राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के ‘कार्यकर्ता विकास वर्ग-2’ के समापन समारोह में संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने देश की सुरक्षा, विचारधारा और समाज की एकता जैसे विषयों पर मुखर होकर विचार रखे. नागपुर के रेशिमबाग मैदान में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने “टू नेशन थ्योरी” यानी द्विराष्ट्रवाद की थ्यौरी की प्रमुख रूप से आलोचना भी की. इसे लेकर उनके संबोधन की कुछ प्रमुख बातें इस प्रकार से हैं –
वर्तमान में युद्ध के तरीके बदल गए हैं – संघ प्रमुख मोहन भागवत
संघ प्रमुख डॉ. भागवत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि द्विराष्ट्रवाद की सोच ने ही भारत की शांति में सबसे बड़ा विघ्न डाला है. देश का बटवारा और पाकिस्तान का निर्माण इसी सिद्धांत के आधार पर हुआ था. लेकिन इसके बावजूद वहां से शांति की बजाय आतंक का निर्यात लगातार जारी रहा. आगे उन्होंने कहा, अलग होने के बाद भी अगर अशांति फैलाने का प्रयास निरंतर होता रहा, तो यह दोहरी नीति है और यही असली खतरा भी है. जब तक ‘दो-राष्ट्र सिद्धांत’ का विचार मन में रहेगा , तब तक भारत के सामने खतरा बना रहेगा.”
उन्होंने कहा कि अब युद्ध के तरीके भी बदल गए हैं. पहले युद्ध आमने-सामने आकर लड़ा जाता था मगर अब ऐसा नहीं होता. आजकल युद्ध की नई तकनीकें विकसित हो चुकी है. अब साइबर वॉर से लेकर कई सारी बातें हैं और लगातार प्रॉक्सी वॉर चल रहा है. शासन करने और दुनिया में कहने के बाद भी ये संदेश दुनियाभर में जाता नहीं है.
ऑपरेशन सिंदूर पर बोले संघ प्रमुख
इस दौरान डॉ. भागवत ने पहलगाम हमले को लेकर भी बात की, (22 अप्रैल 2025) को हुई इस दर्दनाक घटना में 26 निर्दोषों की जान गई, जिसके बाद लगातार कार्रवाही की मांग उठ रही थी. भारतीय शस्त्र बलों ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत निर्णायक कार्रवाई करते हुए सीमापार पाकिस्तान में आतंकियों के अड्डों पर एयर स्ट्राइक की थी. संघ प्रमुख ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सेना का पराक्रम तो सभी ने देखा. अपनी सुरक्षा के लिए हमें खुद पर ही निर्भर रहना पड़ेगा. साथ ही हमें अपनी सुरक्षा के लिए पूरी तरह खुद ही सजग होना पड़ेगा.
संघ प्रमुख ने खुद को आत्मनिर्भर बनाने पर दिया जोर
डॉ. भागवत ने अपने संबोधन में कहा कि भारत को अब छद्म युद्ध (प्रॉक्सी वॉर), साइबर अटैक और ड्रोन जैसे आधुनिक खतरों से निपटने के लिए खुद आत्मनिर्भर बनना होगा. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सेना ही नहीं, बल्कि समाज की जागरूकता भी राष्ट्र की रक्षा के लिए जरूरी है.
डॉ. भागवत का यह संबोधन न केवल राष्ट्रवादी चेतना को बल देता है, बल्कि आने वाले समय में सामाजिक एकता और राष्ट्रीय सुरक्षा की दिशा में सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता को रेखांकित करता है. टू नेशन थ्योरी के खिलाफ यह विचार वर्तमान वैश्विक और राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में अत्यंत प्रासंगिक हैं.
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