कोई भी व्यक्ति अपने जीवनकाल में अनेक संपत्तियां अर्जित करता है. ऐसी संपत्ति चल और अचल दोनों प्रकार की होतीं हैं। किसी व्यक्ति के पास अचल संपत्ति में बैंक खाता, एफडी, शेयर्स, वाहन, डिबेंचर, नक़दी, गोल्ड सिल्वर इत्यादि अनेक चीज़ें होती हैं. अचल संपत्ति में व्यक्ति के पास घर, प्लॉट, फ्लैट, कृषिभूमि इत्यादि होतें हैं. यह सभी संपत्ति व्यक्ति भिन्न भिन्न प्रकार से अर्जित करता है। मुख्य रूप से यह संपत्तियां व्यक्ति को तीन प्रकार से प्राप्त होतीं हैं.
ऐसी संपत्ति व्यक्ति स्वयं अर्जित करता है. अब भले इस संपत्ति को अपने कमाए रुपए से ख़रीदा हो या फिर उस व्यक्ति को किसी व्यापारिक विभाजन में ऐसी संपत्ति प्राप्त हुई हो या फिर ऐसी संपत्ति उस व्यक्ति को दान में प्राप्त हुई हो. इन सभी संपत्तियों को स्वयं अर्जित संपत्ति कहा जाता है.उत्तराधिकार या वसीयत में प्राप्त संपत्ति भी एक प्रकार से व्यक्ति की स्वयं अर्जित संपत्ति ही है. क्योंकि उत्तराधिकार व्यक्ति को नैसर्गिक रूप से मिलता है और वसीयत भी उसे वसीयतकर्ता के साथ उसके मृदुल स्वभाव के कारण मिलती है.यह संपत्ति ऐसी संपत्ति होती है जो तीन पीढ़ियों के बाद होतीं हैं. तीन पीढ़ी पहले की संपत्ति पैतृक संपत्ति हो जाती है. आजकल ऐसी संपत्तियां कम हैं लेकिन पुराने संयुक्त परिवारों के पास आज भी ऐसी संपत्तियां उपलब्ध है.
आमतौर पर यह समझा जाता है कि किसी भी जीवित पिता की संपत्ति पर बच्चों का अन्यय अधिकार है जबकि यह धारणा ग़लत है. यदि किसी व्यक्ति के पास उसकी स्वयं अर्जित संपत्ति है जिसमें उसे उसके पिता माता या अन्य रिश्तेदार से उत्तराधिकार में मिली संपत्ति और वसीयत के मार्फ़त मिली संपत्ति भी शामिल है तब बच्चों का उस जीवित व्यक्ति की संपत्ति पर कोई भी अधिकार नहीं होता है. यदि वह पिता की संपत्ति को इस्तेमाल कर भी रहें हैं तो यह पिता का बड़प्पन है कि उसने अपनी वयस्क संतानों को संपत्ति का इस्तेमाल करने से रोका नहीं है अन्यथा एक पिता के पास यह अधिकार है कि वह अपनी संतानों को अपनी संपत्ति से निकाल दे.
संतानें किसी भी सूरत में पिता या माता किसी भी संपत्ति में कोई दखल नहीं कर सकती हैं और न ही उस संपत्ति पर दावा कर सकतीं हैं. यदि किसी व्यक्ति को ऐसी संपत्ति अपने पिता के मरने के बाद उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है तब भी उस व्यक्ति की संतानें इस आधार पर दावा नहीं कर सकतीं कि संपत्ति उनके दादा की है, क्योंकि संपत्ति पर सबसे पहला अधिकार किसी भी व्यक्ति के उसके जीवित पुत्र पुत्री और पत्नी का है. पोती या पोते इस आधार पर दावा नहीं कर सकतें कि संपत्ति उनके दादा की है, पिता के जीवित रहते पोता पोती का दादा की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है. पति के जीवित रहते बहु के पास भी ऐसा कोई अधिकार नहीं है.
पैतृक संपत्ति पर ज़रूर संतानों और पत्नी का अधिकार होता है. क्योंकि यह संपत्ति पिछली तीन पीढ़ियों से चली आ रही होती है. ऐसी संपत्ति को किसी व्यक्ति की अर्जित संपत्ति नहीं माना गया है. यदि किसी व्यक्ति के पास ऐसी संपत्ति है तब उसकी संतानें ऐसी संपत्ति पर क्लेम कर सकतीं हैं और पिता अपनी संतानों को ऐसी संपत्ति से बेदखल भी नहीं कर सकता है.