Dhar Bhojshala Dispute: मध्य प्रदेश के धार में मौजूद भोजशाला विवाद को लेकर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की खंडपीठ ने बड़ा आदेश सुनाया है. जिसके बाद अब ज्ञापवापी की तरह ही भोजशाला का भी एएसआई द्वारा सर्वे किया जाएगा. मां सरस्वती मंदिर भोजशाला के सर्वेक्षण कराने को लेकर हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ने हाईकोर्ट ने एक याचिका दायर की थी. इस पर सुनवाई करते न्यायलय ने हाल ही में बड़ा फैसला सुनाया है जोकि अब सभी का ध्यान खींच रहा है.
हाईकोर्ट ने दिए आदेश
दरअसल मां सरस्वती मंदिर भोजशाला के एएसआई सर्वे को लेकर हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ने मध्य प्रदेश में आवेदन दाखिल किया था. इस मामले में दोनों पक्षों को सुनने के बाद उच्च न्यायलय ने फरवरी में ही फैसला सुरक्षित रख लिया था. जिस पर अब कोर्ट की तरफ से एएसआई सर्वे करने का आदेश दे दिया. बता दें कि इस याचिका के अंतर्गत एक अंतरिम आवेदन की मदद से यह मांग की गई थी कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को आदेश दिया जाए कि वह ज्ञानवापी की तरह ही धार की भोजशाला का भी सर्वेक्षण करे.
उल्लेखनीय है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने कोर्ट को बताया कि साल 1902-03 में भोजशाला का सर्वे हुआ था जिसकी रिपोर्ट कोर्ट के रिकार्डों में दर्ज है. नए सर्वे की रिपोर्ट करने से नकारा गया था. मुस्लिम पक्ष की तरफ से भी यही दलील दी गई थी, उसका कहना है कि वर्ष 1902-03 में हुए सर्वे के आधार पर ही जांच को आगे बढ़ाया जाए.
काफी पुराना है भोजशाला विवाद
आपको बता दें कि भोजशाला विवाद भी काफी पुराना है. इसमें हिंदू पक्ष का कहना है कि यह सरस्वती देवी का मंदिर है. सदियों पहले मुसलमानों ने यहां मौलाना कमालुद्दीन की मजार का निर्माण किया गया था. आज भी भोजशाला में कई ऐसे देवी-देवताओं के चित्र और संस्कृत में श्लोक अंकित हैं जो लोगों का ध्यान खींचते हैं. अंग्रेज उस वक्त भोजशाला में लगी देवी की मूर्ति को लंदन ले गए थे. हाईकोर्ट में दाखिल की गई याचिका में कई दावे किये गए थे जिसे मुसलमान पक्ष हमेशा नकारता ही आया है.
क्या है भोजशाला का इतिहास?
भोजशाला का इतिहास सदियों पुराना है परमार वंश के राजा भोज ने 1034 में मध्यप्रदेश के धार में सरस्वती सदन की स्थापना की थी. उस समय यह एक महाविद्यालय हुआ करता था, जोकि बाद में भोजशाला के नाम से प्रसिद्ध हुआ. राजा भोज के राज्यकाल में ही यहां मां सरस्वती (वाग्देवी) की भव्य प्रतिमा स्थापित की गई थी. यह मूर्ति भोजशाला के पास ही खोदाई में मिली थी. साल 1880 में इसे लंदन भेजा गया था. वहीं साल 1456 में महमूद खिलजी ने मौलाना कमालुद्दीन के मकबरे और दरगाह का निर्माण करवाया था इसके बाद भोजशाला का इतिहास कहीं गुम सा हो गया.