Uttarakhand Tourism: उत्तराखंड में इन दिनों होमस्टे कल्चर काफी फल फूल रहा है. जहां एक तरफ यह टूरिज्म को नए पंख लगा रहा है तो वहीं इससे देवभूमि पहुंचने वाले सैलानियों को भी पहाड़ी संस्कृति को जानने समझने का मौका मिल रहा है. वहीं पहाड़ी खाना भी लोगों को काफी पसंद आ रहा है. इसी क्रम में आज आपको मोतीबाग रैबासा होमस्टे के बारे में बताने जा रहे हैं जहां गांव को पर्यटन से जोड़कर जिंदगी को और भी कई ज्यादा खुशहाल बनाया जा रहा है.

मोतीबाग रैबासा होमस्टे उत्तराखंड के पौड़ी विकासखंड के काल्जीखाल के अंतर्गत साकुंडा ग्राम में आता है. यह यहां के प्रगतिशील किसान विद्यादत्त शर्मा के अथक प्रयासों के चलते ये होमस्टे बन पाया. यह अब पूरे प्रदेश का ध्यान खींच रहा है जहां ठेठ पहाड़ी अंदाज पेश किया जा रहा है. यह वहां आने वाले सैलानियों को खासतौर पर काफी पसंद आ रहा है. मोतीबाग रैबासा इस क्षेत्र का पहला होमस्टे है जो पूरे गांव के लिए प्रेरणा बन गया है.
विद्यादत्त शर्मा के प्रयासों से बना रैबासा होम स्टे

मौतीबाग रैबासा होमस्टे का पूरा श्रेय 85 वर्षीय बुजुर्ग किसा विद्यादत्त शर्मा को जाता हैं, वो अभी भी खुद को नौजवान बताते हैं और पिछले 55 साल से खेती-किसानी कर रहे हैं. बता दें कि पहाड़ों पर रहने वाले विद्यादत्त शर्मा की जिंदगी किसी नायक से कम नहीं, जिन्होंने साल 1965 में सरकारी नौकरी (भूलेख अधिकारी) को छोड़कर स्वावलंबन की अनूठी मिसाल पेश की है. यह बोल्ड कदम उन्होंने तब उठाया था जब बड़ी संख्या में लोग पहाड़ों से पलायन करके शहरों की तरफ जा रहे थे. उनके जिंदगी पर बनी डॉक्यूमेंट्री मोती बाग ऑस्कर के लिए नॉमिनेट हो चुकी है. इसके बाद से ही यह जगह टूरिस्ट डेस्टिनेशन बन गई जहां लोग विद्यादत्त शर्मा के बारे में सुनकर आने लगे. उनके द्वारा बनाया गया ये होम स्टे अपनेआप में ही एक अनूठी मिसाल है.
होम स्टे की विशेषता

पौड़ी जनपद में पड़ने वाला मोतीबाग रैबासा होम स्टे के आसपास का नजारा देखते ही बनता है. इसके आस पास की हरियाली और छोटे-बड़े पहाड़ एक अलग ही दुनिया में होने का एहसास देते हैं. यहां का ठेठ पहाड़ी कल्चर और गांव की मिट्टी की सौंधी खुशबू इस स्थान को बाकियों से अलग बनाती है. इस होम स्टे की छत को बनाने में पठाल का प्रयोग किया गया है वहीं गोबर की लिपाई-पुताई की गई है. चारधाम यात्रा से प्रेरणा लेते हुए यहाँ की दो खोलियों का नाम केदार खोली और बद्री खोली रखा गया है. पूरी जगह पर पत्थर से चिनाई की गई है जोकि देखने में काफी अनोखी लगती है. भले ही आप पहाड़ों से हो या नहीं मगर मोतीबाग रैबासा में आकर घर जैसा एहसास होगा.
वीरान हो चुके गांव फिर बन रहे हैं खुशहाल
पहाड़ों पर हमेशा से पलायन की समस्या प्रमुखता से उभर कर सामने आई है. संसाधनों का अभाव और बेरोजगारी होने से लोग बड़ी संख्या में शहरों की तरफ पलायन करते हैं. मगर अब उत्तराखंड के गांवो में किए जा रहे ये नए प्रयोग रंग ला रहे हैं जिससे न केवल आय का सृजन हो रहा है बल्कि पहाड़ी संस्कृति और रीति रिवाजों से बाकी लोग भी रूबरू हो रहे हैं. होम स्टे के इन अनगिनत प्रयासों से वीरान हो चुके गांव एक बार फिर बस और खुशहाल बन रहे हैं.
पर्यटकों को भा रहा है पहाड़ी खाना
रैबासा होम स्टे में परोसा जा रहा पहाड़ी खाना वहां आने वाले सैलानियों को काफी पसंद आ रहा है. पहाड़ी टच के साथ कई पारंपरिक पहाड़ी डिशों को रीक्रिएट किया जा रहा है साथ ही आर्गेनिक पहाड़ी मसाले भी लोगों को उंगलियां चाटने पर मजबूर कर रह हैं. इन स्वादों को तलाशते हुए लोग दूर-दूर से केवल घूमने के लिए इन जगहों का रुख करते हैं, वहीं होम स्टे में पर्यटकों को प्रकृति के बीच शांति के साथ घर जैसा सुकून भी मिलता है.
सरकार भी कर रही है सहयोग
मोतीबाग रैबासा से प्रेरणा लेकर आस-पास के गांवों में भी कई और होम स्टे भी विकसित किए जा रहे हैं. इनके लिए अब सरकार भी सपोर्ट कर रही है, सरकार की तरफ से होम स्टे परियोजना को बढ़ावा देने के लिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय होम स्टे योजना चलाई जा रही हैं जिसके तहत मैदानी क्षेत्रों में 25 प्रतिशत और पहड़ी क्षेत्रों में 33 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जा रही है. अब तक पर्यटन विभाग की तरफ से 5331 होम स्टे पंजीकृत हुए हैं.
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