उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में गिरिराज हिमालय की ऊंचाइयों के बीच स्थित है केदारनाथ धाम. भगवान शिव को समर्पित ये मंदिर विश्व प्रसिद्ध 12 ज्योतिर्लिंग और पंचकेदारों में से एक है. वहीं चारधामों में भी इस प्रमुख धाम की गिनती की जाती है. यहां के संपूर्ण क्षेत्र को केदारक्षेत्र नाम से जाना जाता है, जहां देश-विदेश से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते है. केदारेश्वर मंदिर काफी प्राचीन है और इसके साथ कई ऐसी मान्यताएं भी है, जो सभी को आश्चर्य में डालती हैं. आज केदारनाथ धाम से जुड़ी ऐसी ही 10 रहस्यमयी बातों के बारे में बताने जा रहे हैं-
पांडवों से जुड़ा है मंदिर का इतिहास

केदारनाथ मंदिर का इतिहास पांडवों से भी जोड़ा जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कि जब कुरुक्षेत्र युद्ध जीतने के बाद भाइयों की हत्या के दोष से ग्रसित होकर पांडव जब मुक्ति की खोज में दरबदर भटक रहे थे तब उनका एकमात्र लक्ष्य भगवान शिव की खोज थी. जब सभी पांडव केदार क्षेत्र में पहुंचे तो उन्हें घास चरता हुआ एक बैल नजर आया. जल्द ही भीम को यह एहसास हो गया कि यह बैल भगवान भोलेनाथ ही हैं. इसके बाद जब भीम ने उनको पकड़ने की सोची तो बैल तुरंत जमीन में अंदर की तरफ समाने लगे. इस बीच वो केवल कूबड़ ही पकड़ सके, जो भाग बाद में वहीं रह गया. ऐसा माना जाता है कि शिव जी की ये आकृति स्वयंभू है, जोकि धरती पर यूं ही विराजमान है.
400 सालों तक बर्फ में दबा रहा मंदिर
केदारनाथ मंदिर का इतिहास काफी पुराना और जटिल है. कहा जाता है कि इस मंदिर को सबसे पहले पांडवों ने बनवाया था, जो कि बाद में समय और प्रकृति की मार के चलते विलुप्त हो गया. इसके बाद 8वीं सदी में आदिशंकराचार्य ने एक नए मंदिर को निर्मित किया. जो कालांतर में केदारनाथ धाम से पूजा गया. मंदिर प्रांगण में शंकराचार्य की समाधि भी बनी हुई है. कहा जाता है कि इसके बाद 400 सालों तक ये मंदिर बर्फ के अंदर ही दबा रहा. मगर इसका कोई भी असर मंदिर की बनावट पर नहीं पड़ा और ये यूं ही डटा रहा.
6 महीने तक जलती रहती है दीपक की लौ

केदारनाथ मंदिर केवल 6 महीने ही श्रद्धालुओं के खुलता है. दीवाली के बाद सर्दियों के आगमन के समय मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं. इस दौरान पुरोहित पूजा-पाठ करके दीप प्रज्वलित करते हैं. आश्चर्य की बात ये है कि आने वाले 6 महीनों तक मंदिर के आस-पास कोई नहीं रहता और जाता. उस दौरान पूरा इलाका बर्फ से ढक जाता है और भगवान की विग्रह डोली को ऊखीमठ ले जाया जाता है. आश्चर्य की बात है कि इस पूरी अवधि में ये लौ यूं ही जलती रहती है. इसके दर्शन श्रद्धालु कपाट खुलने के समय करते हैं.
विस्मय में डालती है मंदिर की आकृति

केदारनाथ धाम मंदिर की बनावट अक्सर सभी को विस्मय में डालती है. मंदिर का निर्माण कटवां पत्थरों और विशाल शिलाखंडों से हुआ है. इसका 6 फीट ऊंचा चबूतरा है, मंदिर की दीवारें 187 फुट लंबी और 80 फुट चौड़ी और 12 फुट मोटी हैं. केदारनाथ के निर्माण में इंटरलॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया है, जोकि आज भी काफी मजबूत है. इतने ऊंचे पत्थरों को कैसे ऊपर तक चढ़ाया गया होगा? वहीं इतना सुंदर तराशकर मंदिर की शकल दी गई होगी? खंबों पर छत को कैसे खड़ा किया गया होगा? आज भी इस सवालों के जबाव दुनिया के किसी भी इंजीनियर के पास नहीं है.
कब लुप्त हो जाएगा केदारनाथ मंदिर ?
विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ मंदिर नर और नारायण नामक दो पर्वतों के बीच में स्थित है. इस मंदिर को लेकर ऐसा कहा जाता है कि इसी स्थान पर भगवान विष्णु के स्वरूप नर-नारायण ने यहीं बैठकर तपस्या करके महादेव को प्रसन्न किया था. जिनकी पूजा से प्रसन्न होकर शिव ने यही विराजने का निर्णय लिया. दोनों पर्वत उसी के प्रतीक हैं, जिन्हें लेकर ऐसा माना जाता है कि जिस एक दिन नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे तो बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम विलुप्त हो जाएंगे. इसके बाद भक्त इन दिव्य धामों के दर्शन नहीं कर पाएंगे. भविष्य में भविष्य बद्री नाम से नए तीर्थ का निर्माण होगा.
केदारनाथ और ये मंदिर मिलकर बनाते हैं पूर्ण शिवलिंग

केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में स्थित है, वहीं पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल में स्थित है. ऐसा कहा जाता है कि ये दोनों मंदिर मिलकर एक पूर्ण ज्योतिर्लिंग बनाते हैं. बता दें कि पशुपतिनाथ मंदिर भी स्वयं भू और अति प्राचीन है, जिसका निर्माण जन्मेजय और जीर्णोद्धार विश्व गुरु आदिशंकराचार्य ने करवाया था.
केदारनाथ के यात्रा पड़ाव: गर्म पानी का गौरी कुंड
केदारनाथ मंदिर की यात्रा गौरी कुंड से शुरू होती है, जहां गर्म पानी का कुंड निरंतर बहता रहता है. यहीं से स्नान आदि करके श्रद्धालु आगे की यात्रा शुरू करते हैं. इसे लेकर मान्यता है कि इसी स्थान पर गौरी माता ने भगवान शिव को पाने के लिए तपस्या की थी. उनके तप से यहां गर्म पानी की धारा उत्पन्न हुई थी. उन्हीं के नाम पर इस कुंड का नाम रखा गया था, जोकि अभी तक यूं ही विराजमान है.
देवता भी करते हैं बाबा केदार की पूजा
यूं तो केदारनाथ मंदिर को लेकर तमाम तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं. इनमें से एक के अनुसार सर्दियों में मंदिर के कपाट बंद होने के बाद भी यहां से घंटी और शंख बजने की आवाज सुनाई देती है. ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर 6 महीने मनुष्य और बाकी 6 महीने देवताओं के लिए खुलता है. देवता अपने आराध्य की पूजा के लिए आते हैं.
भीम शिला ने रोकी थी त्रासदी

16 जून 2013 में केदारनाथ धाम में भयानक त्रासदी आई थी. इस पूरे क्षेत्र में प्रकृति अपना कहर बरसा रही थी. इस जल प्रलय में 10 हजार से ज्यादा लोगों की जिंदगियां प्रभावित हुई थीं, केदारनाथ मंदिर के पास के घर होटल, दुकानें ताश के पत्तों की तरह ढेर हो गई थीं. उस वक्त मंदिर को जरा भी नुकसान नहीं हुआ था.
दरअसल, उस वक्त एक पहाड़ जैसी विशालकायी चट्टान मंदिर के पीछे से आई और ठीक पीछे वहीं आकर ठहर गई. इससे जो पानी तेज बहाव में आ रहा था वो दो भागों में बट गया और केदारनाथ को छोड़कर उसके बराबर से बहने लगा. ये चट्टान अभी भी मंदिर के पीछे मौजूद है जिसे भीम शिला कहा जाता है. आज भी इस बात को लेकर रहस्य बना हुआ है कि ये चट्टान कहां से आई और वहीं आकर क्यों रुक गई.
केदारनाथ मंदिर में ऐसे होते हैं दर्शन
बता दें कि केदारनाथ मंदिर में कोई बिजली का स्रोत नहीं है, वहां दीपकों की रौशनी में बाबा केदार के दर्शन किए जाते हैं. आज भी शिव का पूजन वहां चली आ रही प्राचीन पद्धति से होता है, जहां देश और दुनिया से श्रद्धालु उनके दर्शन के लिए देवभूमि पधारते हैं.
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