उत्तराखंड के बनभूलपुरा इलाके में रेलवे की भूमि अतिक्रमण मामले में सर्वेच्च न्यायालय में सुनवाई की गई. इसमें रेलवे और राज्यसरकार की तरफ से सरकारी जमीन को खाली करवाने के तर्क दिए गए. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने प्रभावित हुए लोगों के लिए पुनर्वास को लेकर जबाव मांगा है और इसे एक महीने में दाखिल करने के निर्देश दिए हैं.
जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्ज्वल मुयान और जस्टिस दीपांकर दत्ता की तीन सदस्यीय बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए कई तथ्यों को देखा और सरकार को पुनर्वास योजना बनाने के आदेश दिए हैं. बता दें कि यह मामला साल 2023 में केंद्र सरकार ने अंतरिम आदेश के संशोधन में दायर किया था. इसमें के एक बड़े हिस्से में रेलवे ट्रेक और हल्द्वानी रेलवे स्टेशन की सुरक्षा के लिए एक्शन लेने की मांग की गई थी. सुनवाई के दौरान केंद्र की दलीलों को भी दर्ज किया गया.
रेलवे और सरकार ने दिए ये तर्क
बता दें कि सुनवाई के दौरान बताया गया कि गौलानदी से लगातार जमीन का कटाव हो रहा है ऐसे में रेलवे ट्रेक पर खतरा मंडराने लगा है. इसी वजह से रेल विभाग को अतिक्रमण वाली भूमि की जरूरत है. रेलवे की तरफ से 30.04 हेक्टेयर भूमि पर अतिक्रमण होने की बात कही गई है. इस भूमि पर लगभग 50 हजार लोग 4.5 हजार घर बनाकर रह रहे हैं. वहीं रेलवे ने अपने प्वाइंट की स्ट्रॉन्ग करने के लिए कुछ वीडियो और तस्वीरों की भी मदद ली. इस पर कोर्ट की तरफ से कहा गया कि सैंकड़ों परिवार वहां कई सालों से घर बनाकर रह रहे हैं ऐसे में हम उनके प्रति निर्दयी नहीं हो सकते.
कोर्ट का आदेश
कोर्ट की तरफ से कहा गया कि जिन परिवारों के प्रभावित होने की संभावना है उनकी पहचान की जाए और उनके लिए पुनर्वास की नीति बनाई जाए. इसमें सरकार योजना को जल्द से जल्द कोर्ट में प्रस्तुत करेगी. केंद्र और राज्य को मिलकर साथ में नीतिगत फैसलों की जरूरत है. सर्वोच्च न्यायालय ने 11 सिंतबर को मामला सुचिबद्ध करते हुए कहा है कि इसमें सभी बातों और सुझावों का स्वागत है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब तक रेलवे की तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. ऐसे में अगर आप उन्हें बेदखल करना चाहते हैं तो इसके लिए नोटिस जारी करें. साथ ही उत्तराखंड सरकार से कहा कि वो कानूनी रूप से हकदार लोगों का पुनर्वास कर सकती है. उल्लेखनीय है कि इससे पहले सुप्रीम ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए अवैध अतिक्रमण को हटाने पर रोक लगा दी थी.