हरिद्वार। निर्जला एकादशी के दिन मंगलवार को बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने गंगा स्नान कर पुण्य लाभ अर्जित किया। पुलिस प्रशासन की ओर से सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए। मंगलवार (18 जून) तड़के से आरम्भ हुआ स्नान का सिलसिला दिनभर जारी रहा। इस अवसर पर श्रद्धालुओं ने अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण, पिण्डदान आदि कर्म कर उनके मोक्ष की कामना की। निर्जला एकादशी पर शहर में जगह-जगह छबीलें लगाकर शरबत वितरित किया।
पं. देवेन्द्र शुक्ल शास्त्री के मुताबिक निर्जला एकादशी पर बिना जल ग्रहण किये ही व्रत रखा जाता है। साथ ही गंगा स्नान का महत्व है। ऐसा करने से व्यक्ति को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। निर्जला एकादशी के व्रत से सालभर की 24 एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त होता है। इस पुण्य को पाने के लिये हरिद्वार में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। श्रद्धालुओं ने गंगा में स्नान कर पूजा-अर्चना की और दान आदि कर्म किए। इस अवसर पर लोगों ने सुराई, शरबत, पंखा, फल आदि दान कर सुख-समृद्धि की कामना की। स्नान को ध्यान में रखते हुए जिला प्रशासन द्वारा सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किए थे।
पं. शुक्ल का कहना है कि निर्जला एकादशी जैसे नाम से ही प्रतीत होता है वह एकादशी जिसमें निर्जल रहकर व्रत रखना होता है। यही वह एकादशी है जिसका यह फल बताया गया है कि जो आज के दिन की गंगा आदि पवित्र नदियों में मौन रहकर स्नान करने के पश्चात निर्जल रहकर व्रत करे। व्रत के पूर्व मौसमी फल, जल पात्र और पंखा, चीनी और इस प्रकार की चीज जो अपने पितरों के निमित दान करता है अपने पुरोहित को देता है, उस व्यक्ति को पूरे वर्ष की एकादशी जो 24 होती हैं, हर महीने दो शुक्ल पक्ष की और कृष्ण पक्ष की यह एकमात्र एकादशी करने से 24 एकादशियों का व्रत का प्रभाव मिल जाता है।
इसका पुण्य फल इतना बताया गया है कि भीमसेनी एकादशी नाम भी इसी कारण पड़ा था। वेदव्यास जी की आज्ञा से भीमसेन ने इसी दिन का उपवास करके पूरे वर्ष की एकादशी का फल प्राप्त कर लिया था। जो व्यक्ति एक वर्ष की एकादशी रख लेता है, वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है। किसी भी जीवन में तीन प्रकार के किए गए पापों को तुरंत ही एकादशी के प्रभाव से नष्ट कर लेता है। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसको हम निर्जला एकादशी कहते हैं, इसमें गंगा स्नान करने मात्र से व्यक्ति के पाप नष्ट हो जाते हैं।
हिन्दुस्थान समाचार