समान नागरिक संहिता (UGG) का मुद्दा अक्सर सुर्खियों में छाया रहता है, इसे लागू करने वाला पहला राज्य उत्तराखंड है. वहीं अब यूसीसी को लेकर मध्य प्रदेश सरकार की तरफ से भी सुझाव दिया गया है. न्यायालय की तरफ से कहा गया है कि समान नागरिक संहिता को केवल कागजों तक सीमित नहीं रखना चाहिए बल्कि इसे जमीनी स्तर पर लोगों के बीच लाना भी जरूरी है.
न्यायालय ने कही बड़ी बात
बता दें कि हाल ही में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने भारतीय न्याय संहिता की धारा 498 ए और दहेज निषेध अधिनियम और मु्स्लिम महिला अधिनियम 2019 जैसी धाराओं के तहत दर्ज मुकदमे पर एफआईआर रद्द करने की मांग सुनवाई की है. इस दौरान जस्टिस अनिल वर्मा ने आदेश सुनाते हुए टिप्पणी की है. उन्होंने कहा है कि हमारे समाज में आज भी कई कई अंधविश्वासी, कट्टरपंथी और रूढ़ीवादी प्रथाएं विद्यमान हैं जिन्हें धर्म और आस्था की आड़ में छिपाया जाता है.
क्या है पूरा मामला?
इस दौरान कोर्ट ने यूसीसी जैसे कानूनों को पूरे देश में जमीनी स्तर पर सख्ती से लागू करने की भी बात कही है. बता दें कि कोर्ट में आए इस मामले में मुस्लिम महिला ने अपने पति, सास और ननद पर दहेज के लिए घरेलू हिंसा करने का आरोप लगाया है. पीडिता की तरफ से कहा गया कि ससुराल वाले उससे मारपीट करते हैं और तीन तलाक के तहत तलाक दिया गया है. हालांकि बाद में परिवार वालों ने कोर्ट में चुनौती देते हुए कहा कि तलाक का केस केवल महिला अपने पति पर कर सकती है न की पूरे ससुराल वालों पर . इस तर्क पर कोर्ट की तरफ से स्वीकृति व्यक्त की गई है.