देवभूमि उत्तराखंड को यूं ही देवताओं की भूमि नहीं कहा जाता. जहां एक तरफ इसके तीर्थस्थलों को देश और दुनियाभर से प्रसिद्धि मिली है तो वहीं यहां की हरियाली और कल-कल बहती जल धाराएं अक्सर सभी का ध्यान खींचती हैं. प्रदेश के प्राकृतिक जल स्रोत देश के एक बड़े वर्ग की प्यास बुझाते आए हैं, मगर अब ये जल स्रोत खुद ही जल संकट का सामना कर रहा हैं. हर साल गर्मियों के मौसम में कई जल धाराए सूख जाती हैं, जिससे आस-पास के ग्रामीणों को जल संकट का सामना करना पड़ता है.
ऐसा कहा जाता है कि जल है तो कल है और यह 100 प्रतिशत सच भी है, बिना जल के आने वाले कल की कल्पना करना भी धोका है. वर्तमान में पहाड़ी राज्य उत्तराखंड भी जल संकट का सामना कर रहा है, जहां इस प्रकार के जल स्रोतों की भरमार है जो सूखने की कगार पर हैं. नीति आयोग के रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार इस बात की पुष्टि होती है कि प्रदेश में पानी की समस्या बढ़ती जा रही है.
उत्तराखंड में सूखा कितनी बड़ी समस्या है?

उत्तराखंड में नौलों धारों की पूजा और उसे संजोने की परंपरा रही है, हालांकि बदलते समय में इसे लेकर उतने उचित प्रयास होने कम हो गए हैं. इसका नतीजा यह है कि यह जल के स्रोत सूखकर कम होते जा रहे हैं. उत्तराखंड में तकरीबन 3096 जलाशय है वहीं इसमें 725 ऐसे हैं जो सूखने की कगार पर हैं. पिछले वर्ष की जल प्रबंधन की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड के 4 हजार गांव जल संकट जैसी समस्या का सामना कर रहे हैं. वहीं आंकड़ों के मुताबिक ऐसे हैं जो इसमें 510 सूखने की कगार पर आ चुके हैं.
आंकडों की मदद से समझें
जल संकट का सबसे ज्यादा असर हल्द्वानी जिले में देखने को मिला है, जहां पर 300 से ज्यादा जगहों पर जल के केंद्र सूख चुके हैं. उत्तराखंड में 12000 से ज्यादा ग्लेशियर हैं जहां से 8 नदियां निकलती है, इससे जहां एक तरफ बड़ी आबादी की प्यास बुझती है तो वहीं सिंचाई जैसी बड़ी आवश्यकता भी पूरी होती है. वहीं पूरे प्रदेशभर में कुल 213 नदियों का एक विशाल नेटवर्क है जोकि उत्तर भारत के विशाल मैदानों को सिंचती हैं. इसमें ज्यादातर ग्लेशियर और वर्षा आधारित नदियां शामिल हैं.
हालांकि कई लोग सोचते हैं कि प्रदेश में गंगा जैसी बड़ी और विशाल नदी बहती है, ऐसे में वहां पानी की क्या समस्या भला? मगर सरकारी आंकड़े इस सोच पर पानी फेरने और चौंकाने वाले हैं, जो यह बताते हैं कि बदलते समय में उत्तराखंड में स्रोतों से जल सूखता जा रहा है और लोगों को परेशानी हो रही है.
इन जिलों में सबसे ज्यादा जल संकट की समस्या
आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड में सबसे ज्यादा वाटर क्राइसिस टिहरी, पिथोरागढ़, चमोली, अल्मोड़ा और बागेश्वर जिले में देखने को मिलता है. इसमें गदेरे, धाराओं और झरने जैसे प्राकृतिक स्रोतों पर सबसे ज्यादा असर पढ़ा है, वहीं नैनीताल सुप्रसिद्ध नैनी झील भी पिछले कई सालों से जल संकट का सामना कर रही है. इसका जलस्तर 2020 में 6 फीट 10 इंच से घटकर 2025 में 4.7 फीट पर आ गया है, जोकि चिंता का विषय है.
नौलों के अस्तित्व पर मंडरा रहा है संकट

बता दें कि नौले विशेषकर कुमाऊं क्षेत्र में पाये जाने वाले एक प्राकृतिक जल का स्रोत होते हैं. ये प्राकृतिक जल धाराओं का एक प्राकृतिक जल के केंद्र है, जहां जल को संरक्षित करके पीने के पानी का प्रयोग किया जाता है. नौले मुख्यरूप से पत्थरों से बने जलकुंड होते हैं जहां पानी रिस-रिसकर आता है. पानी को सुरक्षित और साफ रखने के लिए अच्छे से ढका जाता है. इसके पीछे एक साइंस भी है. दरअसल, ये प्रकृति के गुरत्वाकर्षण के नियमों पर काम करता है, जहां पर किसी भी बिजली या फिर पंपिंग सिस्टम का प्रयोग नहीं किया जाता. कई गांवों में नौलों को इतना पवित्र माना जाता है कि इनकी पूजा भी की जाती है. वर्तमान समय में ये सीमित रह गए हैं, जिस वजह से भी जल संकट जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.
क्या है सारा (SARRA) ?

जल संकट की इस समस्या को ठीक करने के लिए राज्य सराकार की तरफ से ‘सारा’ (Springshed and River Rejuvenation Authority) को 2 अक्टूबर, 2023 को लॉन्च किया गया था. बता दें कि यह एक एकीकृत एजेंसी है जिसका उद्देश्य नदियों, नौले, झरने और वर्षा आधारित प्राकृति स्रोतों को पुनर्जिवित करना है. यह वर्तमान में 13 जिलों में सक्रिय रूप से कार्यरत है. साथ ही सारा का मुख्य उद्देश्य राज्य की नदियों और अन्य प्राकृतिक जल स्रोतों को संरक्षित और पुनर्जिवित करना है. इससे गठन के समय प्रदेश भर में 300 से ज्यादा जलस्रोतों की पहचान की गई थी, जो सूखने की कगार पर हैं.
सार के गठन के प्रमुख उद्देश्य
- राज्य सरकार की तरफ से सारा को गठित करने के लिए कई प्रमुख उद्देश्य थे, इसमें से कुछ इस प्रकार से हैं-
- उत्तराखंड में सूख चुकी या सूखने की कगार पर आ गई नदियों और झरनों की पहचान करना और उन्हें संरक्षित करने के लिए बड़े कदम उठाना है.
- सारा के तरह उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक माने जाने वाले नौले धारों का विकास करना और उन्हें पुनर्जिवित करना है.
- इसका एक बड़ा उद्देश्य वर्षा जल का संरक्षण करना भी है. साल भर में उत्तराखंड में तकरीबन 1,000 मिमी से 2,500 मिमी (मिलीमीटर) बारिश होता है मगर इसका ज्यादातर पानी बेकार ही जाता है. ऐसे में वर्षा के जल को एकत्रित करने से जहां एक तरफ पानी काम आएगा. वहीं प्रदेश के कई गांवो में सूखे की समस्या दूर हो जाएगी.
- सारा का एक प्रमुख उद्देश्य जल संरक्षण के लिए ग्रामीण लोगों को एक साथ लाना है जिससे इस बड़े लक्ष्य में जनभागीदारी भी सुनिश्चित हो सके. इससे राज्य, जिला और ग्रामीण स्तर पर एक समन्वय स्थापित होगा और सभी इस दिशा में मिलकर काम कर सकेंगे.
- सारा का प्रमुख उद्देश्य इससे जुड़ी सभी एजेंसियों को एक अम्ब्रेला के अंदर लाना है ताकि पानी को संरक्षित करने की दिशा में एकजुट होकर साझा प्रयास किए जा सके.
- SARRA के तहत उत्तराखंड में जल स्रोतों की पहचान, भू-हाइड्रोलॉजिकल अध्ययन, और जल संरक्षण संरचनाओं का निर्माण किया जा रहा है। साथ ही, कार्यों की निगरानी के लिए जियो-टैगिंग और डैशबोर्ड का उपयोग किया जा रहा है.
उत्तराखंड में जल स्रोतों के संरक्षण एवं पुनरुद्धार के लिए सारा लगातार काम कर रही है. इसे लेकर हाल में प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर जानकारी दी. जहां उन्होंने बताया कि स्प्रिंग एंड रिवर रिज्युविनेशन अथॉरिटी के तहत अब तक प्रदेशभर में 929 जलस्रोतों का सफलतापूर्वक उपचार किया जा चुका है. ट्रीट व रीचार्ज करके इनके वाटर लेवल को दोबारा सही स्तर पर लाया गया है. इस दौरान सीएम ने बताया कि ये न केवल पर्यावरण संतुलन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है बल्कि जल संकट से निपटने और भविष्य को सुरक्षित करने की दिशा में भी एक दूरगामी परिणाम शामिल होगा.
वर्तमान परिदृष्य में सारा का महत्व
बता दें कि वर्तमान में जहां सूखा और जल संकट जैसी समस्याएं निकल कर सामने आ रही हैं ऐसे में सारा जैसे प्राधिकरणों की जरूरत और भी ज्यादा बढ़ गई है. इससे जहां एक तरफ लोग प्राकृत के बचाव के प्रति और भी जागरूक हो पाएंगे तो वहीं सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी मदद मिलती है. ऐसे प्राधिकरणों के मौजूद होने से विभिन्न सरकारी विभाग एक साथ काम कर पाते हैं. साथ ही साझा प्रयासों से सभी के बीच समन्वय स्थापित कर जल्दी से विकास हो पाता है. आंकड़ों के मुताबिक पिछले वर्ष में SARA ने 3.12 मिलियन क्यूबिक मीटर वर्षा जल को संचित किया और राज्य में 6,500 से अधिक जल स्रोतों का संरक्षण किया है.
जल संरक्षण के लिए एक और कदम भागीरथ एप
जल संरक्षण की दिशा में इस साल जल संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए एक सराहनीय पहल शुरू की. सीएम ने जल संरक्षण अभियान 2025 की शुरूआत की. इस मौके पर एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया गया. जल संरक्षण अधिनियम 2025 के अंतर्गत भागीरथ (Bhagirath APP) मोबाईल ऐप्लिकेसन (29 मार्च 2025) को भी लॉन्च किया गया. बता दें कि यह ऐप “धारा मेरी, नौला मेरा, गाँव मेरा, प्रयास मेरा” थीम पर ही मुख्य रूप से आधारित है, जिसका उद्देश्य जल संरक्षण को बढ़ावा देना है. साथ ही यह ऐप जल स्रोतों की निगरानी और पुनर्जीवन योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन में सहायक है.
भागीरथ ऐप है बड़े काम की, समझें कैसे
बता दें कि इस साल लॉन्च की गई भागीरथ ऐप को लोगों के लिए ही बनाया गया है. साथ ही यह बड़े काम की भी है, आइए समझते हैं कैसे-
- इस ऐप की मदद से आम और ग्रामीण लोग संकटग्रस्त क्षेत्रों की जल धाराओं जैसे नौले, धाराएं और वर्षा नदियों की जानकारी सरकार को दे सकते हैं.
- इस ऐप में फोटो खींचकर शिकायत दर्ज करवा सकते हैं. जिसके बाद सारा की टीम एक्टिव होकर उस क्षेत्र के स्रोत को पुनर्जिवित करने में मदद करेगी.
- इससे तत्काल प्रभाव से रिपोर्ट भेजने और सीधे आम लोगों की परेशानियों से प्रशासन को जोड़ने में मदद मिलती है.
- सारा की टीम ग्राउंड जीरो पर जाकर कई बार संकट ग्रस्त स्रोतों को चिह्नित करने में गलतियां हो जाती हैं ऐसे में लोगों और टीम के बीच समन्वय होने से इस तरह की परेशानियां नहीं होती.
- वर्तमान में SARA, केंद्रीय भूजल बोर्ड के साथ मिलकर खासतौर से मैदानी क्षेत्रों में भूजल पुनर्भरण के कदमों पर काम कर रही है ताकि दीर्घकालिक जल स्थिरता सुनिश्चित और बढ़ाया जा सके.
- उत्तराखंड में नयार, सौंग, उत्तरवाहिनी, शिप्रा और गौड़ी नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए आईआईटी और एनआईएच रुड़की की मदद से परियोजना पर रिपोर्ट तैयार की जा रही है. इन पर बड़े पैमाने पर कार्य किया गया है.
इस ऐप को लॉन्च करने के उद्देश्य
जन भागीदारी: प्रदेश की आम जनता से जोड़कर जल स्रोतों की निगरानी करना और साथ ही उन पर रिपोर्ट तैयार की जा सकेगी.
जल स्रोतों की पहचान: उत्तराखंड में संकटग्रस्त या सूखते हुए जल के स्त्रोतों की पहचान कर उनका उपचार करना और सुनिश्चित भी करना की उन्हें दोबारा जीवन मिल सके.
सरकारी कार्रवाई: प्राप्त जानकारी के आधार पर जल स्रोतों के संरक्षण और पुनर्जीवन के लिए सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन, इससे जहां एक तरफ आपसी समन्वय का काम आसान होगा तो वहीं सूख चुके झरनों और नौलों को नया जीवन मिलने में भी मदद मिलेगी. बता दें कि इस ऐप को Google Play Store से डाउनलोड किया जा सकता है.
जल संरक्षण की दिशा में सरकार की तरफ से किए जा रहे अन्य प्रयास
बरानी कृषि परियोजना – इस परियोजना के तहत 2024 -2030 तक 1,148 करोड़ रुपये की लागत से जल निकास, मृदा क्षरण में कमी, वृक्षारोपण और कार्बन फेंसिंग जैसे कामों को किया जाना है. इसका उद्देश्य खेती किसानी को लाभदायक बनाना और ग्रीन हाउस गौसों के उत्सर्जन को कम करना है. बता दें कि यह विश्व बैंक की वित्त पोषित परियोजना है.
जर संरक्षण सप्ताह – सरकार की तरफ से पूरे उत्तराखंड में 1 जून से लेक 7 जून तक जल उत्सव सप्ताह मनाया गया था. मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने इसकी घोषणा करते हुए कहा था कि ये जल संरक्षण की दिशा में एक जरूरी प्रयास साबित होगा. इसके तहत ग्राम और विकासखंड के स्तर पर रैलियां करके लोगों को वृक्षारोपणा, चालखाल, खन्तियां निर्माण, नदियों पर चौक डैम बनाने को लेकर जागरूक किया गया.
जल जीवन मिशन – राष्ट्रीय स्तर पर चल रही यह परियोजना उत्तराखंड में भी काम कर रही है. इसके तहत प्रदेश में हर ग्रामीण को 55 लीटर गुणवत्ता युक्त पेयजल की आपूर्ति की जा रही है.
नमामि गंगे कार्यक्रम – यह केंद्र सरकार का एक एकीकृत संरक्षण मिशन है, जिसे जून 2014 में केंद्र सरकार द्वारा ‘फ्लैगशिप कार्यक्रम’ के रूप में अनुमोदित किया गया था. गंगा की स्वच्छता का ध्यान और प्रदूषण की रोकथाम के लिए पूरे उत्तराखंड में 12 नए सीवरेज प्लांट का निर्माण किया गया था. वहीं इसके तहत गंगा किनारे 21 स्नानाघाटों और 23 मोक्षधामों का निर्माण गया है.
वर्षा जल संचयन
उत्तराखंड में वर्षा जल को एकत्रित कर उसके संचयन के लिए भी कई संरचनाएं शुरू की गई हैं. कई स्कूलों और शेक्षिक संस्थानों में ऐसी व्यवस्था की जाए ताकि बारिश का पानी खुद एक स्थान पर जाकर इकट्ठा हो जाए.
रेन वाटर हार्वेस्टिंग
उत्तराखंड में जल संचयन के लिए महिलाएं आगे आई हैं. पिछले साल रुद्रप्रयाग के कोट गांव में मिसाल कायम करते हुए 30 महिलाओं ने रेन वाटर हार्वेस्टिंग से मेहनत से एक लाख लीटर वर्षा जल का भंडारण किया था. वर्षा जल के संचयन के लिए महिलाओं ने 200 जल संचयक चाल-खाल भी बनाए थे.
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