गुरु गोबिंद सिंह जी द्धारा 1699 में बैसाखी वाले दिन सिंह सजाने के बाद से देश पर आए किसी भी संकट से निबटने के लिए सिख हमेशा ही आगे बढ़कर दुश्मनों से लड़ते रहे है। सारागढ़ी युद्ध भी ऐसा ही एक युद्ध था। इस युद्ध को इतिहास में सिख सैनिकों की वीरता और महान अंत के लिए जाना जाता हैं। सारागढ़ी के युद्ध का नाम विश्व के 5 महान युद्धों में गिना जाता है। यह युद्ध 12 सितम्बर 1897 को ब्रिटिश भारतीय सेना जो सिख थे और अफगानी ओराक्जई जनजातियों के बीच तीरह अब पाकिस्तान में लड़ा गया था। इस युद्ध में 10,000 अफगानों योद्धाओं का सामना सिर्फ 21 सिख सैनिकों ने किया था। इस असमान्य युद्ध का नेतृत्व ब्रिटिश भारतीय सेना के हवलदार ईशर सिंह ने किया था। 7 घंटे में करीब 600 अफगान मारे गए इस युद्ध में 20 सिख सैनिकों ने जहां सीधे तौर पर अफगानों से इस लड़ाई में भाग लिया, वहीं 1 सिख गुरमुख सिंह युद्ध की सारी जानकारी कर्नल हौथटन को तार के माध्यम से भेज रहे थे, जब सभी 20 सिख सैनिक शहीद हो गए तो अंतिम रक्षक गुरमुख सिंह ने अपनी राइफल के साथ वहां पोज़ीशन ली, जहां पर जवानों के सोने के लिए कमरे थे।
इतिहासकार अमरिंदर सिंह ने अपनी किताब में लिखा है कि गुरमुख ने अकेले गोली चलाते हुए कम से कम बीस पठानों को मारा। जिससे गुस्साए पठानों ने लड़ाई ख़त्म करने के लिए पूरे क़िले में आग लगा दी। इस युद्ध में मारे गए अफगानों की संख्या को लेकर इतिहासकारों के अलग-अलग दावे हैं।
हालांकि माना जाता है कि गैरबराबरी की ये लड़ाई करीब 7 घंटे तक चली, जिसमें सिखों की तरफ़ से 21 सिख और एक असैनिक दाद समेत 22 लोग और पठानों की तरफ़ से 300 से 600 लोग मारे गए। इस युद्ध के दो दिन के बाद ही अतिरिक्त सेना ने सारागढ़ी पर वापस भारतीय ब्रिटिश सेना का कब्जा दिला दिया।
इस युद्ध मे अपनी वीरता और बहादुरी साबित करने वाले सभी 21 सिखों को मरणोपरांत ब्रिटिश साम्राज्य की तरफ से बहादुरी का सर्वोच्च पुरस्कार इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट दिया गया, जो उस समय तक भारतीयों को मिलने वाला सबसे बड़ा वीरता पदक था, यह तब के विक्टोरिया क्रॉस और आज के परमवीर चक्र के बराबर था। तब तक विक्टोरिया क्रास सिर्फ अंग्रेज़ सैनिकों को ही मिल सकता था, वह भी जीवित रहने पर। भारत में इस दिन सिख रेजीमेंट इसे “रेजीमेंटल बैटल ऑनर्स डे” घोषित किया गया हैं।
सारागढ़ी के इन 21 वीर सैनिकों में ज्यादातर सैनिक नहीं थे, साथ ही उनमें कुछ रसोईये और कुछ सिग्नलमैन भी थे। इस भीषण युद्व में शहीद हुए शहिदों के नाम हवलदार ईशर सिंह, गुरमुख सिंह, चंदा सिंह, लाल सिंह, जीवन सिंह, बूटा सिंह, जीवन सिंह, नन्द सिंह, राम सिंह, भगवान सिंह, भोला सिंह, दया सिंह, नारायण सिंह, साहिब सिंह, हिरा सिंह, सुन्दर सिंह, उत्तर सिंह, करमुख सिंह, गुरमुख सिंह, भगवान सिंह, राम सिंह है।