इन दिनों होम स्टे पहाड़ों पर काफी पर्यटकों का ध्यान खींच रहे हैं. हिमालय की गोद में बसे सीमांत उत्तरकाशी जनपद के चिल्यानीसौड़ के मथोली गांव में महिलाएं पर्यटन को नए पंख लगा रही हैं. इन दिनों ब्वारी गांव के नाम ले मशहूर हो रहे इस गांव में घरों को सुंदर होम स्टे में बदल कर टूरिज्म को स्वरोजगार का नया जरीया बना दिया है. यहां पर्यटकों को पहाड़ी मिट्टी के साथ रिति-रिवाजों, खान-पान की अनूठी छाप मिल रही है. वहीं महिलाएं को लोगों को विलेज टूर करवा रही हैं.
प्रदीप पंवार सवार रहे हैं कई ग्रामीणों की जिंदगी
उत्तराकाशी से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मथोली गांव की पहचान अब ब्वारी गांव के रूप में बन गई है. इसका पूरा श्रेय प्रदीप पंवार को जाता है जिन्हें कोविड 19 लॉकडाउन के दौरान शहर से गांव वापस जाना पड़ा था. वही खाली रहकर उन्होंने ट्रेवलिंग सेक्टर में अपना हाथ आजमाया, सबसे पहले प्रदीप ने अपनी ही गौशाला को ही होम स्टे में बदल दिया. साथ ही उन्होंने गांव के लोगों को ही आतिथ्य सत्कार से लेकर, पहाड़ी खाने के ज़ायके, ट्रैकिंग और विलेज टूर करवाने तक की भी ट्रेनिंग दी. इस काम में सबसे ज्यादा सहयोग पहाड़ी महिलाओं ने दिया है जिसके चलते पूरे गांव की ब्रांडिंग ब्वारी गांव के तौर पर की गई.
सैलानियों को भा रही है पहाड़ी संस्कृति

मथोली गांव की महिलाओं ने यह साबित कर दिया कि अगर महिलाएं कुछ करने की ठान ले तो वो पूरा करने के बाद ही दम लेती हैं. यहां पर पर्यटकों को पहाड़ी विलेजों की लाइफस्टाइल से लेकर खानपान तक सबकी झलक देखने को मिल जाती है. वहीं पहाड़ी लोगों के बीच उनकी संस्कृति को जीना टोरिस्टों के लिए अलग ही अनुभव रहता है. धीरे-धीरे लोगों की मेहनत रंग लाई है और अब साल 2022 से लेकर अब तक हजारों पर्यटक (अंग्रेज भी) मथोली गांव जा चुके हैं.
मथोली गांव ने भी झेला था पलायन का दर्द

मथोली गांव में ज्यादातर लोगों की आय का मुख्य स्रोत पशुपालन और खेतीबाड़ी था. ऐसे में बाकियों की तरह इस गांव ने भी पलायन का दर्द झेला था. कई परिवार शिक्षा और रोजगार की तलाश में देहरादून और बाकी शहरों में बस गए. वहीं अब पर्यटन को गांव से जोड़कर यहां खुशहाली वापस लौट रही है. आज केवल 6 महीने बल्कि साल भर पर्यटकों का तांता लगा रहता है. जहां 3 दिन से लेकर हफ्तेभर तक लोग यहां ठहरना पसंद करते हैं. गांव पहुंचने के लिए ऋषिकेश से गंगोत्री हाईवे पर चिल्यानीसौड़ तक आना पड़ता है.
महिला सशक्तिकरण को मिल रहा है बढ़ावा

प्रकृति की गोद में बसा मथोली गांव में जहां एक तरफ कंडक ट्रैक से लेकर भागीरथी नदी और टिहरी बांध का मनमोहक नजारा हर किसी का ध्यान खींचता है तो वहीं हिमालय में स्वर्गरोहणी और बंदरपूंछ जैसी पर्वतमालाएं मन को उत्साह और उमंग से भर देती हैं. ये गांव महिला सशक्तिकरण का अनोखा संदेश दे रहा हैं जहां महिलाएं आय का सृजन करने के साथ दूसरों को रोजगार भी दे रही हैं. यहां के सभी होमस्टे को पर्यटन विभाग में पंजीकृत कराया गया है, इन्हें ऑनलाइन भी बुक किया जा सकता है.
सरकार दे रही हैं बढ़ावा
सरकार की तरफ से होम स्टे परियोजना को बढ़ावा देने के लिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय होम स्टे योजना चलाई जा रही हैं जिसके तहत मैदानी क्षेत्रों में 25 प्रतिशत और पहड़ी क्षेत्रों में 33 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जा रही है. वर्तमान में पर्यटन विभाग की तरफ से 5331 होम स्टे पंजीकृत हुए हैं. इसमें से ज्यादातर होम स्टे को महिलाएं ही संचालित कर रही है, जिससे पहाड़ों पर पलायन कम हुआ है.
वहीं इससे ग्रामीण पर्यटन को भी पंख लगे हैं. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का मथोली गांव में कहना है कि मथोली गांव महिला सशक्तिकरण का भी उदाहरण है. इससे पूरे राज्य को प्रेरणा लेनी चाहिए.