Pushkar Kumbh: 12 सालों में एक बार उत्तराखंड के चमोली जिले के माणा गांव में हर साल पुष्कर कुंभ का आयोजन होता है. माणा देश का पहला गांव है जहां कुंभ में स्नान करने के लिए देश विदेश से श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. ये कुंभ केशव प्रयाग पर लगता है, जोकि सरस्वती और अलकनंदा नदी का संगम स्थल भी है. इसी के चलते इस स्थान का धार्मिक महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है. आज यहां पुष्कर कुंभ की विशेषताओं के साथ इसके धार्मिक और पौराणिक महत्व के बारे में बताने जा रहे हैं –
12 सालों एक बार लगता है पुष्कर कुंभ

बता दें कि उत्तराखंड में पुष्कर कुंभ हर साल किसी न किसी नदी के किनारे आयोजित किया जाता है. ऐसे में ये 12 सालों में दोबारा उसी स्थान पर पहुंच जाता है. इस साल यह माणा गांव में अलकनंदा और सरस्वती के संगम पर आयोजित हो रहा है. ये स्थान बद्रीनाथ धाम से केवल कुछ किलोमीटर की दूरी पर ही स्थित है, ऐसे में वहां पहुंचने वाले तीर्थयात्री भी इस कुंभ का हिस्सा बन सकते हैं. वहीं 12 सालों के बाद लगने वाले इस अद्भुत पल के साक्षी बनने और प्राकृतिक खूबसूरती के साथ ही दिव्यता के अनुभव करने के लिए इस स्थान में आ सकते हैं.
माणा गांव का महत्व

चमोली जिले में स्थित माणा गांव देश के पहले गांव के रूप में जाना जाता है. पहले इसे देश के आखिरी गांव के रूप में जाना जाता था और नजरअंदाज किया जाता था. मगर पीएम मोदी ने इस गांव को देश का पहला गांव कहकर संबोधित किया था, इसके बाद इसे देश का पहला गांव कहकर पुकारा जानें लगा. इसके साथ ही इस माणा गांव चारों तरफ से ऊंची हिमालय की पहाड़ियों से घिरा हुआ इलाका है, जोकि समुद्र तल 3,219 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. साथ ही यह स्थान सरस्वती माता का उदगम स्थल भी है. प्राकृतिक महत्व और गांव की खूबसूरती के चलते ये स्थान अकसर पर्यटकों को अपनी तरफ खींचता है.
क्या है माणा गांव में पुष्कर कुंभ का धार्मिक महत्व?

ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक बृहस्पति गृह हर साल अलग-अलग राशियों में विचरण करता है, ऐसे में जब यह मिथुन राशि में आता है तो सरस्वती नदी में स्नान किया जाता है. यह परंपरा सदियों से यूं ही चली आ रही है. माणा गांव में लगने वाले पुष्कर कुंभ का विशेष धार्मिक और पौराणिक महत्व है. बता दें कि यही वह स्थान है जहां पर महर्षि वेदव्यास ने तपस्या की थी और महाकाव्य महाभारत की रचना की थी. वहीं यह भी कहा जाता है कि इसी स्थान पर दक्षिण भारत के दो आचार्यों माध्वाचार्य और रामानुजाचार्य ने ज्ञान प्राप्त किया था.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माणा गांव से पांडवों का कनेक्शन भी जोड़कर देखा जाता है, यही वही जगह है जहां से पांडवों ने स्वर्ग का रास्ता तय किया था. वो सशरीर स्वर्ग जाना चाहते थे, मगर रास्ते में सब गिरते चले गए. आखिर तक केवल युधिष्ठिर और एक कुत्ता ही आगे तक पहुंच सका था.
वहीं पुष्कर कुंभ के समय माणा गांव में देशभर से श्रद्धालु पितृों क तर्पण करने के लिए भी पहुंचते हैं. यहां पर स्नान और ध्यान आदि करने से जहां एक तरफ मन को शांति मिलती है तो वहीं हर प्रकार के पापों से मुक्ति के लिए भी लोग यहां पहुंचने है. यहां लगने वाले कुंभ को देवों का कुंभ भी कहा जाता है, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यहां की गई पूजा पितरों के लिए मुक्ति के रास्ते खोलती है. ऐसे में पितृों की सुख शांति और मुक्ति के लिए खासतौर पर दक्षिण भारत से बड़े पैमाने पर श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं.
अलकनंदा और सरस्वती नदीं का होता है दिव्य संगम
बता दें कि केशव प्रयाग में ही अलकनंदा और सरस्वती नदियों का अद्भुत संगम होता है. इसके बाद सरस्वती नदी थोड़ा आगे तक चलती है, इसे विष्णुपदी नाम से भी जाना जाता है. कुछ दूरी के बाद ही सरस्वती नदी आंखों से ओझल हो जाती है जोकि अदृश्य रूप से बाद में प्रयागराज में जाकर मिलती है. सरस्वति नदी औझल होने के बाद

बमुश्किल ही नजर आती है, ऐसे में ऐसी पावन नदियों में स्नान जहां एक तरफ आस्था का दिव्यता दर्शाता है तो वहीं सनातन की जीवंत परंपराओं का उदाहरण प्रस्तुत करता है.
महाकुंभ से कम नहीं है पुष्कर कुंभ
जब भी माणा में पुष्कर कुंभ लगता है, तो प्रशासन की तरफ से विशेष व्यवस्था की जाती है. यह किसी भी मायने में महाकुंभ से कम नहीं है. इसके लिए भी खासतौर पर श्रद्धालु लंबी दूरी और तमाम तरह की बाधाओं को पार करके पहुंचते हैं. वहीं दक्षिण भारत में इस कुंभ का खासतौर पर महत्व है, जहां पितृ पूजा के लिए लोग आते हैं. ऐसे हर दिन माणा गांव में हर दिन 10 से लेकर 20 हजार तक श्रद्धालु पहुंचते हैं, जिनके आने-जाने और ठहरने के लिए भी स्थानीय लोग व्यवस्थाएं करते हैं. सुरक्षा व्यवस्थाओं का ध्यान रखकर आस्था के इस कुंभ में महाकुंभ की तरह ही लोग डुबकी लगाते हैं.
कैसे पहुंचे पुष्कर कुंभ मेला ?
चमोली जिले के माणा गांव में लगने वाले पुष्कर कुंभ मेले में श्रद्धालु कई तरीकों से पहुंच सकते हैं. राजधानी दिल्ली से इस स्थान की कुल दूरी 546 किलोमीटर है. यहां तक पहुंचने का सबसे सुगम मार्ग सड़क द्वारा है. सड़कों का मार्ग इस गांव तक विस्तृत रूप से फैला हुआ है. माणा जाने का रूट बद्रीनाथ और जोशीमठ के कस्बों से होते हुए सीधे एनएच-58 तक जुड़ा हुआ है. वहीं बद्रीनाथ से माणा गांव की दूरी केवल 3-4 किलोमीटर है, ऐसे में बद्रीनाथ जाने के साथ ही ऑटो या टैक्सी लेकर जा सकते हैं.
रेलवे मार्ग से: पुष्कर कुंभ तक पहुंचने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन हरिद्वार है, इससे माणा गांव की दूरी 275 किलोमीटर ही रह जाती है. यहां से बस या फिर टैक्सी लेकर आसानी से पहुंचा जा सकता है.
हवाई मार्ग से पहुंचे: पुष्कर कुंभ में हवाई मार्ग से पहुंचने के लिए उत्तराखंड का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट जॉलिग्रांट है. इस स्थान माणा गांव की दूरी 315 किलोमीटर रह जाती है जिसे पार करने के लिए प्राईवेट कैब, टैक्सी, बस आदि की मदद ले सकते हैं.
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