Uttarakhand News: ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी में पांच दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में माइक्रोएल्गी की वैश्विक क्षमता, बायोमास और खाद्य उत्पादनों पर चर्चा की गई.
सोमवार को कार्यशाला के पहले दिन रशियन अकादमी ऑफ सांइस के डा. मिखाइल एस व्लास्किन ने बताया कि माइक्रोएल्गी प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरता कम करने का बेहतरीन साधन है. कार्यक्रम का उद्घाटन कुलपति डा. नरपिन्दर सिंह और डीन इण्टरनेशन अफेयर्स डा. डी. आर. गंगोडकर ने किया. इसका उपयोग खाना और चारा बनाने में किया जाता है.
मॉस्को स्टेट यूनिवर्सिटी रूस की डा. सोफिया किसलेवा ने माइक्रोस्कोपी, माइक्रोएल्गी स्टेन्स का दृष्य विश्लेषण और अन्य माइक्रोएल्गी उत्पादन की आधुनिक तकनीकों पर प्रकाश डाला. पाण्डुचेरी यूनिवर्सिटी के डा. किशन कुमार जैसवाल ने खाद्य उद्योग में माइक्रोएल्गी के उपयोगों पर प्रकाश डाला.
रशियन वैज्ञानिक डा. मिखाइल एस व्लास्किन और डा. सोफिया किसलेवा ने ग्राफिक एरा ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन्स के चेयरमैन डा. कमल घलशाला से मुलाकात की. उन्होंने विश्वविद्यालय की गतिविधिायों और अनुसंधानों पर चर्चा की.
यह कार्यशाला ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी के फूड सांइस एण्ड टेक्नोलॉजी डिपार्टमेण्ट ने आयोजित की गई. कार्यशाला में डीन लाइफ सांइस डा. प्रीती कृष्ण, एचओडी विनोद कुमार, भावना बिष्ट, सलोनी जोशी, अरुण कुमार, डा. संजय कुमार, डा. अरुण कुमार गुप्ता, डा. बिन्दू नायक और अंकिता डोभाल भी मौजूद रहीं.
साभार – हिन्दुस्थान समाचार