भारत के साथ युद्ध के लिए पागलपन की हद तक जाने वाला पाकिस्तान आखिर किस तरह आईएमएफ से 1.3 बिलियन डॉलर का ताजा कर्ज (लोन) पाने में सफल रहा? भारत भी आईएमएफ का एक पार्टनर देश है और उसका अपना वोटिंग शेयर है. भारत ने 9 मई को हुई आईएमएफ बोर्ड की बैठक में पाकिस्तान के वहशी होने का मुद्दा भी उठाया, लेकिन अंत में वोटिंग से अपने को अलग कर लिया. इसका कारण एक ही है कि अमेरिका समेत तमाम बड़े देश यह आभास दे रहे थे कि पाकिस्तान को आईएमएफ लोन नहीं दिया गया तो वहां और स्थिति खराब हो सकती है.
पाकिस्तान में और अफरातफरी मच सकती है. भारत के वोट का भार तीन प्रतिशत से कम है, जो कि फैसले को प्रभावित करने के लिए काफी कम है. आईएमएफ लोन प्राप्त करने के लिए किसी भी देश को कुल वोट का 85 प्रतिशत प्राप्त करना जरूरी होता है और इसमें अमेरिका के वोट का सबसे अधिक प्रभाव होता है.
पाकिस्तान को लोन देने के पीछे के संभावित कारण
अमेरिका के वोट का भार 17 प्रतिशत है. यानी केवल अमेरिका ही किसी देश के लोन को अकेले रोक सकता है. अब जबकि सभी बड़े देश जानते हैं कि पाकिस्तान पूरी दुनिया में आतंकवाद का एक्सपोर्ट कर रहा है, फिर क्यों उसे आईएमएफ का लोन दिया जा रहा है. पाकिस्तान को लोन मिलने के पीछे जो कुछ आधार बने हैं, उनमें सबसे अधिक वजनी कारण है, पाकिस्तान द्वारा कई प्रमुख देशों को अपनी जमीन के इस्तेमाल की इजाजत देना है. पाकिस्तान ने चीन, अमेरिका, अरब देश और तुर्किये जैसे देशों को अपने यहां से मिलिट्री और व्यापारिक गतिविधियों को संचालित करने की इजाजत दे रखी है. उसमें भी चीन और अमेरिका पाकिस्तान को अपने उपनिवेश की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं और चाहते भी हैं कि इस्लामाबाद उनका पिट्ठू बना रहे, इसलिए आतंकवाद को पालते देख भी आईएमएफ का लोन जारी होने दे रहे हैं.
यह देश पाकिस्तान को अलग से कर्ज देते हैं. वह अपने कर्ज के पैसे वापस पाने के लिए भी पाकिस्तान को कर्ज दिलाने में मदद कर रहे हैं. चीन ने पाकिस्तान को भारी कर्ज दे रखा है. पाकिस्तान चाइना इकोनोमिक कॉरिडोर में चीन ने इस्लामाबाद को 65 अरब डॉलर से अधिक का कर्ज दे रखा है. तीन दशक में भी यह इकोनोमिक कॉरिडोर बन कर तैयार नहीं हुआ है. इसका आर्थिक लाभ मिलने के बजाय चीन के लिए यह बोझ बन गया है. चूंकि पाकिस्तान की यह हैसियत नहीं है कि वह अपनी आय से चीन का कर्ज उतार सके, इसीलिए उस पर कर्ज लाद कर अपना पैसा निकालना चीन और अमेरिका दोनों के लिए सुविधाजनक रास्ता लगता है.
अब तक 20 बार लोन ले चुका है पाकिस्तान
आईएमएफ के कोष में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी अमेरिका की है. आईएमएफ जब लोन देता है, तो पुराने लोन की रिपेमेंट की ताकीद भी करता है. यानी आईएमएफ को अपने पैसे की भी चिंता रहती है. अपने पुराने पैसे की उगाही के लिए नए कर्ज के अलावा इस समय कोई रास्ता भी नहीं है. आईएमएफ केवल एक अंतरराष्ट्रीय फंडिंग एजेंसी नहीं है, बल्कि यह बड़े देशों के लिए आर्म ट्विस्टिंग टूल्स भी है. आईएमएफ अपने लोन की शर्तें मनमाने ढंग से तय करता है. यानी लोन लेने वाले देश की पूरी आर्थिक नीति को अपने ढंग से तय करने का अधिकार रखता है. इसलिए जो भी देश आईएमएफ के लोन की सिफारिश करता है, अपनी-अपनी शर्तों को लादने की कोशिश करता है. पाकिस्तान 1950 से ही आईएमएफ का लोन लेने की आदी हो चुका है. 20 बार से अधिक लोन ले चुका है.
अब भी उसके सामने आईएमएफ के सामने नतमस्तक होने के अलावा कोई चारा भी नहीं है. पाकिस्तान का निर्यात सालों से ध्वस्त पड़ा है. टेरर एक्सपोर्ट से उसे उसे कुछ मिलने वाला भी नहीं है. उसके सामने हमेशा डॉलर की किल्लत बनी रहती है. अभी भी उसका विदेशी मुद्रा भंडार 13 अरब डॉलर के आसपास है. पाकिस्तान को खुद को जिंदा रखने के लिए आयात पर निर्भर रहना पड़ता है. और आयात बिल का भुगतान उसे डॉलर में ही करना है, इसलिए आईएमएफ का लोन उसके अस्तित्व से ही जुड़ गया है. इसलिए वह अमेरिका और चीन दोनों का पिछलग्गू बनने के लिए तैयार रहताहै, ताकि आईएमएफ से उसे लोन आसानी से मिल जाए.
पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान के आर्थिक संकट का समाधान आईएमएफ के इस ऋण से भी नहीं होगा. पाकिस्तान रोज के हिसाब से जी रहा है. 1.3 अरब डॉलर कुछ ही दिन में खर्च हो जाएंगे. अगले साल फिर पाकिस्तान एक नए लोन के लिए जायेगा. हां इस ऋण से पाकिस्तान पुराने ऋणों की कुछ किस्तें चुकाएगा और आवश्यक आयातों का भुगतान भी कर सकेगा. इसका साफ मतलब है कि पाकिस्तान को आईएमएफ लोन के लिए आगे भी अरब, अमेरिका, चीन और यूरोप के सामने मजबूर हो कर खड़ा रहना पड़ेगा. सभी देशों की शर्तें माननी पड़ेगी. इस बात के कोई संकेत नहीं हैं कि पाकिस्तान अपनी व्यापक आर्थिक नीतियों में बदलाव करेगा, आतंकवाद की खेती छोड़कर भविष्य के संकट को हल करने पर जोर देगा.
मुंह तक कर्ज के बोझ फंसा है पाकिस्तान
पाकिस्तान के भ्रष्ट शासक पहले ही पाकिस्तान के नाम पर काफी उधार ले चुके हैं और पाकिस्तान को सुधारने के बजाय अपने निजी व्यवसायों को बढ़ाने में लगे रहते हैं. देश-विदेश में निजी संपत्तियां बनाने में लगे हैं. पाकिस्तान के लिए शर्मसार बात यह भी है कि वह अपने मौजूदा ऋणों को चुकाने में बुरी तरह विफल रहने के बाद भी भारी कर्ज के पीछे भाग रहा है. अब आईएमएफ और अन्य वित्तीय संस्थानों को भी सोचना होगा कि वे आगे कैसे कोई ऋण कैसे स्वीकृत कर सकते हैं, जब देश अपनी पॉलिसी में दूसरे देश में आतंकवाद फैलाने को प्रमुखता देता है और जिसका स्वाद अमेरिका और चीन भी चख रहे है.
विक्रम उपाध्याय
(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार और आर्थिक विषयों के विशेषज्ञ हैं.)
हिन्दुस्थान समाचार