संविदा विधि से संबंधित अब तक के आलेखों में संविदा विधि सीरीज के अंतर्गत 14 आलेख लिखे जा चुके हैं तथा इस आलेख- 15 में प्रत्याभूति की संविदा क्या होती है, इस संदर्भ में उल्लेख किया जा रहा है अब तक के आलेखों में संविदा विधि की आधारभूत धाराओं तथा क्षतिपूर्ति की संविदा तक उल्लेख किया जा चुका है, क्षतिपूर्ति की संविदा क्या होती है इस संदर्भ में जानने के लिए इसके पूर्व के आलेख का अध्ययन करें.
प्रत्याभूति हमारे आसपास का आम बोलचाल का शब्द है. अधिकांश मामलों में हमें ग्यारंटी शब्द सुनने में मिलता है. भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 126 के अंतर्गत ग्यारंटी की संविदा को परिभाषित किया गया है. धारा 126 के अनुसार प्रत्याभूति की संविदा किसी पर व्यक्ति द्वारा व्यतिक्रम की दशा में उनके वचन का पालन या उसके दायित्व का निर्वहन करने की संविदा है. इसका तात्पर्य यह हुआ कि किसी पर व्यक्ति द्वारा व्यतिक्रम की दशा में उसकी प्रतिज्ञा का पालन नहीं करता है या अपने दायित्व का निर्वहन नहीं करता है तो वह उसकी प्रतिज्ञा का पालन करेगा.
कुछ यूं भी समझा जा सकता है कि जब कोई व्यक्ति अपने वचन का पालन न करें तब उसकी ओर से पालन करने का दायित्व किसी व्यक्ति द्वारा अपने ऊपर लिया जाता है.एक साधारण से उदाहरण के माध्यम से यूं समझा जा सकता है कि किसी व्यक्ति द्वारा यह करार किया जाता है कि दूसरे व्यक्ति द्वारा संदाय नहीं किए जाने पर वह उसका संदाय करेगा एक प्रत्याभूति की संविदा है.
बैंक इत्यादि के ऋण के समस्त काम प्रत्याभूति की संविदा के आधार पर ही संचालित हो रहे हैं. प्रत्याभूति की संविदा की परिभाषा देते हुए भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 126 इस प्रकार की संविदा के पक्षकारों का भी उल्लेख करती है जिसके अंतर्गत इस संविदा में मुख्यतः तीन प्रकार के पक्षकार होतें हैं.
1)- प्रतिभू (Surety)
वह व्यक्ति होता है जो प्रत्याभूति देता है जो व्यक्ति प्रत्याभूति देता है वही प्रतिभू कहलाता है.
2)- मूल ऋणी
वह व्यक्ति जिसके व्यतिक्रम के बारे में प्रत्याभूति प्रदान की जाती है मूल ऋणी कहलाता है.
3)- लेनदार
वह व्यक्ति जिसको प्रत्याभूति दी जाती है लेनदार कहलाता है.