Bihar Diwas 2024: बिहार को आज 112 वर्ष पूरे हो गए है. 22 मार्च 1912, को बिहार बंगाल से अलग होकर अपने नए रूप में उभरा कर आया. इसलिए आज के दिन हम बिहार दिवस (Bihar Diwas 2024) के रूप में मनाते है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वर्ष 2010 में बिहार दिवस की शुरुआत की थी. बिहार बंगाल से अलग राज्य के रूप में स्थापित होने की खुशी में हर वर्ष 22 मार्च को बिहार दिवस के रूप में मनाया जाता है. तो आइए जानते है, इस दिन का खास महत्व…
बिहार दिवस बिहार के लोगों के लिए बहुत महत्व रखता है ऐसा इसलिए क्योंकी इसी दिन बिहार को अपनी एक पहचान मिली थी. 2005 में जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बने थे, तब राज्य में ‘बिहार दिवस’ मनाने की घोषणा की थी. जिसके बाद पहली बार 2010 में बड़े पैमाने पर बिहार की राजधानी पटना के गांधी मैदान में बिहार दिवस को बड़ी धूम-धाम से मनाया गया. तब से लेकर आज तक बिहार दिवस मनाने की परंपरा जारी है. बिहार दिवस बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि यह एक अद्वितीय सांस्कृतिक विरासत के साथ एक विशिष्ट राज्य के रूप में बिहार को पहचान मिली. इस दिन लोगों को अपनी संस्कृति, इतिहास, परंपराओं और विरासत को प्रदर्शित करने का अवसर मिलता है. 22 मार्च को बिहार दिवस के रूप में मनाने के लिए हर वर्ष बिहार सरकार पब्लिक हॉलिडे की नोटिफिकेशन जारी करती है.
बिहार की स्थापना के पीछे का इतिहास
बिहार भारत के महत्वपूर्ण राज्यों में से एक है. बिहार का इतिहास बहुत पुराना है लेकिन 1912 में बंगाल के विभाजन के कारण बिहार एक राज्य के रूप में अस्तित्व में आया. 1935 में उड़ीसा को इससे अलग कर दिया गया. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बिहार के चंपारण के विद्रोह को, अंग्रेजों के खिलाफ बगावत करने में महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है. स्वतंत्रता के बाद बिहार का एक और विभाजन हुआ जो सन 2000 में झारखंड राज्य को इससे अलग कर दिया गया. भारत छोड़ो आंदोलन में भी बिहार की अहम भूमिका रही.
मुगलों के समय बंगाल प्रोविंस में शामिल इस हिस्से को सूबा-ए-बंगाल के नाम से जाना जाता था. इस क्षेत्र में बौद्ध विहारों की बहुलता के कारण इसे विहार कहा जाने लगा और इसके बाद ही बिहार नाम प्रचलन में आया. 1757 में प्लासी के युद्ध ने भारत में अंग्रेजों ने साम्राज्य की नींव रख दी थी. बंगाल में जब अंग्रेजी शासन ने पैर पसारना शुरू किया, तब बंगाल को दीवानी मिली. इसका मतलब कंपनी को बंगाल, बिहार और उड़ीसा से राजस्व वसूलने का अधिकार मिला. एक तरफ जहां प्रशासनिक तौर पर बंगाल मजबूत होता जा रहा था. वहीं बिहार का अस्तित्व कहीं खत्म होता नजर आ रहा था. बिहार केवल एक भौगोलिक इकाई बनकर रह गया. चूंकि बिहार उस बंगाल का हिस्सा था इसलिए बंगालियों का वर्चस्व यहां ज्यादा था. बेहतर अंग्रेजी शिक्षा के कारण बड़े पदों पर बंगालियों ने कब्जा कर लिया था, अब ऐसे में बिहारियों की उपेक्षा होने लगी. अब यहां के लोगों की चिंताएं बढ़ने लगी.
सबसे पहले 1870 में मुंगेर से निकलने वाले अखबार मुर्ग-ए-सुलेमान में बिहार को अलग राज्य बनाने की आवाज उठी. इसके बाद 1894 में बिहार टाइम्स और बिहार बंधु ने भी इस आंदोलन को गति दी. अखबारों में बंगालियों की तुलना दीमक से की गई, जो बिहारियों की फसलों को खा रहे थे. प्रशासन और शिक्षा के क्षेत्र में बंगालियों ने इसका खूब विरोध किया.
1908 में कांग्रेस ने बिहार को एक अलग राज्य बनाने की मांग का समर्थन किया. इसके लिए एक कमेटी का गठन हुआ, जिसमें दरभंगा महाराजा रामेश्वर सिंह अध्यक्ष और अली इमाम को उपाध्यक्ष बनाया गया और आखिरकार 145 सालों की कड़ी मशक्कत के बाद 12 दिसंबर, 1911 बिहार को अपनी अलग पहचान मिली. 22 मार्च, 1912 को बिहार एक अलग राज्य बना, जिसकी राजधानी पटना को बनाया गया.