इस प्रसाद की शेल्फ लाइफ 3 महीने तक होती हैं साथ ही इन्हें मात्रा के हिसाब से भिन्न डब्बों में पैक किया जाता है. प्रत्येक लड्डू का वजन 125 ग्राम तक होता है.
अटका प्रसाद – यात्रा के दौरान अटका की भी सुविधा की गई है. यह एक खास तरह का पैकेज है जिसमें बद्रीनाथ के पवित्र जल, तुलसी, बेलपत्र, सिक्का जैसी कई वस्तुएं दी जाती हैं. ये प्रसाद इस यात्रा के स्मृति के रूप में डिजाइन किया गया है जो श्रद्धालुओं को काफी पसंद आता है. अटका प्रसाद ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही माध्यमों पर मिल जाता है.
केदारनाथ का विशेष प्रसाद
बाबा केदारनाथ के प्रसाद में एक खास बॉक्स प्रदान किया जाता है, जिसमें प्रसाद, बेलपत्र, भस्म, एक सिक्का, रुद्राक्ष और हवन सामग्री को शामिल किया जाता है.
उत्तराखंड के किन प्रसिद्ध मंदिरों में किस तरह का प्रसाद तैयार होता है?
देवभूमि उत्तराखंड में यूं तो कई मंदिर हैं जिसके चलते इसे देवताओं की भूमि भी कहा जाता है. इनमें विभिन्न मंदिरों में अलग-अलग तरीकों के प्रसाद को चढ़ाया जाता है. कई प्रसिद्ध मंदिरों में कुछ खास किस्म का प्रसाद चढ़ता है जोकि परंपरागत रूप उत्तराखंड के अनाज से ही बनाया जाता है.
चोलाई के लड्डू – चोलाई उत्तराखंड के पहाड़ों पर उगने वाली एक प्रमुख फसल है. इसका प्रयोग वैसे तो कई चीजें बनाने में होता है. वहीं इसके लड्डू भी बनाए जाते हैं, जिन्हें अब महिलाएं बड़े पैमाने पर मंदिरों के प्रसाद के रूप में बना रही हैं. बता दें कि चोलाई स्वादिष्ट होने के साथ स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक होती है.
मंडुआ – पोष्टिक तत्वों से भरपूर अनाज मंडुआ से भी इन दिनों महिलाएं प्रसाद बना रही हैं. ये उत्तराखंड जैसे कुछ ही पहाड़ी राज्यों में पाया जाता है वहीं हेल्थ के लिए भी काफी अच्छा होता है.
झंकोरा – बता दें कि झंगोरा उत्तराखंड का एक पारंपरिक अनाज है, जिसमें अनाज पोष्टिक और प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. इसका इस्तेमाल अब मंदिर का प्रसाद बनाने में इस्तेमाल किया जा रहा है. महिलाएं बढ़ चढ़कर झंगोरा से बने प्रसाद को बना रही हैं.
श्री बदरी गाय का घी – बदरी गाय का घी भी उत्तराखंड में काफी प्रचलित है. वहां पाई जाने वाली बदरी गाय से इसे प्राप्त किया जाता है, जिसका इस्तेमाल प्रसाद आदि के इस्तेमाल होता है.
तिल और जो – तिल और जौ आदि का इस्तेमाल भी प्रसाद आदि बनाने में होता है. तिल को भूनकर प्रसाद तैयार किया जाता है.
तिरुपति मंदिर प्रसाद विवाद के बाद BKTC ने कड़े किए नियम
पिछले साल तिरुपति मंदिर के प्रसाद के लड्डुओं में पशु वसा की मिलावट का मामला सामने आया था. उस वक्त ये मुद्दा पूरे देश में गर्मा रहा था. ये श्रद्दालुओं की आस्था का विषय था, जिसके चलते मंदिर के प्रसाद में प्रयुक्त होने वाले लड्डूओं में शुद्धता को लेकर ठोस कार्रवाई की गई. इसके बाद उत्तराखंड चार धाम यात्रा में प्रयुक्त होने वाले प्रसाद को लेकर भी सख्त कदम उठाए गए थे.
उस वक्त बीकेटीसी के अध्यक्ष अजेंद्र अजय की तरफ से कहा गया था कि हमें मंदिर की शुद्धता की गरिमा को बनाए रखना चाहिए. इससे बीकेटीसी के अंतर्गत आने वाले 47 मंदिर प्रभावित होंगे. इसके अंतर्गत चारधाम यात्रा में आने वाले केदारनाथ और बद्रीनाथ को भी शामिल किया गया है. इसके बाद मंदिर प्रशासन की तरफ से प्रसाद निर्माण और वितरण में सख्ती बढ़ा दी थी. दरअसल हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु चारधाम में दर्शन के लिए पहुंचते हैं. ऐसे में इसकी सरक्षा और शुद्धता की जांच करना और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है.
बोने से लेकर बेचने तक, आगे आ रही हैं महिलाएं
उत्तराखंड में प्रमुख व्यवसायों के रूप में खेती के बाद प्रर्यटन को देखा जाता है, ऐसे में महिलाओं को इन दोनों से जोड़कर विकास के नए रास्तों को खोला जा रहा है. महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने के लिए उन्हें बोने से लेकर बेचने तक के लिए जोड़ा जा रहा है ताकि स्वरोजगार के नए अवसर सृजित हो सके. श्री केदारनाथ धाम के लिए महाप्रसाद, चूरमा, सोवेनियर से लेकर बेलपत्री, शहद के साथ-साथ यात्रा में प्रयुक्त होने वाले अन्य सामानों का उत्पादन किया जा रहा है. इससे होने वाले फायदे निम्न प्रकार से हैं-
आजीविका के विकल्प बढ़े – मातृशक्ति को इस प्रकार के व्यवसायों से जोड़कर आजीविका के विकल्पों को खोला जा रहा है. इससे न केवल महिलाओं के हाथ में आर्थिक शक्ति आई है बल्कि वो भी समाज की मुख्य धारा का हिस्सा बनने लगी है.
रोजगार के अवसर बढ़े – मंदिरों के प्रसाद बनाने और अन्य प्रकार की सेवाओं से ग्रामीण महिलाओं को जोड़कर न केवल उनके लिए रोजगार के अवसर बढ़ गए हैं. बल्कि उनके लिए नए विकल्प भी उत्पन्न हुए हैं. आज महिलाएं स्वरोजगार की नई इबारत लिख रही हैं
स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती – बता दें कि पहले ज्यादातर प्रसादों को राज्य सरकार किसी कंपनी से बनवाती थी या फिर दूसरे राज्यों से आयात करती थी. वहीं अब स्थानीय उत्पादों से प्रसाद तैयार करके जहां एक तरफ स्थानीय अर्थव्यवस्था मजबूती मिली है तो वहीं राज्य की विकास में भी मददगार साबित हो रहे हैं.
वोकल फॉर लोकर को मिल रहा है बल – इससे पहले चोलाई, तिल, मंडुआ और झंकोरा आदि के बारे में के बारे में काफी कम लोग जानते थे. जबकि यह अनाज पोष्टिक होने के साथ काफी हेल्थ के लिए भी काफी अच्छे होते है. महिलाओं को इससे जोड़कर महिलाओं की अलग पहचान बन रही है, तो वहीं वॉकल फोर लोकल को भी बल मिला है.
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