वक्फ कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. इस्लामवादियों ने देश के उच्चतम न्यायालय को 70 याचिकाओं के माध्यम से बताना चाहा है कि केंद्र की मोदी सरकार जो वक्फ कानून में संशोधन लेकर आई है वह गैर संवैधानिक है. इसमें ‘वक्फ बाय यूजर’ पर होने वाली जिरह बहुत महत्व रखती है. न्यायालय का केंद्र सरकार से तर्क है कि ‘वक्फ बाय यूजर’ के जरिए तो हजारों साल से चली आ रही इस्लामिक संपत्तियों का दर्जा खत्म हो सकता है, जिसके बाद सरकार ने विस्तार से इसका जवाब देने के लिए कोर्ट से एक सप्ताह का समय मांगा.
देखा जाए तो न्यायालय में चल रही ‘वक्फ बाय यूजर’ की बहस ने आज भारत में शत्रु संपत्तियों की भी याद दिला दी है. वर्तमान में जो दो समानताएं ‘वक्फ बाय यूजर’ और शत्रु संपत्ति में दिखाई देती हैं, एक- यह कि अधिकांश सभी संपत्तियां विशुद्ध रूप से सरकारी हैं और जिन संपत्तियों को निजी बताया जा रहा है, उनमें अधिकांश के पास उसके कोई भी वैध दस्तावेज नहीं है. ऐसे में यदि किसी का हक इन पर हो सकता है तो वह सरकार है. हालांकि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ जो इस मामले की सुनवाई कर रही है कि इस मामले को लेकर कुछ चिंताएं हैं, जिनसे उन्होंने केंद्र सरकार को अवगत कराया है.
सरकार ने बताया है कि प्रबंधन और धार्मिक मामले अलग-अलग हैं. संपत्ति के प्रबंधन और धार्मिक मामलों से जुड़े मामलों के बीच फर्क करना होगा. संपत्ति का प्रबंधन ऐसा काम है जिसका धर्म या संप्रदाय से कोई ताल्लुक नहीं है. बोर्ड और वक्फ परिषद यह काम कर रहे हैं.’
अब कोई कह सकता है कि वक्फ बोर्ड भी तो मुसलमानों का मजहबी मामले में स्थापित एक निकाय है. हिन्दुओं या अन्य किसी गैर मुसलमान के धार्मिक ट्रस्ट की तरह. पर देखा जाए तो ऐसा बिल्कुल नहीं है. वक्फ की अवधारणा के अनुसार वक्फ की गई संपत्ति का उपयोग सिर्फ परोपकार के काम में हो सकता है लेकिन आज व्यवहार में ज्यादातर वक्फ संपत्तियों का उपयोग व्यवसायिक होना पाया गया है. जिसके चलते यह बात स्पष्ट होती है कि वक्फ बोर्ड आज इस्लाम के नाम पर संपत्ति अर्जित करने का माध्यम है, जो जब चाहे तब किसी भी संपत्ति पर अपना दावा ठोक देता है. इसलिए यह वक्फ बोर्ड विवादों में आया, जिसके चलते केंद्र सरकार को इसमें संशोधन करने की आवश्यकता पड़ी.
कुल मिलाकर यह सिर्फ महजबी मामला नहीं क्योंकि वक्फ बोर्ड नियम के अनुसार ऐसा नहीं है कि आने वाले समय में वक्फ बोर्ड किसी संपत्ति पर अपना दावा करना छोड़ देगा. हां, अब इसमें इतना जरूर होगा कि यदि वह पूर्व की भांति किसी भी संपत्ति पर अपना दावा करता है तो उस संपत्ति को उसे नए नियमों के अनुसार कागजों पर स्थापित करना होगा. पाकिस्तान जाने वाले भारत छोड़ते वक्त जो संपत्तियां वक्फ कर गए, उन सभी संपत्तियों पर वर्तमान में वक्फ बोर्ड का अधिकार है.
इसी तरह से ज्यादातर इस्लामिक बादशाहों की बनवाई इमारतों पर वक्फ अपना अधिकार जताता है, लेकिन ये दोनों ही प्रकार की संपत्तियां पूरी तरह से सरकारी हैं. क्योंकि बादशाहों के समय जो इमारतें देश में बनी, उनके शासन के हटते ही समय-समय पर अन्य तत्कालीन शासकों के अधीन वे रहती आई हैं. पुर्तगाली, डच, फ्रांसिसी, अंग्रेज आए, स्वतंत्र राजा-महाराजाओं की सत्ता भी रहीं, फिर उसके बाद शासन भारत सरकार का आया, नए सिरे से संविधानिक प्रावधान 1950 से लागू हुए.
ऐसे में समय के साथ स्वभाविक तौर पर जमीन का मालिकाना हक बदलता रहा. आज यह सभी भूमि-भवन सरकार की मिल्कीयत हैं, पर वर्तमान में अनेकों पर वक्फ बोर्ड का कब्जा है और वह उनसे धन कमा रहा है. इनमें आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) की 256 संरक्षित इमारतें भी शामिल हैं. इतना ही नहीं ईसाई एवं अन्य धर्म, संप्रदाय की भूमि एवं भवन पर भी इसने कई राज्यों में दावा कर रखा है. आज विवाद का कारण यही है, जैसा कि संसद में पेश हुई संयुक्त संसदीय कमेटी (JPC) की रिपोर्ट में बताया गया, वक्फ बोर्ड ने पूरे देश में 58,000 से ज्यादा संपत्तियों पर कब्जा कर रखा है.
इतिहास से कैसे ये वक्फ बोर्ड खिलवाड़ कर रहा है, इसको आप दिल्ली की कुतुब मीनार क्षेत्र, सुंदरवाला महल, बाराखंभा, पुराना किला, लाल बंगला, कर्नाटक का बीदर किला, कलबुर्गी स्थित गुलबर्ग किले को अपना बताए जाने की मानसिकता से समझ सकते हैं. वहीं, इसने कई प्राचीन जामा मस्जिदें, सूफी-संतों की दरगाहें और गुंबदों पर भी दावा कर रखा है. रेलवे की 2704 वर्ग मीटर जमीन पर वक्फ बोर्ड ने कब्जा कर लिया है. जयपुर रेलवे स्टेशन की 45.9 वर्ग मीटर और जोधपुर रेलवे स्टेशन की 131.67 वर्ग मीटर जमीन को भी वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया गया है. वर्तमान में वक्फ बोर्ड की जमीन 9.4 लाख एकड़ जमीन में फैली है. बड़ी बात यह है कि धर्म के आधार पर इस्लामवादियों ने अपने लिए अलग देश लेकर भी भारत में अपने पास दुनिया की सबसे बड़ी वक्फ होल्डिंग रखी हुई है.
वस्तुत: ऐसे में यहां साफ समझ आता है कि गैर मुसलमान को वक्फ बोर्ड में सदस्य के रूप में रखने के पीछे सरकार की मंशा क्या रही होगी. संभवत: यही कि जिस तरह से अभी तक वक्फ बोर्ड मनमानी करते हुए किसी भी संपत्ति पर अपना दावा ठोकता रहा है और वक्फ कानून का हवाला देकर जिला कलेक्टर के माध्यम से इन संपत्तियों को कब्जाता रहा है, वह अब ऐसा नहीं कर पाए क्योंकि यदि निगरानी के स्तर पर बोर्ड में गैर मुसलमान रहेंगे तो बातें बाहर निकल कर आसानी से आएंगी. साथ ही मजहब के नाम पर मनमानी बंद होगी. वास्तव में उसे रोकने के लिए ही सरकार ने ये नई व्यवस्था का निर्माण किया होगा.
इस केस में एक चिंता न्यायालय की वक्फ बाय यूजर की भी देखने में आई है. देखा जाए तो इसका मतलब उस संपत्ति से होता है, जिसके कोई औपचारिक दस्तावेज नहीं है, लेकिन इन संपत्तियों का इस्तेमाल लंबे समय से मजहबी कार्यों के लिए किया जा रहा है. सरल शब्दों में कहें तो ‘वक्फ बाय यूजर’ का अर्थ है ‘मौखिक घोषणाएँ. भूमि के टुकड़े या संपत्तियाँ जिन्हें धार्मिक उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जा रहा है, उन्हें वक्फ संपत्ति के रूप में घोषित किया जा सकता है.
इसके लिए किसी दस्तावेज, किसी विलेख या किसी कागजी कार्यवाही की आवश्यकता नहीं. ‘धारणा’ वाला हिस्सा व्यक्तिपरक होने के साथ-साथ अपनी व्याख्या में भी अस्पष्ट था, जिससे भूमि विवादों को देशभर में बढ़ाने का काम किया है. क्योंकि इसमें कहीं भी भूमि कब्जाओ और उसे वक्फ बोर्ड की घोषित कर दो अथवा जहां मर्जी आए उस पर वक्फ बोर्ड से दावा ठोक दो!
वक्फ एसेट्स मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया के आंकड़ों को देखें तो देश में 4.02 लाख संपत्तियां वक्फ बाय यूजर के रूप में चिन्हित की गई हैं. क्षेत्रफल के लिहाज़ से ‘वक्फ बाय यूजर’ संपत्तियों में कुल 37 लाख एकड़ में से 22 लाख एकड़ से ज़्यादा ज़मीन शामिल है. मतलब मौखिक घोषणाओं के आधार पर ही अब तक ज़्यादातर बिना कागज़ात या डीड के ही इन संपत्तियों पर वक्फ बोर्ड ने अपना अधिकार कर रखा है. अब नए कानून के तहत किसी संपत्ति को केवल इस आधार पर वक्फ का घोषित नहीं किया जा सकता है कि वहां पर लंबे समय से धर्म के काम हो रहे हैं.
अब किसी भी तरह का नए वक्फ घोषित करने के लिए उससे जुड़े कानूनी कागज दिखाने जरूरी होंगे. एक तरह से देखें तो नए कानून के तहत ‘वक्फ बाय यूजर’ को खत्म कर दिया गया है. न्यायालय के सामने अब इस्लामवादियों की चिंता यह है कि लम्बे समय से मौखिक तौर पर उपयोग करते आ रहे इस भूमि-भवन के बारे में दस्तावेज कहां से लाए जा सकते हैं, तब इसका उत्तर सीधा है कि यदि राममंदिर, कृष्ण जन्मभूमि, काशी विश्वनाथ, ज्ञानवापी मामले में प्राचीनतम दस्तावेज मांगे जा सकते हैं, तब वक्फ बोर्ड को भी संपत्ति के दस्तावेज दिखाने होंगे अन्यथा वह सभी सरकार की संपत्ति होगी, जिसके कोई दस्तावेज नहीं.
दूसरी ओर अब केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन एक्ट को लेकर जो जवाब प्रस्तुत किया है, उसमें भी न्यायालय को साफ बता दिया है कि सरकारी भूमि को जानबूझ कर या गलत तरीके से वक्फ संपत्ति के रूप में चिन्हित करना किसी धार्मिक समुदाय की भूमि नहीं माना जा सकता. फिलहाल नेहरू सरकार के 1954 के वक्फ अधिनियम, 1984 में संशोधनों के बाद भी इसमें व्याप्त अराजकता का होना और इसके बाद 1995 के अधिनियम के पश्चात 2013 में कांग्रेस सरकार ने इसके माध्यम से जिस तरह से मुस्लिम तुष्टीकरण की राह पकड़ी थी, वास्तव में इस सबसे मुक्ति दिलाता यह वक्फ संशोधन अधिनियम (2025), एक कानून के रूप में आज न्यायालय के पास पहुंचा है.
डॉ. मयंक चतुर्वेदी
हिन्दुस्थान समाचार