देश में वक्फ की बढ़ती मनमानियों पर लगाम लगाने के लिए वक्फ संशोधन कानून आ गया है. इससे उत्तराखंड वक्फ के हालातों पर काबू पाने में भी मदद मिलेगी. प्रदेश में बोर्ड की स्थिति काफी खस्ता है, जिस पर 22 सालों से बिल्कुल ध्यान नहीं दिया गया. इसके चलते वक्फ मानमानी करने के साथ अंदर से और भी खोखला होता गया. पूरे देश के साथ अब उत्तराखंड के वक्फ बोर्ड को कानून को भी बदलाव का इंतजार है.
उत्तराखंड, यूपी से अलग होकर साल 2000 में स्वतंत्र राज्य बना था, इस हिस्से बंटवारे के दौरान बड़ी संख्या में संपत्तियां इधर-उधर हुई. कई प्रोपर्टी उत्तराखंड के अंतर्गत आईं मगर इनकी देख-रेख को लेकर कुछ स्पष्ट नहीं हो सका. साल 2003 को उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड वक्फ को 2032 सुन्नी एवं 21 शिया संपत्तियां सौंपी गईं.
वक्फ की कार्यप्रणाली पर सवाल
वर्तमान में वक्फ बोर्ड के पास 2146 औकाफ व कुल 5388 संपत्तियां हैं. इतने कम सालों से इतनी ज्यादा संख्या में प्रोपर्टी का होना अपनेआप में सवाल खड़े करता है. इसे लेकर सरकार की तरफ से युद्ध स्तर पर अभियान भी चलाया जा रहा है. इतनी ज्यादा प्रोपर्टी मिलने के बाद भी बोर्ड के पास कर्मचारियों का कोई ढांचा नहीं बन पाया. साल 2004 में सरकार से विशेष अनुमति लेकर केवल 4 कर्मचारियों को भर्ती किया गया था ये पद इस प्रकार से हैं.
वक्फ निरीक्षक-01
रिकॉर्ड कीपर-01
कनिष्ठ लिपिक-01
अनुसेवक-01
तब से लेकर आज तक प्रदेश का वक्फ बोर्ड सरकार के भरोसे यूं ही चल रहा है. हालांकि बोर्ड ने 36 कर्मचारियों को भर्ती करवाने के लिए प्रस्ताव पास किया था मगर ये कभी स्वीकृत नहीं हो सका. राज्य में दोनों दलों की सरकारें आने के बाद भी तस्वीर नहीं बदल सकीं. सरकारों की तरफ से संशोधन भी किया गया.
प्रदेश में वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष
उत्तराखंड में वक्फ बोर्ड के गठन के बाद साल 2004 में रईस अहमद पहले अध्यक्ष बने जो की साल 2007 तक अपने पद पर रहे. इसके बाद साल 2007 से लेकर 2010 में जिलाधिकारी देहरादून बोर्ड के प्रशासक के पद पर तैनात रहे. इसी बीच साल 2010-12 तक हाजी राव शराफत अली, 2013-15 तक राव काले खां अध्यक्ष रहे.
बता दें कि साल 2016 में तकरीबन 7 महीनों के लिए डीएम देहरादून के हवाले के यह जिम्मेदारी रही है. 2021 में कुछ महीने डॉ. अहमद इकबाल प्रशासक के पद पर तैनात रहे. वहीं साल 2022 सितंबर से वर्तमान तक शादाब शम्स बोर्ड के अध्यक्ष पद पर तैनात हैं.