मेरी जिंदगी के समंदर में जब-जब लहरों का तूफान आया है, मुझे डूबने से बचाने खुद जन्नत से खुदा आया है… किसी शायर की ये लाइने एक प्राइवेट अस्पताल के डॉ. तेजेंद्र सिंह चौहान पर पूरी तरह फिट बैठती हैं. दरअसल डॉ. चौहान ने 21 साल के मूक-बधिर मरीज की किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी को सफल बनाने के लिए साइन लैंग्वेज ही सीख ली. फरीदाबाद के फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हॉस्पिटल में नेफ्रोलॉजी विभाग के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. तेजेंद्र सिंह चौहान ने बताया कि मामले का चुनौतीपूर्ण पहलू मरीज की सुनने और बोलने में असमर्थता थी. इस वजह से मरीज के लिए खासकर किडनी ट्रांसप्लांट प्रक्रिया के दौरान अपनी समस्याओं और दर्द को बताना मुश्किल था. उन्होंने कहा, ‘मरीज और डॉक्टर के बीच का बंधन विशेष होता है. जब कोई मरीज किसी बीमारी से पीड़ित होता है और बोलने में कठिनाई होती है, तो डॉक्टर की चुनौती कई गुना बढ़ जाती है.’
मरीज 2017 से हेमोडायलिसिस पर था लेकिन कोई महत्वपूर्ण सुधार नहीं हुआ. मरीज को पिछले महीने अस्पताल लाया गया. उसकी मां का ब्लड ग्रुप मिल गया और वह तुरंत अपनी किडनी दान करने के लिए तैयार हो गईं. किडनी ट्रांसप्लांट 22 जून को डॉ. चौहान और यूरोलॉजी और गुर्दा ट्रांसप्लांट निदेशक डॉ. अनूप गुलाटी की ओर से किया गया था. हालांकि, मरीज के मूक-बधिर होने के कारण उसके लिए अपने दर्द और आवश्यकताओं को बता पाना मुश्किल था. सांकेतिक भाषा की मदद से डॉ. चौहान ने मरीज की सर्जरी से पहले और बाद की प्रक्रियाओं को सुविधाजनक बनाया.
मामले की जानकारी देते हुए, डॉ. चौहान ने कहा, ‘किडनी ट्रांसप्लांट सफल रहा और ट्रांसप्लांट किडनी बेहतर ढंग से काम कर रही है. मामले का चुनौतीपूर्ण पहलू यह था कि मरीज सुनने और बोलने में असमर्थ था.’ मरीज के पैरंट्स सांकेतिक भाषा में एक्सपर्ट हैं, जिससे प्रभावी कम्युनिकेशन संभव हो सका. चौहान ने कहा, ‘इसके अतिरिक्त, मैंने सांकेतिक भाषा सीखने की पहल की. चूंकि पूर्ण दक्षता की जरूरत नहीं थी, इसलिए सरल संवाद सीखने में केवल एक सप्ताह लगा.’
किसी चीज को समझाने के लिए हाथों और उंगलियों का सहारा लेना और अपने चेहरे के हाव-भाव का इस्तेमाल करना ही सांकेतिक भाषा या साइन लैंग्वेज कहलाता है. सांकेतिक भाषा मूकबधिर लोगों के लिए बनाई गई है. सांकेतिक भाषा के जरिए मूक-बधिर लोग आसानी से दूसरों की बात को समझ सकते हैं और दूसरों को अपनी बात समझा सकते हैं. इसके जरिए विचारों और भावनाओं का बिना बोले आदान-प्रदान किया जा सकता है.