उत्तरकाशी टनल हादसे के 17 दिन बाद 41 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया है. अब उत्तराखंड सरकार ने मजदूरों की जान बचाने वालों (रैट माइनर्स) को इनाम देने की घोषणा की है. राज्य सरकार ने कहा, जिन लोगों ने सुरंग खुदाई में काम किया है, उन्हें 50-50 हजार रुपए दिए जाएंगे.
बुधवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तरकाशी के चिन्यालीसौड़ स्वास्थ्य केंद्र में 41 श्रमिकों से मुलाकात की. उसके बाद एक बयान में कहा, मैं उन सभी से मिला हूं. वे स्वस्थ और खुश हैं. चिकित्सा जांच की गई है. किसी को कोई समस्या नहीं है. आगे की चिकित्सा जांच के लिए उन्हें आज एम्स, ऋषिकेश भेजा जाएगा. वादे के मुताबिक इन मजदूरों को एक-एक लाख रुपये के चेक दिए जाएंगे. इसके अलावा, खुदाई के लिए सुरंग के अंदर गए बचावकर्मियों को राज्य सरकार की तरफ से 50-50 हजार रुपये का पुरस्कार दिया जाएगा.
इससे पहले मंगलवार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा था कि 41 श्रमिकों में से प्रत्येक को एक-एक लाख रुपये दिए जाएंगे. उन्होंने यह भी कहा कि मंदिर के मुहाने पर बौखनाग मंदिर का पुनर्निर्माण किया जाएगा और राज्य में निर्माणाधीन सुरंगों की समीक्षा की जाएगी. धामी ने कहा, केंद्र सरकार ने निर्माणाधीन सुरंगों का सुरक्षा ऑडिट कराने का फैसला किया है. उन्होंने कहा कि बचाव अभियान में इस्तेमाल की गई अमेरिकी ऑगर मशीन ने बार-बार बाधाओं को पार किया और मिशन को पूरा करने के लिए रैट माइनर्स को धन्यवाद दिया था.
उन्होंने कहा था, बचाव अभियान में मैनुअल माइनर्स ने बड़ी भूमिका निभाई. श्रमिकों के बाहर निकलने के लिए सबसे छोटे रास्ते के बारे में अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों से सलाह ली गई थी. मजदूरों को घर भेजे जाने से पहले चिकित्सा निगरानी में रखा गया है. मुख्यमंत्री ने कहा, जिस एजेंसी के लिए मजदूर काम कर रहे हैं, उसे 15-20 दिनों के लिए घर जाने की अनुमति देने के लिए कहा गया है. धामी ने यह भी बताया था कि सबसे कम उम्र के मजदूरों को सबसे पहले निकाला गया था.
इससे पहले रैट माइनर वकील हसन ने बताया कि हमने टनल में 18 मीटर अंदर तक पाइप डाला था. वैसे हमें 15 मीटर तक पाइप डालना था. लेकिन, जब यह पाइप दूसरी तरफ नहीं निकला तो हमने तीन मीटर तक और मलबा हटाकर पाइप डाला. हमारी टीम में मैं और मुन्ना पार्टनर हैं. बाकी 10 अन्य लड़के वर्कर हैं. पाइप के अंदर घुसकर, लेटकर काम करना होता है. चूहों की तरह काम करते हैं. आगे मिट्टी काटते हैं और उसे पीछे की तरफ फेंकते हैं. इसी तरीके से आगे बढ़ते जाते हैं. टनल के अंदर जब पहली बार मजदूरों से मिले तो वो रीएक्शन बहुत भावुक था. जैसे रेगिस्तान में एक प्यासा होता है और उसे पीना मिलता है. ठीक यही बात हमारे लिए भी थी. हमने अपना मकसद पूरा किया, इस बात की खुशी है. मजदूर भी बिना खरोच के बाहर निकल आए.