सुधांशु जोशी
संविधान निर्माता, भारतरत्न डॉ. बाबा साहेब आम्बेडकर ने संविधान लिखकर देश को नई दिशा और राह दिखाई. उस महान व्यक्ति को तत्कालीन कांग्रेस नेतृत्व ने केंद्र में मंत्री का पद तक नहीं मिलने दिया. इसके विपरीत आंबेडकर द्वारा लिखित संविधान में अपनी सुविधा के अनुसार परिवर्तन कर उसका प्रयोग किया. आजादी के बाद के दौर में गवई, प्रकाश आम्बेडकर की तरह आम्बेडकर की विचारधारा के नौ प्रमुख नेता चुनाव जीतकर संसद पहुंचे. हालांकि, उन्हें कभी केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पाई। लेकिन, नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में तीसरी बार बनी सरकार में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामदास अठावले को लगातार तीसरी बार जगह मिली है. अठावले एकमात्र ऐसे नेता हैं जो अपने विचारों और व्यापक नेतृत्व को महाराष्ट्र के साथ-साथ देश के कोने-कोने तक फैला रहे हैं. इसके जरिए देश ही नहीं विदेश में भी सवर्ण-दलित एकता कायम की जा रही है. इसके जरिए रामदास अठावले को राष्ट्रीय स्तर पर सर्वसमावेशी शिव शक्ति-भीम शक्ति का झंडा लेकर चलने वाले अग्रणी नेता के तौर पर देखा जा रहा है.
समस्त बहुजन समाज मोदी का ऋणी
कांग्रेस शासनकाल में देश को भारी नुकसान उठाना पडा. कांग्रेस ने कई वर्षों तक बहुजन समाज का शोषण किया. कांग्रेस ने हमेशा बहुजन समाज का इस्तेमाल सिर्फ अपने लाभ के लिए किया. लेकिन उन्हें कभी सही मायने में आगे नहीं आने दिया गया, उन्हें कभी राजनीति में आगे नहीं बढ़ने दिया गया. कांग्रेस ने कई बार बाबा साहेब का अपमान किया. इसी तरह रामदास अठावले को शिरडी सीट से हटाने के लिए भी पर्दे के पीछे से कई साजिशें रची गईं. लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कांग्रेस का अहंकार खत्म कर रहे हैं. उनके कुशल नेतृत्व में देश में तीसरी बार NDA की सरकार बनी है. राजनीति में विश्वसनीयता और उपयोगिता दो कसौटी हैं. इन दोनों टेस्ट में रामदास अठावले की कप्तानी की परीक्षा हुई. इसलिए रामदास अठावले जैसे बहुजन, गणतांत्रिक विचार के नेता को तीसरी बार मंत्रिमंडल में जगह देकर उनका विधिवत सम्मान किया गया है. अठावले ने हमेशा अपने मंत्री पद का उपयोग समाज के लिए किया. साथ ही अपने पास आने वाले सभी वर्गों के लोगों के साथ न्याय करने का प्रयास किया.
विरोधियों के झूठ को बेनकाब करने में बड़ी भागीदारी
हालिया लोकसभा चुनाव में देश में एनडीए और इंडी गठबंधन के बीच मुकाबला था. वहीं महाराष्ट्र में महायुति और महाविकास अघाड़ी के बीच मुकाबला था. इस राजनीति में बड़े पैमाने पर दलबदल हुआ. सुबह एक नेता के दूसरी पार्टी में होने और शाम को दूसरी पार्टी में होने की चर्चा होती रही. ऐसे समय में कांग्रेस और इंडी की सहयोगी पार्टियों की ओर से भाजपा और मोदी जी के खिलाफ जोरदार अभियान चलाया गया. इसमें कांग्रेस द्वारा भाजपा और मोदी के खिलाफ गलत बातें फैलाई जा रही थीं, जिसमें कहा गया था कि अगर भाजपा और मोदी दोबारा सत्ता में वापस आए तो वे संविधान बदल देंगे, जिससे लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा. लेकिन, ऐसे हालात में भी रामदास अठावले एनडीए, मोदी के साथ बने रहे और देश भर में हुई बैठकों में विपक्ष द्वारा फैलाया भ्रम दूर करने में अहम भूमिका निभाई.
आम्बेडकर के विचारों को पूर्वोत्तर, दक्षिण भारत तक फैलाया
आजादी के बाद के दौर में प्रस्थापित पार्टियां देश के कोने-कोने तक नहीं पहुंच सकीं, वहीं रामदास अठावले के नेतृत्व वाली रिपब्लिकन पार्टी की शाखाएं सिक्किम, दीव-दमन, अंडमान-निकोबार, पांडिचेरी आदि स्थानों में हैं। पिछले 70 वर्षों में आम्बेडकर के विचारों का एक भी नेता पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में भीम शक्ति के विचारों को नहीं पहुंचा सका. नागालैंड जैसे सुदूर राज्य में रिपब्लिकन पार्टी के दो विधायक अपने दम पर चुने गए हैं. स्थानीय भाषा न जानने के बावजूद अठावले ने भीम शक्ति के विचारों को मन में जगाया और अब नागालैंड, मणिपुर आदि राज्यों में कई लोग नीला झंडा लेकर घूम रहे हैं. विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं में इसकी सफलता के कारण ही आरआईपी को चुनाव आयोग द्वारा क्षेत्रीय पार्टी के रूप में मान्यता दी गई है. यह इस बात का संकेत है कि रामदास अठावले के नेतृत्व का प्रभाव राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रहा है.
अन्य नेताओं के बीच व्यापक नेतृत्व का अभाव
बाबा साहेब आम्बेडकर के बेटे यशवंत उर्फ भैया साहेब आम्बेडकर को राजनीति में ज्यादा सफलता नहीं मिल पाई. भारिप नेता प्रकाश आम्बेडकर रिपब्लिकन पार्टी में शामिल हो गए. इसमें विफल होने और इससे हुई बदनामी के चलते उन्होंने वंचित बहुजन अघाड़ी के जरिये बहुजन राजनीति करना शुरू कर दिया. इसी तरह से मायावती का नेतृत्व आया लेकिन वह लंबे अंतराल तक नहीं चल पाया. राम विलास पासवान के निधन के बाद उनके बेटे ने राजनीतिक विरासत सम्भाली. लेकिन, चिराग पासवान की राजनीति अलग है. तो प्रकाश आम्बेडकर, मायावती, पासवान भी राष्ट्रीय मंच पर सीमित दायरा लांघ कर राष्ट्रीय नेता नहीं बन पाये. इन नेताओं की तुलना में रामदास अठावले एक व्यापक नेता बनकर बहुजन समाज को आगे ले जा रहे हैं.
बाबा साहेब के स्मारक के लिए कांग्रेस ने धोखा दिया
कई वर्षों से सभी आम्बेडकर प्रेमी मांग कर रहे हैं कि बाबा साहेब का एक भव्य स्मारक बनाया जाए. इसके लिए लाखों आम्बेडकर प्रेमी मुंबई (महाराष्ट्र) चैत्यभूमि के पास दर्शन करने आते हैं. एक प्रस्ताव सामने आया कि यह स्मारक इंदु मिल क्षेत्र में उसी स्थान पर बनाया जाए. इसके लिए पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भी प्रयास किए गए. लेकिन, कांग्रेस की अगुवाई वाली केंद्र और राज्य सरकारों ने कभी भी इस स्मारक के लिए आवश्यक पहल नहीं की. कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने आम्बेडकर के अनुयायियों को धोखा दिया. लेकिन केंद्र में मोदी जी के सत्ता में आने के बाद उन्होंने इंदु मिल की 12.5 एकड़ जमीन स्मारक के लिए दे दी और अब उस जगह पर स्मारक का काम चल रहा है. इस तरह रामदास अठावले राजनीति से परे दोस्ती को कायम रखने का काम कर रहे हैं. नतीजतन आज दिल्ली में उनके आसपास सभी जाति और धर्म के लोग जुटते हैं. आठवले की छवि अजातशत्रु नेता की बना रही हैं. अपने इसी स्वभाव के कारण उन्हें न केवल महाराष्ट्र में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसे राष्ट्रीय नेता के रूप में जाना जाता है जो जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र के भेदभाव से ऊपर उठकर सबको अपनापन महसूस कराने वाले नेता के तौर पर पहचान बना चुके है.
(आलेख, हेमंत रणपिसे से बातचीत पर आधारित. रणपिसे रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले गुट) के प्रचार प्रमुख हैं.)
हिन्दुस्थान समाचार