देहरादून: वर्ष 2023 गुजर रहा है मगर अपने साथ तमाम यादें भी देकर जा रहा है. उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के एक छोटे से गांव सिलक्यारा की निर्माणाधीन सुरंग में जो कुछ हुआ उसे पूरे देश ने देखा और इसके लिए काफी समय तक याद रखा जाएगा. रोशनी के त्योहार दीपावली के दिन सिलक्यारा की निर्माणाधीन सुरंग के अंधेरे में 41 मजदूरों के फंस जाने की खबर ने देश दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा. फिर चला भारत का सबसे लंबा सिलक्यारा टनल रेस्क्यू अभियान, जिसके साथ 17 दिनों तक पूरे देश की सांसें अटकी रहीं.
संघर्ष, संकल्प और फिर सफलता की अनूठी दास्तान इस अभियान के साथ जुड़ी रही, जिसमें एक तरफ वे मजदूर थे, जिन्होंने 17 दिन तक सुरंग में फंसे रहने के बावजूद धैर्य और हौसले की अनूठी मिसाल पेश की. दूसरी तरफ थे, केंद्र व राज्य सरकार की तमाम संस्थाओं के राहतकर्मी, जिन्होंने असाधारण कार्य कर एक दुरूह अभियान को सफलता का स्वाद चखाया. दिवाली के दिन 12 नवम्बर को चार धाम यात्रा परियोजना के लिए तैयार की जा रही सुरंग में 41 मजदूर रोजमर्रा की तरफ काम करने पहुंचे थे. यह सुरंग काफी खुद चुकी थी, लेकिन अचानक सुरंग में पहाड़ से मलबा आ जाने के बाद 41 मजदूर भीतर ही फंस गए. निर्माणाधीन सुरंग में जिस जगह पर मजदूर फंसे, वहां पर सुरंग के भीतर ही दो से ढाई किलोमीटर की जगह उपलब्ध थी, लेकिन आक्सीजन, खाने-पीने की चीजों की व्यवस्था जरूरी थी. इसके बाद, केंद्र और राज्य सरकार की तमाम एजेंसियां जुटीं और एक साथ कई योजनाओं पर काम शुरू हुआ.
पूरे 17 दिन तक अभियान के साथ उतार-चढ़ाव, उत्साह-मायूसी जैसी बातें घटती रहीं. पहाड़ की चट्टानों से मशीनों के हारने से लेकर रेट माइनर के हुनर से मोर्चा फतह कर लेने जैसी तमाम बातें इस अभियान से जुड़ी रहीं. सिलक्यारा की घटना के बाद दुनिया भर में ऐसी घटनाओं की जानकारी के लिए गूगल सर्च होने लगा, जिसमें लोग कई-कई दिन तक टनल या इसी तरह की किसी दूसरी आपदा में फंसे रह गए हो. भारत में इस तरह का यह पहला राहत अभियान बताया गया, जिसमें 17 दिन तक 41 मजदूर सुरंग में फंसे रहे. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दिल्ली से सिलक्यारा मामले पर सीधे नजर बनाए रहे, तो उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी तो मौके पर ही डटकर अभियान की मॉनीटरिंग करते रहे.
उत्तरकाशी का सिलक्यारा गांव, जिसका अच्छे से उत्तराखंड के भीतर ही कोई नाम नहीं था, देश-दुनिया में बहुचर्चित नाम बन गया. आपदा के बाद संघर्ष की कहानी सिलक्यारा में दिखी. इसी क्रम में उस संकल्प के दर्शन हुए, जिसमें 41 जिंदगियों को बचाने का पवित्र उद्देश्य सम्मिलित था और सफलता से युक्त सुखद परिणिति यह रही कि बगैर किसी को खरोंच तक आए सभी 41 जिदंगियां अंधेरे से उजाले में आ गईं.
साभार – हिन्दुस्थान समाचार