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Subhash Chandra Bose Anniversary (Opinion): नेताजी सुभाष चन्द्र बोसः एक पराक्रमी योद्धा

आजादी की जंग में प्रमुख भूमिका निभाने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और महान क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 23 जनवरी को 127 वीं जयंती मनाई जा रही है.

Diksha Gupta by Diksha Gupta
Jan 23, 2025, 11:38 am GMT+0530
Netaji Subhas Chandra Bose

Netaji Subhas Chandra Bose

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Subhash Chandra Bose Anniversary (Opinion): नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा दिया गया `जय हिन्द’ का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया. `तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ का उनका नारा भी उस समय अत्यधिक प्रचलन में आया. आजादी की जंग में प्रमुख भूमिका निभाने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और महान क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 23 जनवरी को 127 वीं जयंती मनाई जा रही है. उनकी जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है. उनका पूरा जीवन ही साहस व पराक्रम का उदाहरण है.

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा में कटक के एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था. बोस के पिता का नाम जानकीनाथ बोस और मां का नाम प्रभावती था. जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वकील थे. प्रभावती और जानकीनाथ बोस की कुल मिलाकर 14 संतानें थी, जिसमें 6 बेटियां और 8 बेटे थे. सुभाष चंद्र उनकी नौवीं संतान और पांचवें बेटे थे. नेताजी ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल में हुई. उसके बाद उनकी शिक्षा कलकत्ता के प्रेजिडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई. उन्होंने इंग्लैंड के केंब्रिज विश्वविद्यालय से सिविल सर्विस की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया था.

1921 में भारत में बढ़ती राजनीतिक गतिविधियों का समाचार पाकर बोस सिविल सर्विस की सरकारी नौकरी छोड़ कर कांग्रेस से जुड़ गए. 1928 में जब साइमन कमीशन भारत आया तब कांग्रेस ने उसे काले झण्डे दिखाये. कोलकाता में नेताजी ने इस आन्दोलन का नेतृत्व किया. साइमन कमीशन को जवाब देने के लिये कांग्रेस ने भारत का भावी संविधान बनाने का काम आठ सदस्यीय आयोग को सौंपा. मोतीलाल नेहरू इस आयोग के अध्यक्ष और सुभाषचंद्र बोस उसके सदस्य थे.

26 जनवरी 1931 को कोलकाता में राष्ट्र ध्वज फहराकर सुभाष विशाल मोर्चे का नेतृत्व कर रहे थे तभी पुलिस ने उनको जेल भेज दिया. जब सुभाष चंद्र बोस जेल में थे तब गांधीजी ने अंग्रेज सरकार से समझौता किया और सब कैदियों को रिहा करवा दिया. लेकिन अंग्रेज सरकार ने सरदार भगत सिंह जैसे क्रान्तिकारियों को रिहा करने से साफ इन्कार कर दिया. भगत सिंह की फांसी माफ कराने के लिये गांधीजी ने सरकार से बात तो की परन्तु नरमी के साथ. सुभाष चाहते थे कि इस विषय पर गांधीजी अंग्रेज सरकार के साथ किया गया समझौता तोड़ दें लेकिन गांधीजी अपना वचन तोड़ने को राजी नहीं थे. अंग्रेज सरकार द्धारा भगत सिंह व उनके साथियों को फांसी दे दी गयी. भगत सिंह को बचा नहीं पाने पर सुभाष बोस, गांधीजी और कांग्रेस से बहुत नाराज हो गये.

1930 में सुभाष के कारावास में रहते हुये ही कोलकाता महापौर का चुनाव जीतने पर सरकार उन्हें रिहा करने पर मजबूर हो गयी. 1932 में सुभाष को फिर से कारावास हुआ. इस बार उन्हें अल्मोड़ा जेल में रखा गया. अल्मोड़ा जेल में उनकी तबीयत फिर से खराब होने पर सुभाष इलाज के लिये यूरोप चले गये. सन् 1933 से लेकर 1936 तक सुभाष यूरोप में रहे. यूरोप में सुभाष इटली के नेता मुसोलिनी से मिले. जिन्होंने उन्हें भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में सहायता करने का वचन दिया.

1938 में गांधीजी ने कांग्रेस के हरिपुरा वार्षिक अधिवेशन में अध्यक्ष पद के लिए सुभाष को चुना तो था मगर उन्हें उनकी कार्यपद्धति पसन्द नहीं आयी. इसी दौरान यूरोप में द्वितीय विश्वयुद्ध के बादल छा गए थे. सुभाष चाहते थे कि इंग्लैंड की इस कठिनाई का लाभ उठाकर भारत का स्वतन्त्रता संग्राम अधिक तीव्र किया जाये. उन्होंने अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में इस ओर कदम उठाना भी शुरू कर दिया था. परन्तु गांधीजी इससे सहमत नहीं थे. 1939 में जब नया कांग्रेस अध्यक्ष चुनने का वक्त आया तब सुभाष चाहते थे कि कोई ऐसा व्यक्ति अध्यक्ष बनाया जाये जो इस मामले में किसी दबाव के आगे बिल्कुल न झुके. ऐसा किसी दूसरे व्यक्ति के सामने न आने पर सुभाष ने स्वयं कांग्रेस अध्यक्ष बने रहना चाहा. लेकिन गांधीजी उन्हें अध्यक्ष पद से हटाना चाहते थे. गांधीजी ने अध्यक्ष पद के लिये पट्टाभि सीतारमैया को चुना. बहुत बरसों बाद कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष पद के लिये चुनाव हुआ.

चुनाव में नेताजी सुभाष को 1580 मत व सीतारमैय्या को 1377 मत मिले. गांधीजी के विरोध के बावजूद सुभाष बाबू 203 मतों से चुनाव जीत गये. गांधीजी ने पट्टाभि सीतारमैय्या की हार को अपनी हार बताया. इसके बाद कांग्रेस कार्यकारिणी के 14 में से 12 सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया. 3 मई 1939 को सुभाष ने फॉरवर्ड ब्लॉक के नाम से अपनी पार्टी की स्थापना की. सुभाष चंद्र बोस ने 1937 में अपनी सेक्रेटरी और ऑस्ट्रियन युवती एमिली से शादी की. उन दोनों की अनीता नाम की एक बेटी भी हुई.

जर्मनी जाकर नेताजी हिटलर से मिले. 1943 में उन्होंने जर्मनी छोड़ दिया. वहां से वह जापान पहुंचे. जापान से वह सिंगापुर पहुंचे. जहां उन्होंने कैप्टन मोहन सिंह द्वारा स्थापित आजाद हिंद फौज की कमान अपने हाथों में ले ली. उस वक्त रास बिहारी बोस आजाद हिंद फौज के नेता थे. उन्होंने आजाद हिंद फौज का पुनर्गठन किया. महिलाओं के लिए रानी झांसी रेजिमेंट का भी गठन किया लक्ष्मी सहगल जिसकी कैप्टन बनीं.

नेताजी के नाम से प्रसिद्ध सुभाष चन्द्र ने सशक्त क्रान्ति द्वारा भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से 21 अक्टूबर 1943 को आजाद हिन्द सरकार की स्थापना की जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दी. आजाद हिन्द फौज के प्रतीक चिह्न पर एक झंडे पर दहाड़ते हुए बाघ का चित्र बना होता था. नेताजी अपनी आजाद हिंद फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा पहुँचे. यहीं पर उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा दिया- तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा. खून भी एक-दो बूँद नहीं इतना कि खून का एक महासागर तैयार हो जाये और उसमें मैं ब्रिटिश साम्राज्य को डूबो सकूं. 1944 को आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों पर दोबारा आक्रमण किया और कुछ भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त भी करा लिया.

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान आजाद हिन्द फौज ने जापानी सेना के सहयोग से भारत पर आक्रमण किया. अपनी फौज को प्रेरित करने के लिये नेताजी ने दिल्ली चलो का नारा दिया. दोनों फौजों ने अंग्रेजों से अंदमान और निकोबार द्वीप जीत लिये. यह द्वीप आजाद-हिन्द सरकार के नियंत्रण में रहे. नेताजी ने इन द्वीपों को शहीद द्वीप और स्वराज द्वीप का नया नाम दिया. दोनों फौजों ने मिलकर इम्फाल और कोहिमा पर आक्रमण किया. लेकिन बाद में अंग्रेजों का पलड़ा भारी पड़ा और दोनों फौजों को पीछे हटना पड़ा.

6 जुलाई 1944 को आजाद हिन्द रेडियो पर अपने भाषण के माध्यम से नेताजी ने गांधीजी को पहली बार राष्ट्रपिता बुलाकर अपनी जंग के लिये उनका आशीर्वाद भी मांगा. आजाद हिन्द फौज के माध्यम से भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करने का नेताजी का प्रयास प्रत्यक्ष रूप में सफल नहीं हो सका. किन्तु उसका दूरगामी परिणाम हुआ. सन् 1946 का नौसेना विद्रोह इसका उदाहरण है. नौसेना विद्रोह के बाद ही ब्रिटेन को विश्वास हो गया कि अब भारत में सेना के बल पर शासन नहीं किया जा सकता और भारत को स्वतन्त्र करने के अलावा उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा.

विश्व इतिहास में आजाद हिंद फौज जैसा कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता. जहां 30-35 हजार युद्ध बंदियों को संगठित, प्रशिक्षित कर अंग्रेजों को पराजित किया. पूर्व एशिया और जापान पहुंच कर उन्होंने आजाद हिन्द फौज का विस्तार करना शुरू किया. रंगून के जुबली हॉल में सुभाष चंद्र बोस द्वारा दिया गया भाषण सदैव के लिए इतिहास के पत्रों में अंकित हो गया. 18 अगस्त 1945 को नेताजी की मृत्यु के संबध में विवाद अबतक अनसुलझा है.

रमेश सर्राफ धमोरा

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं.)

हिन्दुस्थान समाचार

Tags: Birth AnniversaryFreedom FighterSubhash Chandra Bose
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