यूं तो उत्तराखंड घूमने के शौकीनों का प्रमुख ठिकाना है. यहां ऐसे कई डेस्टिनेशन प्लेसस मौजूद हैं, जो बड़ी संख्या में टूरिस्टों को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं. वहीं कई गांव ऐसे भी हैं जो अपनी प्राकृतिक खूबसूरती से शांति पसंद लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करती हैं. मानसिक शांति और सुकून की तलाश में बड़ी संख्या में लोग यहां आना पसंद करते हैं. सारी गांव भी उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में बसा एक शांत हिमालयी गांव है, ये गांव अपने पहाड़ी कल्चर और नेचुरल ब्युटी से पर्यटकों को खींचता है. आज इस गांव के बारे में हम डीटेल में बताने जा रहे हैं.
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में बसा सारी गांव एक शांत और हिमालयी क्षेत्र के सबसे आकर्षक गांवों में से एक है. यह समुद्र तल से 2000 मीटर (6,600 फुट) की ऊंचाई पर होने की वजह से गढ़वाल हिमालय के सबसे हैरतअंगेज दृश्यों की झलक देता है. बीते कई सालों से यह स्थान पर्यटकों की पहली पसंद बन गया है. वहीं शहरी शोर शराबे से दूर इंसपिरेशन, मेंटल पीस की तलाश में इस गांव की तरफ खिंचे चले आते हैं.
सारी गांव की प्राकृतिक सुंदरता

सारी गांव की नेचुरल ब्युटी देखते ही बनती है. जहां एक तरफ नंदा देवी, त्रिशूल और केदारनाथ की ऊंची चोटियों का भी खूबसूरत व्यू प्रस्तूत करता है. तो वहीं और हरियाली से भरपूर ओक और रोडोडेड्रोन (बुरांश) के पेड़ गांव को चारों तरफ से घेरे हुए हैं. चारों तरफ दूर-दूर तक देखने पर मन मोह लेने वाली हरियाली ही नजर आती है. इस गांव में कई जगहों पर आडू और सेब के बाग भी हैं जो विशेष तौर पर ध्यान खींचते हैं. यह सब मिलकर किसी और ही दुनिया में होने का एहसास देती हैं. शहर की भागदौड़ और थका देने वाली लाइफस्टाइल से दूर शांति और सुकून की खोज भी लोगों को यहां तक खींच कर ले ही आती है. यहां लोगों को कभी न भुलाए जा सकने वाले एक्सपीरियंस भी मिलते हैं.
सारी गांव ही क्यों?

सारी गांव प्रकृति की गोद में खूबसूरत गांव सारी इन दिनों पर्यटकों का नया ठिकाना बन चुका है. मगर सवाल उठता है कि आखिर सारी गांव ही क्यों? इसी सवाल में ही इसका जवाब भी छिपा हुआ है. यह गांव इतनी ऊंचाई पर स्थित है कि ज्यादातर समय यहां शांति ही रहती है. यहां पर स्थित आडू के बाग और सीना ताने खड़े हिमालय के ऊंचे-ऊंचे पहाड़ इस जगह को बाकियों से अलग और खास बनाते हैं. ये पूरा इलाका भीड़-भाड़ से मुक्त है जोकि सभी का ध्यान भी खींचते हैं. इसके अलावा कई और वजह भी है जिसके चलते इस पहाड़ी गांव में जरूर आना चाहिए.
ट्रेकर्स का बेस कैंप है सारी गांव – बता दें कि सारी गांव ट्रेकिंग का शौक रखने वालों के लिए भी काफी खास है. बता दें कि यह स्थान चंद्रशिला, तुंगनाथ, चौखंबा और देबरिया ताल आदि का बेस कैंप है.
पहाड़ी संस्कृति की मिलती है झलक – सारी गांव में गढ़वाली कल्चर की झलक देखने को मिलती है. यहां कि पहाड़ी खाना, रहन-सहन, लोग सभी में संस्कृति की सौंधी खुशबू दिखाई देती है.
तेजी से बढ़ रही है टूरिस्टों की संख्या – उत्तराखंड के इस गांव में हर साल टूरिस्टों की संख्या में तेजी से बढ़ रही हैं. शांति और सुकून के साथ कुछ नया एक्सप्लोर करने के लिए भी पर्यटक बड़ी तादाद में सारी गांव का रुख करते हैं.
होम स्टे हो रहे हैं विकसित – पहाड़ी गांव सारी में पर्यटकों की सहूलियत के लिए तेजी से होम स्टे बन रहे हैं. सरकारी प्रयासों से पूरे प्रदेशभर में होमस्टे की परियोजना विशेष तौर पर फल फूल रही है. वर्तमान में इसे प्रोत्साहित करने के लिए सरकार की तरफ से कई योजनाएं भी चलाई जा रही हैं.
गांव की गढ़वाली संस्कृति से मुलाकात – सारी गांव आने वाले पर्यटकों के लिए न केवल ग्रामीण लोगों के मिलने का मौका मिलता है, वहीं पहाड़ी (गढ़वाली) संस्कृति को जानने समझने में भी मदद मिलती है. इससे साथ-साथ पहाड़ों पर गढ़वाली खाना खाने से लेकर उनकी रिती-रिवाजो, भाषा, कपड़ों, मान्यताओं आदि के बारे में भी जानने का मौका मिलता है.
बता दें कि सारी गांव में स्थानीय लोग मुख्य रूप से गढ़वाली समुदाय से हैं. ये लोग पहाड़ी संस्कृति और रीति-रिवाजों को फॉलो करते हैं. वहीं सारी गांव में ठहरने के लिए ज्यादातर सुविधा होम स्टे की ही है, जहां गढ़वाली कल्चर ही देखने को मिलता है. यहां पहाड़ी जीवनशैली के अनुरूप ही भोजन और अन्य सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाती हैं.
सारी गांव में बन चुके हैं 50 होम स्टे
जनपद रुद्रप्रयाग में तुंगनाथ, चोपता ट्रैक पर मौजूद सारी गांव उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों में ग्रामीण पर्यटन और स्वरोजगार की मिसाल कायम कर रहा है। सारी गांव में इस वक्त करीब 50 होम स्टे संचालित किए जा रहे हैं, जिसमें ढाई सौ से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष रोजगार मिल रहा… pic.twitter.com/PIvr1hh9Nr
— Uttarakhand DIPR (@DIPR_UK) May 23, 2025
वर्तमान में पूरे उत्तराखंड में होम स्टे के कल्चर का प्रचलन तेजी से बढ़ता जा रहा है. सारी गांव भी इससे अछूता नहीं हैं, पिछले कुछ सालों से ग्रामीण पर्यटन में आने वाली तेजी के चलते इस गांव में भी होम स्टे का नंबर तेजी से बढ़ा है. इससे ग्रामीण पर्यटन के साथ रोजगार को भी बढ़ावा मिल रही है. सारी गांव में इस समय 50 होम स्टे बन चके हैं, वहीं उत्तराखंड पर्यटन विभाग की वेबसाइट पर रजिस्टर्ड होम स्टे की संख्या 41 हो गई है. इसका मतलब हैं कि इन्हें कहीं से भी ऑनलाइन बुक किया जा सकता है. इस होम स्टे से 250 से ज्यादा लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिल रहा है.
पुष्कर सिंह धामी जा चुके हैं सारी गांव
प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी पिछले साल दिसंबर के महीने में सारी गांव पहुंचे थे. जहां उन्होंने एक होमस्टे में ठहरकर रात्रि में विश्राम किया. इस दौरान सीएम ने गांव में पर्यटन और स्वरोजगार मॉडल की सराहना की और लोगों को ये मैसेज भी दिया कि ग्रामीण के साथ शीतकालीन पर्यटन को भी बढ़ावा दिया जा रहा है. उनके वहां पहुंचने से ग्रामीणों को सही दिशा में प्रयास करने का रास्ता मिला. उस दौरान सीएम धामी ने प्रसिद्ध गढ़वाली झुमौला नृत्य भी किया.
कैसे हुई थी सारी गांव में होम स्टे बनाने की शुरूआत?
बता दें कि सारी गांव में होम स्टे बनाने की शुरूआत सबसे पहला साल 1999 में माउंटेन गाइड मुरली सिंह नेगी ने की थी. उस समय पर उन्होंने अपने घर की मरम्मत करते हुए इसे ही होम स्टे के रूप में विकसित किया और इस क्षेत्र में ट्रेकिंग के लिए आने वाले लोगों के लिए ठहरने और खाने की सुविधा प्रदान की. यह जगह कई ट्रेकिंग करने वाली जगहों का बेस कैंप भी है इसलिए यहां साल भर टूरिस्टों की आवाजाही रहती है. इसके बाद समय-समय पर कई दूसरे लोगों ने भी अपने परंपरागत घरों के दरवाजे पर्यटकों के लिए खोले, जिससे स्वरोजगार को भी पंख लग गए.
उत्तराखंड डीआईपीआर (DIPR) की तरफ से कुछ समय पहले ही जानकारी शेयर करते हुए बताया कि जनपद रुद्रप्रयाग में तुंगनाथ, चोपता ट्रैक के लिए सारी गांव उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में स्वरोजगार की मिसाल बन रहा है. गांव में प्रदेश सरकार की दीन दयाल उपाध्याय पर्यटक होम स्टे योजना के तहत भी कई होमस्टे विकसित किए गए हैं. सात ही ट्रैकिंग सेंटर होम स्टे योजना के तहत 30 लोगों को भी अनुदान दिया गया है. स्वरोजगार के बढ़ते साधनों के चलते गांव से पलायन बड़े पैमाने पर कम हुआ है. वहीं दूसरे गांवों के उलट सारी गांव जीवंत हो गया है.
मौजूदा आंकड़ों के अनुसार रुद्रप्रयाग से सारी गांव की दूरी 60 किलोमीटर है. वहीं गांव में वर्तमान में तकरीबन 191 परिवार रह रहे हैं. वहीं सारी गांव की कुल जनसंख्या 1200 के आसपास है, यहां 50 होम स्टे संचालित हो रहे हैं. इससे गांव की 250 से ज्यादा की आबादी को स्वरोजगार मिल रहा है.
प्रदेश में होम स्टे के लिए चल रही परियोजनाएं
उत्तराखंड में होम स्टे को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार की तरफ से मुख्य रूप से दो परियोजनाएं चलाई जा रही हैं. ये दोनों परियोजनाएं इस प्रकार से हैं-
1. दीन दयाल उपाध्याय गृह आवास (होमस्टे) योजना – इस योजना के तहत होमस्टे विकसित करने के लिए सरकारी मदद की जाती है. इसके तहत 15 लाख रुपये तक तक का ऋण और साथ 50 प्रतिशत तक की सब्सिडी सरकार की तरफ से दी जाती है. इस योजना का लाभ पाने के लिए पहले अपने होम स्टे को सरकारी वेबसाइट पर पंजीकृत कराना होता है. सरकार मैदानी भागों में होमस्टे स्थापित करने के लिए 25 प्रतिशत तक की मदद देती है वहीं पहाड़ी क्षेत्रों में यह सब्सिडी 33 प्रतिशत तक बढ़ जाती है.
2. वीर चंद्र सिंह गढ़वाली पर्यटन स्वरोजगार योजना – उत्तराखंड सरकार द्वारा चलाई जा रहीइस योजना के अंतर्गत स्थानीय और राज्य के मूल निवासियों को स्वरोजगार उपलब्ध करवाने में मदद की जाती है. योजना के अंतर्गत होम स्टे, रिसॉर्ट, कैफे, रेस्तरां और साहसिक गतिविधियों के लिए 33 प्रतिशत तक की सब्सिडी प्रदान की जाती है. वहीं पहाड़ी क्षेत्रों पर गैर-वाहन ऋण के लिए 33 प्रतिशत और मैदानी भागों में ऋण के लिए 25 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जाती है.
3. ट्रेकिंग ट्रैक्शन सेंटर – होमस्टे योजना: यह भी एक सरकारी परियोजना है जिसके अंतर्गत 66 गांवों को चुना गया है. इसमें ट्रैकिंग मार्गों के आसपास होम स्टे बनाने के लिए 60 हजार तक की वित्तीय मदद की जाती है. इस परियोजना के तहत कई लोगों को स्वरोजगार प्रदान किया गया है.
सारी गांव में विलेज टूरिज्म के साथ स्वरोजगार का भी सृजन
पहले टूरिस्ट केवल कुछ ही स्थानों पर घूमने के लिए जाना पसंद करते थे, मगर प्रकृति और सुकून की खोज अब उन्हें गांवों की सौंधी मिट्टी की तरफ भी खींच रही है. यही कारण है कि कई लोग अब गांवों का भी रुख कर रहे हैं. कुछ साल पहले तक ग्रामीणों के लिए व्यवसाय का प्रमुख साधन कृषि और पशुपालन ही हुआ करता था. मगर लोगों के धूमने आने से यहां टूरिज्म कल्चर का भी तेजी से विस्तार हो रहा है. नेचर और शांति को खोजते हुए अब पर्यटक सारी गांव में आ रहे हैं. इससे जहां एक तरफ विलेज टूरिज्म को बढ़ावा मिल रहा है तो वहीं टूरिस्टों की संख्या बढ़ने से लोगों को रोजगार भी मिल रहा है.
पलायन रुका
पहाड़ों पर ज्यादा ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पलायन एक प्रमुख समस्या है, ज्यादातर लोग बेहतर अवसर और सफलता की तलाश में मैदानी क्षेत्र व शहरों की तरफ रुख करते हैं. उत्तराखंड का सारी गांव भी इस समस्या से अछूता नहीं है, सालों तक इस गांव ने भी पलायन के दर्द को झेला है. मगर अब टूरिस्टों के आने से इस गांव में पलायन कम हुआ है और युवा भी स्वरोजगार की दिशा में होम स्टे विकसित कर अपने जीवन को नए आयाम दे रहे हैं. इस काम को करके सारी गांव पलायन को मात दे रहा है.
कई जानी-मानी जगहों की ट्रैकिंग का बेस कैंप है सारी गांव
सारी गांव प्रकृति के कई हैरतअंगेज व्यू को तो पेश करता ही है, साथ ही यह स्थान अन्य जानी-मानी जगहों के ट्रैकिंग बेस स्थल के रूप में भी काम करता है. यहां से देवरिया ताल (2.5 किमी.), झंडी टॉप, रोहिणी बुग्याल, बिसुदी ताल, तुंगनाथ मंदिर, चंद्रशिला चोटी तक की यात्रा से के लिए भी निकल सकते है. यह रास्ता नंदा देवी, त्रिशूल और केदारनाथ की ऊंची चोटियों का भी खूबसूरत व्यू प्रस्तूत करता है.
सारी गांव में करने के लिए अन्य गतिविधियां
*बर्ड वॉचिंग में समय बिता जानें प्रकृति के रहस्य
बर्ड वॉचिंग के साथ ले प्रकृति का आनंद (हिमालयन मोनाल, हिमालयन बारबेट, लैमर्जियर, हिमालयन ग्रिफॉन, गोल्डन ईगल, माउंटेन हॉक ईगल, कालिज तीतर, कोक्लास तीतर, धब्बेदार लकड़ी कबूतर, स्कार्लेट मिनिवेट, वर्डीटर फ्लाईकैचर और कई प्रवासी पक्षियों का घर है।)
*गांव को एक्सप्लोर करें
गांव में घूमने पर गढ़वाली शैली में बने खूबसूरत घर देखने को मिल जाएंगे. इनकी शुरूआत सीढिनुमा मोडों से होती है. सारी गांव में कुल 1000 हजार से भी कम लोग रहते हैं. इनकी महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि कृषि और पशुपालन ही है.
*सन राइज और सन सेट व्यू
गांव में कई सन राइज और सन सेट पॉइंट्स भी हैं जिन्हें एक्सप्लोर किया जा सकता है. सूरत निकलने और छिपने के समय पूरा गांव पिछले सोने की रौशनी में नहाया हुआ लगता है. नेचर लवर्स के लिए ये किसी खजाने से कम नहीं है, जिसे देखने के लिए ही लोग दूर-दूर से सारी गांव पहुंचना पसंद करते हैं.
*बर्ड वॉचिंग में समय बिता जानें प्रकृति के रहस्य
सारी गांव में विजिट करते हुए आप प्रकृति के साथ बर्ड वॉचिंग का भी आनंद ले सकते हैं. यहां ऐसे कई स्पॉट हैं जहां आराम से बैठकर पक्षियों की चहचाहत सुन सकते हैं, वहीं कई अन्य प्राकृतिक आवाजों को भी महसूस कर सकते हैं. यह स्थान हिमालयन मोनाल, हिमालयन बारबेट, लैमर्जियर, हिमालयन ग्रिफॉन, गोल्डन ईगल, माउंटेन हॉक ईगल, कालिज तीतर, कोक्लास तीतर, धब्बेदार लकड़ी कबूतर, स्कार्लेट मिनिवेट, वर्डीटर फ्लाईकैचर और कई प्रवासी पक्षियों का घर है.
*गांव को एक्सप्लोर करें
अतिरिक्त समय निकालकर गांव को एक्सप्लोर जरूर करें, जहां में घूमने पर गढ़वाली शैली में बने खूबसूरत घर देखने को मिल जाएंगे. इनकी शुरूआत सीढिनुमा मोडों से होती है जोकि ऊपर जाते हैं. ऊपर से घरों की आकृति वी आकार की होती है. सारी गांव में कुल 1300 से भी कम लोग रहते हैं. इनकी महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि कृषि और पशुपालन ही है. वहीं गांव में चलने पर कई मौसमी फलों के पेड़ ध्यान खींचते हैं.
*सन राइज और सन सेट व्यू
गांव में कई सन राइज और सन सेट पॉइंट्स भी हैं, जिन्हें एक्सप्लोर जहां जाकर इन व्यू को देखना लाइफ टाइम एक्सपीरियंस है. सूरज निकलने और छिपने के समय पूरा गांव पिघले हुए सोने की रौशनी में नहाया हुआ सा लगता है. यह रौशनी सारी गांव के हर हिस्से को जीवंत कर देती है. नेचर लवर्स के लिए ये किसी खजाने से कम नहीं है, जिसे देखने के लिए ही लोग दूर-दूर से सारी गांव पहुंचना पसंद करते हैं.
सारी गांव में आसपास घूमने की जगह
बता दें कि सारी गांव को एक महत्वपूर्ण पड़ाव स्थल के समय देखा जाता है. वहीं नेचर लवर्स के लिए नेचर को जानने का सबसे पहला कदम ट्रेकिंग हो सकती है. इस दौरान न केवल प्रकृति को जानने का मौका मिलता है, बल्कि खुद को समझने और मानसिक शांति के लिए भी ट्रैक जरूरी है. सारी गांव से कई लोकेशन के ट्रेक की शुरूआत होती है. इस गांव में जाकर इन जगहों पर भी विजिट कर सकते हैं जोकि इस यात्रा को और भी खास बना देगा.
- ब्रह्म ताल
- रोहिणी बुग्याल
- देवरिया ताल
- चोपता
- तुंगनाथ मंदिर
- कैसे पहुंचे सारी गांव
- चंद्रशिला शिखर
- बिसुरी ताल ट्रेक
सारी गांव तक कैसे पहुंचे?
सारी गांव तक पहुंचने के लिए कई रास्तें हैं. यहां तक पहुंचने के लिए सड़कों की कनेक्टिविटी सबसे मजबूत है. यहां सड़क मार्ग से काफी आसानी के साथ पहुंचा जा सकता है. ऋषिकेश से ऋषिकेश, देवप्रयाग और रूद्रप्रयाग के रास्ते खूबसूरत शहरों का दीदार करते हुए ड्राइव करके पहुंचने में 7-8 घंटों का समय लग जाता है.
श्रेणी उससे जुड़ी हर डीटेल
निकटतम शहर उखीमठ (13 किमी)
निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश (180 किमी)
निकटतम एयरपोर्ट जॉलीग्रांट, देहरादून (210 किमी)
आवास की व्यवस्था होमस्टे, लोकल गेस्ट हाउस, बेसिक सुविधाओं से युक्त
यात्रा का उपयुक्त समय मार्च से जून एवं सितंबर से नवंबर
के बीच घूमने के लिए जा सकते हैं.
सारी गांव से सबसे नजदीकी शहर ऊखीमठ है, इसके बीच की दूरी 14.2 किलोमीटर है. यहां कई मार्गों से पहुंचा जा सकता है.
सड़क मार्ग से
सड़क के रास्ते सारी गांव पहुंचना सबसे ठीक रहता है, इस गांव तक सड़कों की कनेक्टिविटी है, वहीं यहां कई रास्तों से पहुंचा जा सकता है. दिल्ली से सारी गांव की दूरी 415 किलोमीटर है. जहां से ऊखीमठ के लिए बसे चलती हैं. वहीं हरिद्वार और ऋषिकेश से ऊखीमठ जा सकते हैं. ऊखीमठ से प्राइवेट कैब या टैक्सी लेकर जा सकते हैं.
रूट: दिल्ली → हरिद्वार → ऋषिकेश → देवप्रयाग → श्रीनगर → रुद्रप्रयाग → अगस्त्यमुनि → स्यालसौर → कुंड → उखीमठ → सारी गांव
रेल मार्ग से
रेल की मदद से भी सारी गांव पहुंचा जा सकता है. इसका निकटतम रेलवे स्टेशन हरिद्वार जंक्शन है. वहीं ऋषिकेश तक भी रेल के रास्ते पहुंचा जा सकता है. हरिद्वार और ऋषिकेश से लोकल वाहन (प्राइवेट कैब या टैक्सी) करके सारी गांव जा सकते हैं.
वायु मार्ग से
हवाई मार्ग से सारी गांव पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा जॉलीग्रांट एयरपोर्ट है. इससे सारी गांव की दूरी 210 से 215 किलोमीटर तक रह जाती है. इससे आगे प्राईवेट वाहन जैसे टैक्सी या कैब करके भी सड़क के रास्ते सारी गांव पहुंचा जा सकता है.
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