भारत सरकार की तरफ से हाल ही में कृषि को वैज्ञानिक और उन्नत दृष्टिकोण से जोड़ते हुए नए आयाम देने के लिए विकसित कृषि संकल्प अभियान की शुरूआत की गई है. यह अभियान विकसित भारत अभियान का ही हिस्सा है जिसका उद्देश्य साल 2047 तक देश को विकसित बनाना है. यह प्रधानमंत्री मोदी की एक महत्वकांशी अभियान है. बता दें कि विकसित भारत संकल्प अभियान को भारत सरकार के कृषि और कल्याण मंत्रालय व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा चलाया जा रहा है.
क्या है विकसित कृषि संकल्प अभियान?
खेती-किसानी को समर्पित यह अभियान वैज्ञानिकों और किसानों को एक साझा मंच देता है, जहां दोनों मिलकर कृषि को लेकर जानकारी लेंगे और इससे जुड़े विचारों को भी साझा कर सकेंगे. यह अभियान 29 मई से लेकर 12 जून तक देशभर में चलाया जा रहा है. बता दें कि यह भारत सरकार की एक तरफ से लॉन्च की गई एक महत्वकांशी पहल है, जिसे कृषि क्षेत्र में समग्र विकास, किसानों की जिंदगी और आय में सुधार, अच्छी पैदावार, सतत पोषणीय कृषि को बढ़ावा देने के लिए क्रियान्वित किया जा रहा है. इसके अंतर्गत वैज्ञानिकों को लेबोरेट्री और उनके ऑफिस से बाहर लाकर किसानों से उनका सीधा संपर्क करवाया जा रहा है.
इस अभियान के अंतर्गत सरकार ने 16 हजार वैज्ञानिकों की टीमों को गांव-गांव जाने और किसानों से संवाद स्थापित करने के लिए तैयार किया गया है. इसमें अलग-अलग प्रांतों में फसलों पर काम किया जा रहा है. वहीं वैज्ञानिक किसानों के बीच जाकर उनकी समस्याओं को सुनने, समझने और उसका समाधान देने की लगातार कोशिश कर रहे हैं. बता दें खरीफ फसल का सीजन आने वाला है ऐसे में 13 करोड़ किसानों सशक्त बनाने के लिए यह अभियान शुरू
विकसित कृषि संकल्प अभियान कैसे पहुंचेगा कौने-कौने तक?
जानकारी के लिए बता दें कि विकसित कृषि संकल्प अभियान में भारत के 700 से ज्यादा जिलों के 65 हजार गांवों के करीब 1.5 करोड़ किसानों से संवाद स्थापित किया जाएगा. इस अभियान के अंतर्गत खासतौर पर किसानों को मिट्टी के परिक्षण, मौसम के हिसाब से उपर्युक्त फसल का चयन, बीजों की सही किस्म का पता लगाना, फसल सुरक्षा के उपायों को लेकर भी संवाद स्थापित किया जाएगा. इस अभियान का शुभारंभ राष्ट्रीय स्तर पर केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया.
29 मई 2025 को ओडिशा के कृषि और प्रैद्योगिकी विश्वविद्यालय में इस अभियान का शुभारंभ केंद्रीय शिवराज सिंह चौहान ने इसका शुभारंभ किया था. इस दौरान उन्होंने कहा कि यह अभियान किसानों के भविष्य को बदलने की दिशा में एक ठोस और सराहनीय कदम है. उन्होंने कहा कि इस अभियान का उद्देश्य उत्पादन बढ़ाना, लागत को कम करना और किसानों की आय को दोगुना करना है. इस अभियान के अंतर्गत वैज्ञानिक और कृषि विशेषज्ञ अब सीधे गांवों का रुख कर रहे हैं और किसानों की जमीन की ‘कुंडली’ तैयार कर रहे हैं.
उत्तराखंड ने भी कृषि संकल्प अभियान के लिए कस ली है कमर
कृषि संकल्प अभियान को बड़ा बनाने और आम किसानों से जोड़ने के लिए इसे देशभर के राज्यों से जोड़ा जा रहा है. वहीं उत्तराखंड सरकार ने भी इसके लिए कमर कसी है. प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देहरादून के गुनियाल गांव में विकसित कृषि संकल्प अभियान की शुरूआत की. इसके तहत राज्य स्तर पर प्रत्येक जिले में 3 टीमों को तैयार किया जा रहा है. ये टीमें हर दिन 3 जगहों पर जाकर कार्यक्रम करेंगी. साथ ही हर कार्यक्रम में प्रदेश पर के 600 किसानों को जोड़ा जाएगा. बता दें कि इस अभियान का विशेष ध्यान आदिवासी बहुल क्षेत्रों, जीवंत गांवों (सीमावर्ती क्षेत्रों के साथ) और चुनौतीपूर्ण कृषि-पारिस्थितिक क्षेत्रों में स्थित गांवों पर होगा.
उत्तराखंड में कृषि संकल्प अभियान
इसके अंतर्गत उत्तराखंड के 95 विकासखंडों, 670 न्याय पंचायतें और 11,440 गांव शामिल किया गया है. कृषि वैज्ञानिक और अधिकारी संवाद स्थापित किया जाना है. इससे दोनों के बीच एक आपसी सहमति बनेंगी और ग्राउंड जीरो पर रहकर वैज्ञानिकों की समस्याओं का समाधान करने के लिए प्रयास करेंगे. जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान करती है. यह क्षेत्र 50 प्रतिशत आबादी को रोजगार प्रदान करता है. ऐसे में इस तरह के अभियान कृषि विकास की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकते हैं.
प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जय जवान जय किसान का नारा देते हुए इस इस अभियान की शुरूआत की. इस दौरान उन्होंने कहा कि यह अभियान पूरे देश के किसानों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगा. इसके तहत हमारे अन्नदाता भाइयों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया जाए. उन्हें मुनाफा हो, उनकी फसल अच्छी हो. उन्होंने आगे कहा कि यह अभियान हमारे राज्य के कृषि क्षेत्र को आधुनिकता और नवाचार से जोड़ने के साथ किसान भाइयों को सशक्त और समृद्ध बनाने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा.
सीएम धामी ने अन्नदाताओं को संबोधित करते हुए कहा कि एमएसपी को बढ़ा कर किसानों की आय में वृद्धि कर और किसान सम्मान निधि जैसी आर्थिक सहायता देकर उनका विकास किया जा सकता है.
प्रदेश के मुखिया ने बताया कि कृषि पशुपालन, बागवानी के लिए भी सरकार लगातार काम कर रही है. इस मौके पर कृषि कल्याण और ग्राम विकास मंत्री गणेश जोशी, कृषि सचिव डॉ. सुनील नारायण पांडेय भी मौके पर मौजूद रहे.
विकसित कृषि संकल्प अभियान का उद्देश्य और लक्ष्य
वैज्ञानिक ज्ञान और आधुनिकता कृषि पद्धतियों को किसानों तक पहुंचाना – इस अभियान के तहत कृषि क्षेत्र वैज्ञानिक ज्ञान को किसानों तक खासकर एकल स्वामित्व वाले किसानों पहुंचाना उन्हें सशक्त बनाना. ताकि वो इससे जुड़े बेहतर फैसले ले सकें.
किसानों और वैज्ञानिकों को एक ही मंच पर लाना – इस अभियान का सबसे बड़ा उद्देश्य किसानों और वैज्ञानिकों और किसानों को एक मंच उपलब्ध कराना है. ताकि वो एक स्थान पर रहकर अपनी समस्याओं का चर्चा करके समाधान पा सकें.
मृदा परिक्षण के आधार पर लाभदायक फसलों के चयन की जांच करना – मिट्टी की गुणवत्ता ही फसलों की पैदावार को बताने की बेहतरीन तरीका होता है. कई तरह की मिट्टी वहां उगने वाली फसलों के प्रकारों को डिसाइड करती है. ऐसे में मिट्टी की क्वालिटी जानकर पैदावार को बढ़ाया जा सकता है.
सतत जलवायु समर्थ कृषि को बढ़ावा देना – हर फसल के लिए एक निश्चित जलवायु होती है, ऐसे में इस अभियान की मदद से किसानों को फसलों के अनुकूल जलवायु और मौसम जैसी जानकारियां दी जाएंगी. ताकि उन्नत गुणवत्ता और बेहतरीन पैदावार की कृषि के लक्ष्यों को हासिल किया जा सके.
डिजिटल कृषि और अवसंरचना को प्रोत्साहित करना – हर दिशा में डिजटलीकरण काम कर रहा है, ऐसे में इसे कृषि दिशा में भी लाने और डिजिटल कृषि और अवसंरचना को मोटिवेट करने के लिए भी यह अभियान चलाया जा रहा है.
महिला और युवा सशक्तिकरण की भागीदारी को सुनिश्चित करना – हमेशा से ही महिलाओं की कृषि में उपस्थिति रही है, ऐसे में उनकी भागीदारी को बढ़ाने और सुनिश्चित करने के उद्देश्य से भी इस अभियान को चलाया जा रहा है. इससे जहां एक तरफ महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिलेगा तो वहीं उन्नत कृषि की राह भी प्रशस्त होगी.
फसलों, बीजों, अच्छी पैदावार के तरीकों और योजनाओं के प्रति जागरूक और शिक्षित करना – इस अभियान में वैज्ञानिक अपनी लैब और ऑफिसों से बाहर निकलकर किसानों को अच्छी पैदावार के लक्ष्यों को हासिल करना, फसलों, बीजों, जैविक कृषि की योजनाओं के प्रति जागरूक भी किया जाएगा.
क्या है इस अभियान की खासियत?
बता दें कि विकसित कृषि अभियान विकसित भारत अभियान का ही हिस्सा है, जिसका लक्ष्य 2046 तक भारत को विकसित बनाना है. इसकी बाकी की अन्य विशेषताएं निम्न प्रकार से नीचे बताई जा रही हैं.
1. विकसित कृषि अभियान के तहत वैज्ञानिकों और किसानों को एक साझा मंच देना है, ताकि इससे कृषि में स्वदेशी तरीकों से कृषि क्षेत्र में विकसित होने के लक्ष्य को हासिल किया जा सके.
2. इस अभियान में वैज्ञानिक गांवों में जाकर खेत की मिट्टी, जलवायु और कृषि परिस्थितियों का सटीक और गहनता से विश्लेषण कर रहे हैं.
3. खेत की मिट्टी में मौजूद नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम, जिंक, सल्फर और ऑर्गेनिक कार्बन जैसे पोषक तत्वों की जांच की जा रही है.
4. इसमें फसल और बीज की अच्छी क्वालिटी की सिफारिश दी जा रही है, जो विशेष रूप से स्थानीय जलवायु और मिट्टी के अनुकूलता प्रदान करते हो.
5. विकसित कृषि अभियान में किसानों को बताया जाए रहा है कि खाद का संतुलित और वैज्ञानिक उपयोग कैसे किया जाए. इसके पीछे का कारण मिट्टी की उर्वरता बनी रहे और खर्च भी कम करना भी है.
6. फसलों को लगने वाले रोगों, कीटों और वायरस के बारे में सही जानकारी देकर समाधान और रोकथाम के उपाय सुझाए जा रहे हैं. इसका उद्देश्य फसलों की रक्षा करके पैदावार को प्रोमोट करना है.
7. छोटे और सीमांत किसानों के पास अत्याधुनिक के लिए कृषि यंत्रों तक पहुंच आसान बनाना.
8. एग्रीस्टैक (AgriStack), मृदा प्रोफाइलिंग, ड्रोन टेक्नोलॉजी और निर्णय समर्थन प्रणाली (DSS) जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग करना सीखना.
9. जैविक खेती को बढ़ावा देना – पौष्टिक और जलवायु-अनुकूल अनाज जैसे बाजरा, रागी आदि को बढ़ावा देना.
10.रासायनिक मुक्त खेती को बढ़ावा देना, जिससे पर्यावरण और मृदा की गुणवत्ता सुरक्षित रहे. इससे न केवल फसलों की मिट्टी की गुणवत्ता अच्छी होगी, साथ ही अच्छी स्वास्थ्य को भी बढ़ावा दिया जाएगा.
उत्तराखंड में खेती की स्थिति
उत्तराखंड में कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 14 प्रतिशत हिस्से पर कृषि की जाती है, वहीं जनसंख्या का ज्यादातर हिस्सा प्राथमिक क्षेत्र से जुड़ा हुआ है. प्रदेश में हर साल दर साल कृषि योग्य भूमि घटती जा रही है. जो भूमि साल 2017-2018 में 842389 हेक्टेयर भू भाग पर खेती होती है जोकि साल 2023-2024 में घटकर केवल 688103 हेक्टेयर भूमि ही खेती के लायक बची है. आर्थिक आंकड़ों के आंकड़ों को समझें तो उत्तराखंड में 92.57 प्रतिशत भाग पर्वतीय है और केवल 7.43 प्रतिशत भाग मैदानी हैं.
उत्तराखंड में बदलती खेती की दशा और दिशा
पर्वतीय इलाकों में ज्यादातर भागों में मैदानी इलाकों में खेती की जाती है. इन इलाकों में सीढ़ीदार खेती की जाती है, आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2024-2025 के अनुसार उत्तराखंड राज्य में साल दर साल कृषि योग्य भूमि में गिरावट आ रही है.
वहीं आंकड़े बताते हैं कि उत्तराखंड में आज भी 70 प्रतिशत जनसंख्या प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से खेती पर निर्भर है. वहीं कुल कार्यशील जनसंख्या में से लगभग 49% लोग सीधे तौर पर कृषि आदि कार्यों में जुड़े हैं. प्रदेश में प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए किसान 35 प्रतिशत हैं, वहीं कृषि मजदूर के रूप में दूसरों की भूमि पर काम कर वालों की संख्या 14 प्रतिशत है. कृषि संबंधी अन्य गतिविधियों जैसे बागवानी, पशुपालन, डेयरी, वानिकी आदि के रूप में जुड़े हुए लोग 20 प्रतिशत के आस-पास हैं.
कृषि के उत्थान के लिए प्रदेश सरकार की तरफ से लाई गई अन्य परियोजनाएं
उत्तराखंड में प्रमुख रूप से धान, गेहूँ, मक्का, रागी, चौलाई आदि की खेती प्रमुख तौर पर की जाती है. इसके साथ ही कई फूलों और फलों को भी बड़े पैमाने पर उगाया जाता है जोकि अर्थव्यवस्था में भी योगदान देते हैं.
– उत्तराखंड के पहाड़ों में वर्षा आधारित कृषि खेती के लिए 1000 करोड़ की लागत से उत्तराखंड क्लाइमेट रिस्पोंसिवल रेड फेज को शुरू किया गया है.
-1200 करोड़ की लागत से सेब, कीवि, ड्रेगन फ्रूट नीति को भी लॉन्च किया जा रहा है, जिसके तहत इस तरह की फ्रूट खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है.
सरकार की तरफ से चलाई जा रही अन्य परियोजनाएं
औषधीय पौधों की खेती
वर्तमान में उत्तराखंड के अल्मोड़ा में बड़े पैमाने पर (5.5 हेक्टेयर) पर औषधीय पौधों की खेती की जा रही है. इसे प्रमोट करने के लिए सरकार भी सहयोग कर रही है, जहां जड़ी-बूटियों और नेचुरल मेडिसिन के प्लांट्स को उगाया जाता है.
श्रीअन्न (मिलेट्स) मिशन
सरकार की तरफ से मिलेट्स के उत्पादन को प्रमोट करने के लिए श्री अन्न मिशन भी लॉन्च किया गया है. बता दें कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वकांशी मिशनों में से एक है. इसके तहत रागी, मंडुआ, कंगनी, चीना, कोदो, सावा, कुटकी आदि का उत्पादन किया जा रहा है. इससे 1200 से भी ज्यादा किसान मिलेट्स (मोटे अनाजों) की खेती करके लाभ कमा रहे हैं.
कृषि यंत्रीकरण योजना
किसानों को सशक्त बनाने के लिए कृषि के यंत्रों पर 80 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जाती है. इसका उद्देश्य छोटे किसानों को इससे जोड़कर उत्तपादन को प्रमोट करना है. इससे अबतक कई किसान लाभान्वित हुए हैं.
फार्म मशीनरी बैंक योजना
इसके अंतर्गत हर ग्राम पंचायत में कृषि यंत्रों को सुसज्जित करना है. इसके तहत फार्म मशीनरी बैंक की स्थापना 10 लाख रुपये की लागत से हो रही है. इसमें 80 प्रतिशत यानी 8 लाख रुपये तक का अनुदान दिया जाता है.
नमो ड्रोन दीदी योजना
बता दें कि यह एक केंद्र सरकार की समर्थित योजना है. इसमें महिलाओं को ड्रोन तकनीक में प्रशिक्षित कर कृषि कार्यों में जन भागीदारी को सुनिश्चित करना है. इस साल तक 280 महिलाओं को इस योजना में जोड़ना.
जैविक खेती योजना
जैविक खेती को प्रमोट करने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. इससे राज्य में 11 जिलों में राष्ट्रीय प्राकृतिक मिशन के तहत 6,400 हेक्टेयर भूमि पर जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है.
उत्तराखंड में इन प्राथमिक गतिविधियों पर कितने करोड़ खर्च किए जाते है
कृषि और अनुसंधान: ₹1,259 करोड़.
बागवानी विकास: ₹657 करोड़.
पशुपालन: ₹9,329 करोड़
सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण: ₹1,899 करोड़.
मुख्यमंत्री राज्य कृषि विकास योजना: ₹25 करोड़.
मिशन एप्पल: ₹35 करोड़.
दुग्ध उत्पादन प्रोत्साहन योजना: ₹30 करोड़.
मिलेट मिशन: ₹4 करोड़.
यह भी पढ़ें – उत्तराखंड का ट्रैकिंग हब: जहां गांव बना पर्यटन और रोजगार का केंद्र, पलायन को दी मात
यह भी पढ़ें – त्रियुगीनारायण मंदिर बना युवाओं के लिए डेस्टिनेशन की पहली पसंद, प्राकृतिक और दिव्य वातावरण में लें शादी के सातों वचन