सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि संपत्ति का पूर्ण मालिक वसीयत द्वारा अजनबियों के पक्ष में भी अपनी संपत्ति देने का हकदार है.इस मामले में, सरोजा अम्मल ने टाईटल की घोषणा और कुछ संपत्तियों के संबंध में स्थायी निषेधाज्ञा के लिए एक वाद दायर किया. उसका दावा मुनिसामी चेट्टियार की आखिरी वसीयत और वसीयतनामे पर आधारित था, जिसे उसने अपना पति होने का दावा किया था. ट्रायल कोर्ट ने वाद का फैसला सुनाया और प्रथम अपीलीय अदालत ने प्रतिवादियों द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया. मद्रास हाईकोर्ट ने द्वितीय अपील की अनुमति दी और वाद को खारिज कर दिया.
हाईकोर्ट ने कहा कि (i) एक पुरुष और एक महिला का लंबे और निरंतर एक साथ रहना, (ii) समाज द्वारा कई वर्षों तक उनके साथ इसी तरह का व्यवहार और (iii) यह तथ्य कि वे एक ही छत के नीचे रह रहे हैं, आमतौर पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वे पति और पत्नी के रूप में रह रहे हैं, लेकिन इस तरह के अनुमान का लाभ उपलब्ध नहीं होगा यदि पति या पत्नी में से किसी ने दूसरे व्यक्ति से शादी की हो. चूंकि तथ्यों के आधार पर, वादी का विवाह एक मारीमुथु गौंडर से हुआ था और उसके दो बच्चे भी थे, इसलिए हाईकोर्ट ने उसके खिलाफ कानून के पहले प्रश्न का उत्तर दिया.
यह भी माना गया कि वसीयत के निष्पादन के आसपास संदिग्ध परिस्थितियां थीं और वसीयत को कानून के अनुसार साबित नहीं किया जा सकता है.सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने उल्लेख किया कि हाईकोर्ट ने स्वयं कहा है कि चाहे वादी मुनिसामी चेट्टियार की पत्नी थी या नहीं, वह घोषणा और निषेधाज्ञा की राहत की हकदार होगी, यदि वह यह साबित करने में सक्षम है कि वसीयतकर्ता द्वारा वसीयत को एक स्वस्थचित और देने वाली मनःस्थिति में निष्पादित किया गया था. पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 100 के तहत एक दूसरी अपील में एक अलग निष्कर्ष पर आने के लिए एक ही सबूत की फिर से सराहना की.
प्रतिवादी ने इंद्र सरमा बनाम वी के वी सरमा (2013) 15 SCC 755 पर भरोसा दिखाया जिसमें अदालत ने कहा कि उक्त निर्णय इस सवाल से निकला है कि क्या घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 2 (एफ) के तहत उक्त अभिव्यक्ति के अर्थ के भीतर लिव इन रिलेशनशिप एक घरेलू संबंध होगा.