डॉ. रमेश शर्मा
Opinion: पेपर लीक स्कैंडल ने देश की आत्मा को भीतर तक झकझोर दिया है. यह नैतिक पतन की पराकाष्ठा है. देश में बहुत बड़ा वर्ग बिकाऊ है. कीमत दो और खरीद लो. फिर वह पेपर हो पद या प्रतिष्ठा. ऐसे स्कैंडल इस ओर भी ध्यान आकर्षित करते हैं कि प्रतिभा, मेरिट, पारदर्शिता, ईमानदारी तो पुस्तकों के विषय तक सिमट कर रह गए हैं लेकिन दूसरी तरफ चिंता इस बात की है कि साधारण और सरल व्यावहारिक दूरदर्शिता का प्रशासनिक व्यवस्था में इतना अकाल कभी देखा नहीं गया है . तरह-तरह के शिक्षा माफिया सक्रिय रहते हैं, नकल माफिया, पेपर लीक और साॅलवर गैंग, स्टाफ की मिलीभगत आदि परंतु ये तब तक सफल नहीं हो सकते जब तक सिस्टम में विद्यमान तत्व सहयोग न करें.
सर्वविदित तथ्य है कि अध्यापक चाहेगा तो केंद्र में नकल होगी और यदि नहीं चाहेगा तो नहीं होगी . तकनीक में अनेक प्रकार के आयाम जुड़ने के कारण एआई जैसी टेक्नोलाजी के आने से चुनौतियां और बढ़ गई हैं तो मूल्यांकन भी जटिल हो गया है . सोशल साइट्स ने जीवन को अभूतपूर्व गति प्रदान की है और एक प्रभावी उपकरण बन चुका है . सूचना का आदान-प्रदान क्षणों में संभव है. सभी तथ्यों की जानकरी होने के बावजूद ऐसी परीक्षाओं को साधारण औपचारिकता के तौर पर कंडक्ट करवाया जाए और माफिया आराम से ऑपरेट करते रहें तो हाहाकार होनी तो स्वाभाविक है.
केवल परीक्षार्थी ही मानसिक तनाव का शिकार हो ऐसा नहीं होता . उसके अभिभावकों सहित अनेक लोगों पर इन हाई प्रोफाइल प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं का प्रत्यक्ष या परोक्ष असर पड़ता है जिनमें कोचिंग संस्थान भी शामिल होते हैं . अपार धन का अनियंत्रित बिजनेस है . समिति गठन की जितनी अहमियत अब दी जा रही है, काश एनटीए गठन के समय यह परिश्रम कर लिया जाता और कंडक्ट को सीबीएसई से पूरी तैयारी के बाद ही वापस लिया जाता तो इस विभीषिका से बचा जा सकता था . निश्चित तौर पर सरकार की कारगुजारी पर धब्बा लगा है और सिस्टम पर विश्वास बहाली उसकी सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए.
शिक्षा जगत से जुड़े लोग जानते हैं कि पेपर सेटिंग से लेकर परिणाम घोषित होने तक किस स्तर के विभिन्न विशेषज्ञ इस दायित्व का निर्वहण और निष्पादन करते हैं . इन के प्रशिक्षण और अनुभव को वरीयता दी जाती है या दी जानी चाहिए. ऐसे सक्षम विशेषज्ञों का यदि पैनल बना हो तो सुविधाजनक रहता है .
वर्तमान स्कैंडल में ऐसा लगता है कि सारी प्रक्रिया के सभी चरणों में लापरवाही जाने अनजाने की गई है . परीक्षा का केंद्र कहां होगा ड्यूटी देने वाले निरीक्षक कौन होंगे, पेपर कहां रखे जाएंगे, परिवहन व्यवस्था क्या होगी , काम करने वाले कैमरे , समय पर पेपर एकत्रित करना और तुरंत बापस करने के लिए सीलबंद करना. ये काम नहीं हुआ तो एजेंसी की आउटसोर्स की सारी प्रणाली में छिद्र हैं फिर एनटीए परीक्षा की जिम्मेवारी क्यों ले रही है अथवा उसे यह जिम्मेवारी क्यों दी गई. आनन-फानन में संवेदनशील राष्ट्रीय परीक्षा का आयोजन हुआ है .
ऐसा पहली बार हुआ हो यह सत्य नहीं है लेकिन यह अंतिम बार हो ऐसी व्यवस्था सुनिश्चित की जाए. यही सरकार का कर्तव्य है और इसके लिए युवा प्रतिभा के साथ न्याय हो जिस से सही आदमी सही स्थान पर पहुंच कर देश सेवा कर सके . इन्हें राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित करने के स्थान पर राज्यों को सीट आवंटन किया जा सकता है और केंद्र अपने कोटे की परीक्षा सीमित दायरे में करवा सकता है . आयोजन करने वाली मशीनरी तो स्थानीय ही होती है प्रतियोगिता चाहे जो भी हो . उत्तर प्रदेश जैसा सख्त कानून तो बनना ही चाहिए लेकिन वही काफी होगा यह समय बतायेगा. सारे सिस्टम की मेजर सर्जरी आवश्यक है .
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं).
हिन्दुस्थान समाचार